उस रोज रात में बारिश हो रही थी। चीकू का गाछ झूम रहा था। सारा ध्यान उसी पर जा रहा था। अगले दिन यह सोच कर कि तेज हवा में उसके फल टूट कर बरबाद न हो जायें, हमने सारे फल तोड़ कर एक छोटे टब में पकने रख दिये। कल एक दो पके फल खाये। बहुत मीठे!
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
उस रोज रात में बारिश हो रही थी। चीकू का गाछ झूम रहा था। सारा ध्यान उसी पर जा रहा था। अगले दिन यह सोच कर कि तेज हवा में उसके फल टूट कर बरबाद न हो जायें, हमने सारे फल तोड़ कर एक छोटे टब में पकने रख दिये। कल एक दो पके फल खाये। बहुत मीठे!