मटकी पुर के अंजनी दुबे और चैटजीपीटी

दो बिल्कुल अलग अलग बातें कैसे एक दूसरे से जुड़ जाती हैं। पहली है वाशिंगटन पोस्ट की खबर। एक महिला की नौकरी स्टोरी राइटिंग की थी। काम ठीक चल रहा था। तब पिछली साल नवम्बर में चैट जीपीटी आया। एक बारगी उसे लगा कि कहीं उसका काम चैट जीपीटी को तो नहीं मिल जायेगा। पर उसे कम्पनी में एश्योरेंस मिला कि ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन स्थितियां (तेजी से) बदलती गयीं। उसके सहकर्मी दबी जुबान में मजाक करने लगे। उसके नाम के आगे #ChatGPT लगाने लगे। छ महीने में ही उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। अब वह कुत्ता घुमाने की नौकरी कर रही है।

पहली है वाशिंगटन पोस्ट की खबर

कितनी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। छ महीने में स्टोरी राइटर की नौकरी चैटजीपीटी ले गिरा। ऐसी कितनी नौकरियां गयी होंगी या जाने वाली होंगी? यह तो वाशिंगटन पोस्ट की खबर थी जिसे लाइवमिण्ट मेरे पास तक ले आया। और भी तो होंगी?!

आज अखबार में एक और खबर है। माइक्रोसॉफ्ट का एक कर्मचारी जिसकी छंटनी हो गयी थी, ने 1000 जगहों पर अप्लाई किया। मार्च से अभी तक उसे कोई नौकरी नहीं मिली है।

आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस का दबाव नौकरियों पर दिखने लगा है। यह जरूर है कि नयी तकनीक मास्टर करने पर नये तरह के जॉब बनेंगे। शायद ज्यादा ही नौकरियां या बेहतर नौकरियां मिलें; पर यह सम्भावना तो बन ही गयी है कि आगे बिना नौकरी के अर्थव्यवस्था बढ़ने वाली है।

मैंने अपने आसपास देखना चालू किया। कौन कौन काम बदलेगा? कौन नौकरी या काम खतरे में है? मुझे लगा कि गांवदेहात में, जहां आदमी अपने श्रम से जीवन यापन करता है, कोई असर पड़ेगा नहीं इस नयी तकनीक का।


अंजनी दुबे, गांव मटकी पुर : दिन भर लग जाता है गाय-गोरू के साथ। और कुछ सोचने को समय ही नहीं है।

मैं आठ – साढ़े आठ तक जाता हूं सवेरे, मडैयाँ डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर। अजय पटेल जी के यहां पांच सात लोग होते हैं। वे गाय और भैंस का दूध ले कर आये होते हैं बेचने के लिये। मुझे वहां से एक डेढ़ लीटर दूध चाहिये होता है। वहां बतकही चलती रहती है। उनकी देशज अवधी-भोजपुरी ज्यादा समझ नहीं आती, पर अभिप्राय तो पल्ले पड़ ही जाता है। उन लोगों की दुनियां गाय गोरू, खेती किसानी, चूनी-चोकर-सानी आदि के इर्दगिर्द है। स्मार्टफोन और सुरती – दोनो उनके बराबर के काम की चीजें हैं। चैटजीपीटी का नाम सुने भी होंगे तो ज्यादा पल्ले नहीं पड़ा होगा।

मडैयाँ डेयरी का कलेक्शन सेण्टर

पर हैं वे स्मार्ट लोग। किसी भी बदलाव के साथ अपने को बदलने की क्षमता रखते हैं। यह डेयरी अच्छा रेट दे रही है तो पांच दस किमी चल कर यहां आते हैं और अपना दूध बेच कर पैसा जेब में रख लौटते हैं। जिस दिन उन्हें लगा कि चैटजीपीटी उनकी जिंदगी में असर डाल सकता है, वे पूरी मेहनत कर उसका गोरखधंधा समझने में जुट जायेंगे।

बातचीत में सबसे जानदार दिखते हैं अंजनी दुबे। तिलक लगा रखा है। इकहरा शरीर। गले के गड्ढ़े में भी चंदन का गोल बिंदु लगा है।

