शादी का बदलता इण्टरव्यू

सन 1950-60 का समय या दशक। मेरे बाबा कुटुम्ब के मुखिया थे। लड़कियों की शादी के लिये लड़का तलाशना उनकी जिम्मेदारी थी। वे अपनी लाठी लिये पैदल निकलते थे। अमूमन तब, जब खेत खलिहान का काम खत्म हो जाता था। अप्रेल का उत्तरार्ध होता था। पैदल चलने की अपनी सीमा थी। बीस किलोमीटर या ज्यादा से ज्यादा पच्चीस किलोमीटर। उसी के बीच के गांवों में लड़का तलाशते थे। बारह तेरह साल की लड़की के लिये लड़का चौदह पंद्रह साल का होता था। उसकी लम्बाई नापते थे – अपनी लाठी से। उससे दो चार सवाल करते थे – कई सवाये दस। अर्थात पौना, डेढ़ा, सवैया का पहाड़ा। लड़के के यहां गोरुआर (गाय बैलों का रहने का स्थान) कैसा है, उपले के ढेर कैसे हैं, खेत बारी है कि या नहीं; इस तरह के सवाल होते थे। बीस पच्चीस किलोमीटर का मामला था तो बहुत से कुटुम्बों की बहुत सी जानकारी उनके पास पहले से होती थी।

बारह तेरह साल की लड़की के लिये लड़का चौदह पंद्रह साल का होता था। उसकी लम्बाई नापते थे – अपनी लाठी से।

वे पानी पीने के लिये अपना लोटा डोरी ले कर निकलते थे। शुद्ध अशुद्ध का पक्का ध्यान रखते थे। ज्यादातर होता था कि सुबह निकले शाम तक अपने घर वापस आते थे और शादी तय कर लौटते थे। कुटुम्ब के बाकी लोग कोई चूं-चपड़ नहीं करते थे। लड़के का कोई ओपीनियन होता ही नहीं था!

समय बदला। सन 1980 में मेरे बाबा ने मेरी शादी तय कर दी। लड़की नहींं देखी। अपनी जबान दे दी। मुझे भी केवल फैसला बताया गया। मैं सरकार में राजपत्रित अधिकारी बन गया था। मैंने फरमान मानने से मना कर दिया। झिक झिक चली। अंतत: बाबा के प्रति इज्जत, उनकी चौरासी इलाके में प्रतिष्ठा और उनके संत स्वभाव का बोझ मुझ पर रहा। मेरे पास कोई विकल्प भी नहीं था – मेरी कोई महिला मित्र या प्रेम प्रसंग भी नहीं था। एक वाया मीडिया निकाल कर मैंने लड़की देखी और वह ठीक ही थी। मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक सुंदर और बेहतर (इंजीनियरिंग संस्थान में तो लड़कियां वैसे ही बेढंगी टाइप होती थीं! :lol: ) शादी के लिये हां कर दी। वही हुआ जो बाबा चाहते थे, पर एक मेरा भी निर्णय का घटक उस फैसले में जुटा।

कुछ टुन्न-मुन्न, रोआ राटी और उत्तरोत्तर पनपते स्नेह के द्वारा जिंदगी चली और अभी भी मजे में चल रही है। परिवार और समाज की पकड़ उत्तरोत्तर कम होती गयी। पर फिर भी, जैसा कि भारत बीस शताब्दियों में एक साथ जी रहा है – समाज भी रहा और परिवार भी।

हां, समाज अब भौतिक रूप में कम, फेसबुक और ट्विटर आदि के वर्चुअल स्पेस पर ज्यादा फैल गया है। कुटुम्ब भी पहले छिटका – दिल्ली-बम्बई-बंगलूर-पुणे-कांडला (और अमेरिका) तक पसरा और अब ह्वाट्सएप्प के ग्रुप में रूपांतरित हो गया है। लोग वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरीये ज्यादा सम्पर्क करते हैं। मिलना तो यदा कदा ही होता है।

अब 2020-23 में शादी तय होने का मामला और भी बदल गया है।

सन 1980 की मेरी शादी में जनवासे से द्वारपूजा और मण्डप तक जाने के लिये लोग 500 कदम पैदल चले। मेरे लिये एक पुरानी जीप का इंतजाम था। पहनने को जोराजामा वाला जोकरई लबादा। घर के ही कोने पर भोजन बनाने वाला और पंगत में भोजन की व्यवस्था। सब कुछ गांव के स्तर पर ही आयोजित। बर्तन, कड़ाहा, खटिया गद्दा तब या तो पंचाईती था, या सब गांव वालों का सामुहिक प्रयास। अब वैसा कुछ भी नहीं है।

अब गांव के आठ किलोमीटर की परिधि में तीन मैरिज लॉन खुल गये हैं। हर एक में दो तीन दर्जन वातानुकूलित कमरे हैं, जिनमें बराती घराती ठहराये जा सकते हैं। शादी का मण्डप, लड़की लड़के का मेक अप, टेण्ट, सजावट, वेडिंग और प्री-वेडिंग की वीडियोग्राफी का तामझाम … सब कुछ उस स्तर का जैसे फिल्मों में होता है। और यह सब गांवदेहात तक उपलब्ध हो गया है। सब कुछ पैसा खर्च करने पर निर्भर हो गया है। सब में बाजार की पैठ हो गयी है।

लोगों की समृद्धि बढ़ी है। बैंक बैलेंस बढ़ा है और बाजार की उस पैसे को सोखने की ताकत भी उसी अनुपात में बढ़ी है।

और विवाह के लिये लड़के का इण्टरव्यू? वह भी एक बिल्कुल अलग स्तर की चीज हो गयी है। अब कोई बारह कोस चल कर अपना लाठी, डोरी-लोटा ले कर लड़का देखने नहीं निकलता।

अब लड़का छबीस-सत्ताईस साल का है। बोस्टन की फलानी कम्पनी में आर्टीफीशियल इण्टेलिजेंस के प्रॉजेक्ट पर काम कर रहा है। एक क्लायेण्ट के साथ सिंगापुर में दो दिन का उसका इण्टरेक्शन है। उसके बाद लौटानी में वीक-एण्ड पर वह भारत होते हुये लौटेगा बोस्टन। इसी दौरान वह लड़की और लड़की वालों से मिलेगा। और सब कुछ भी निश्चित होगा। लड़का लड़की हां कर दें। माता-पिता तदानुसार चलेंगे। वे अपना सामाजिक बात-व्यवहार उन दोनों की सहमति के साथ टैग कर लेंगे। बस वे दोनो हां कर दें तो इनकी सामाजिकता का मुखौटा एक पीढ़ी तक और निभ जाये।

शादी के लिये लड़के के इण्टरव्यू

परिवार और समाज कितनी भी ऐंठ दिखा ले; वह आधुनिकता, बाजार की ताकत और सरकारों द्वारा किये गये व्यक्ति के एम्पावरमेण्ट और इन सब से ऊपर विश्व स्तर पर नौजवान और नवयुवतियों की मोबिलिटी के सामने हाँफ रहा है। ज्यादा दिन तक वह अपनी चौधराहट का मुखौटा ओढ़े नहीं रह पायेगा।

शादी के लिये लड़के के इण्टरव्यू में बाजार की घुसपैठ तो दिखती ही है। पहले उपहार के लिये घर के बगीचे से एक झऊआ लंगड़ा आम, स्थानीय देसी घी की मिठाई का एक बड़ा डब्बा या बुंदिया के लड्डू की झांपी से काम चल जाता था। अब चार पांच तरह के फल, क्षीरसागर या कामधेनु की मिठाई, अल-चीको की पेस्ट्री आदि लिये एक दर्जन लोग चार पांच एसयूवी में जाते हैं। इण्टरव्यू में भी झांकी जमनी चाहिये। यह झांकी जमाऊ भावना नैसर्गिक नहीं है। बड़ी चालाकी से साल दर साल बाजार ने लाद दी है जन मानस पर। और लोग उसे सामाजिक अनिवार्यता के रूप में मानने लगे हैं। जो परिवर्तन सदियों में नहीं हुये वे बाजार और सरकार की कृपा से दशक-साल-महीनों में होने लगे हैं।

लोग समझते हैं कि परिवर्तन वे तय कर रहे हैं, पर तय बाजार कर रहा है। शादियां कराने वाले अगुआ लोग अब विलुप्तप्राय प्रजाति के होते जा रहे हैं। उसका स्थान जीवनशादी डॉट कॉम जैसी ऑनलाइन सेवायें लेने लगी हैं। उनके एआई एलगॉरिथम कहीं बेहतर मैच-मेकिंग कर रहे हैं बनिस्पत अगुआ जी के आसपास की सौ दो सौ गांवों की भौगोलिक और सामाजिक जानकारी के।

आप क्या खायेंगे, क्या पियेंगे, कहां छुट्टियां मनाने जायेंगे, कौन सा कपड़ा पहनेंगे – यह सब तो एलगॉरिथम तय करने लग ही गया है। आप किससे शादी करेंगे, वह भी एलगॉरिथम तय करने वाला है जल्दी ही। क्वाण्टम कम्प्यूटिंग का जमाना आ रहा है। शादी का इण्टरव्यू ही नहीं, समाज की सोच और संरचना में भी एआई की दखल होगी।

मैं क्वांटम कम्प्यूटिंग समझने के लिये एक दो किताबें किण्डल पर डाउनलोड कर चुका हूं

आपको यह अजीब नहीं लगता कि रीवर्स माइग्रेशन के बाद गांवदेहात में आ कर मैं एलगॉरिथम के जीवन में जबरी घुसने पर सोच रहा हूं? पर यह ही यथार्थ है। चीजें बहुत तेजी से बदल रही हैं। … और मैं क्वांटम कम्प्यूटिंग समझने के लिये एक दो किताबें किण्डल पर डाउनलोड कर चुका हूं। बदलता फिनॉमिना समझना तो है ही। भले ही उम्र कितनी भी हो गयी हो।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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