वहां बातचीत में सबसे जानदार दिखते हैं अंजनी दुबे। तिलक लगा रखा है। इकहरा शरीर। गले के गड्ढ़े में भी चंदन का गोल बिंदु लगा है। बोलने में ऐसे कि सभी का ध्यान उनकी ओर चला जाये। बता रहे हैं कि चार गोरू में सवेरे चार बजे से दिन शुरू हो जाता है। गोरू के साथ गोरू की जिंदगी। जिंदगी के लिये जो शब्द उनके मुंह से निकलते हैं उनमें “लत्ता, भूसा” जैसे ही हैं। अर्थात जिंदगी में श्रम है और उसके अलावा कुछ देखने सोचने को है ही नहीं। निश्चय ही, गांव देहात की उस आबादी का हिस्सा हैं अंजनी कुमार दुबे जो मेहनत करती है। उसके फल से लगभग संतुष्ट है पर दिन भर जो पिराई होती है, उसे ले कर यह भाव तो है कि अमीरी होती, ठाठ होता, काम न करना होता तो क्या आनंद रहता।

मेरे ख्याल से अंजनी कुमार जैसे लोग जो बाई डीफाल्ट मेहनती हैं, बिना काम मौज की जिंदगी की कहते भले हों, बिना काम के रह नहीं सकते।

अंजनी के मुंह में का पान मसाला शायद खत्म हो गया है। मुंह खाली है तो प्रगल्भता बढ़ गयी है। उसे काम पर लगाने के लिये वे मनोयोग से सुरती मल रहे हैं। पर मल्टी टास्किंग में माहिर हैं। बतकही में लीड रोल भी अदा कर रहे हैं, और सुरती भी तैयार कर रहे हैं। मेरा मन होता है कि इस नौजवान को सुरती न खाने के लिये टोकूं। पर क्या फायदा? कौन सुनने जा रहा है?

अंजनी कुमार बताते हैं कि उनका गांव मटकी पुर है। यहां से चार पांच किमी दूर। दूध सेण्टर पर देने के साथ हाल-चाल-बतकही में पंद्रह बीस मिनट गुजारते हैं। परिवार धार्मिक है। एक दिन लघुशंका के समय जनेऊ कान पर नहीं चढ़ाया तो वह अशुद्ध हो गया। “ओके निकारि क पोआरि दिहा।” पर नया जनेऊ मिला नहीं। नहाते समय बाबू जी ने उघार बदन बिना जनेऊ के देख लिया तो काफी सुनना पड़ गया।

“नाम अंजनी कुमार है तो हनुमान जी के भक्त हो?” मैंने यूं ही पूछा। “कौनो देवी देवता हों, सब को पूज लेते हैं। हनुमान जी को भी।” – अंजनी ने उत्तर दिया।

मैं इस नौजवान के बारे में सोचने लगा। मेहनत करता है तो चैटजीपीटी या और कोई आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस क्या कर लेगा। गोरू को सानी देने और दुहने के लिये रोबोट तो आयेंगे नहीं। और आ भी जायेंगे तो अपने को अपग्रेड करने की कूवत तो अंजनी में होगी ही। खेती किसानी, पशुपालन, सब्जी उगाने-बेचने में एआई फेसीलीटेटर ही बनेगा। काम छीन नहीं पायेगा। वह जिंदगी “लत्ता-भूसा” से अपग्रेड कर देगा।

अंजनी अगर नयी तकनीक का स्वागत करेंगे तो उनकी जेब में ज्यादा पैसे आयेंगे। वे अपने परिवार की, अपने बाबूजी की ज्यादा अच्छे से देखभाल कर पायेंगे।

ग्रामीण जीवन को – अगर लोग मेहनती हैं – एआई बेहतर ही बनायेगा। उनके काम को अपग्रेड करेगा और शहराती लोगों से कहीं बेहतर तरीके से वे जी सकेंगे। अंजनी कुमार का भविष्य बेहतर ही होगा। हां, यहां निकम्मा-नकारा नौजवानों की फौज जो दिन भर मोबाइल में वीडियो और गेम देखती-खेलती है; उसकी दुर्गति निश्चित है।

मैं अंजनी से ज्यादा नहीं मिला। पर वह नौजवान, बावजूद इसके कि सुरती खाता है, मुझे पसंद आया। भविष्य में उससे मैत्री करना चाहूंगा। यह भी जानना चाहूंगा कि मेरी आज की सोच उसे ले कर सही साबित होती है या नहीं।

अंजनी कुमार को मुझे सही साबित करने के लिये मेहनत करनी चाहिये। :lol:

“कुमति निवारि सुमति के संगी” बजरंगबली की जय हो!

अंजनी कुमार

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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