मेरे इलाके में धान की निन्यानबे फीसदी खेती कट चुकी है। कटी हुई खेती भी खेत में पड़ी नहीं है। खलिहान में आ चुकी है। कुछ लोगों ने तो खेत में ही खलिहान बनाये हैं। पुआल के आड़ ले कर लोग अपनी धान की कटी फसल की रखवाली खलिहान रूपी खेत में ही करते हैं। रात में रजाई-लेवा ले कर रहते हैं वे खेत में ही। पास में अगर बिजली का कोई सोर्स हो तो कंटिया फंसा कर एक बल्ब जला लेते हैं। वर्ना मोबाइल की रोशनी या एलईडी की लालटेन/टॉर्च से काम चलाते हैं। उनके लिये यह कठिन समय होगा। उत्तरोत्तर बढ़ती सर्दी में खेत में रात काटना कठिन ही है। पर मैं सोचता हूं कि वहां एक रात गुजार कर देखूं। पिकनिक जैसा होगा वह मेरे लिये।
अन्न की बालों को सटक कर धान अलग और पुआल अलग किया जाता है। दिन भर आदमी औरत इस काम में लगे दीखते हैं। हाथ में बालियों का एक गुच्छा पकड़ कर एक तख्ते पर पीटते हैं। इस सटकने की धूल से बचने के लिये कुछ लोग मास्क लगाते हैं या नाक पर गमछा-कपड़ा बांधते हैं। पर ज्यादातर यूं ही काम करते हैं। धान की कटाई और खलिहान के काम में पूरा गांवदेहात लगा है। कोई आदमी औरत और किशोर किशोरी इस समय खाली नहीं है।
खलिहान से धान घर में लाने के लिये सभी प्रकार के साधन लगे हैं। बाजार में पुरानी बोरी भी अब मंहगी बिक रही है। बोरियों में भर कर धान घर के भीतर तक लाया जा रहा है। पुआल के गट्ठर किसान अपने घर के पास किसी खाली जमीन पर गांज बना कर जमा रहा है। पुआल खेती के उत्पाद के पिरामिड में सबसे नीचे की परत है। पर उसके लिये भी बहुत मेहनत की जा रही है। सम्पन्न राज्यों की तरह उसे पराली के रूप में जलाया नहीं जा रहा।
गांज बनाने में भी तकनीक लगती है।

एक जगह गांज जमाते लोगों को देखने के लिये मैं अपनी साइकिल रोक उन तक पंहुचा। लाल कमीज पहने आदमी दस फिट ऊंची बेलनाकार गांज पर खड़ा नीचे दूसरे आदमी द्वारा पुआल के गट्ठर लपका कर फेंके जाने पर लोकता और गांज पर जमाता था। बेलनाकार आकृति सुगढ़ रहे, उसके लिये एक पुआल के गट्ठर से बेलन की परिधि पर ठोंकता भी जाता था। गांज जैसी तुच्छ जमावट को सौंदर्य देना उसका काम था। हो सकता है वह गांज न जमा करने वाला होता तो शायद मूर्तिकार बन जाता।
उसने बताया कि अभी इतने पुआल के गट्ठर हैं कि उसकी ऊंचाई बराबर और पुआल जमेगा गांज पर। उसके बाद पुआल के गट्ठर शंकु के आकार में जमाये जायेंगे। कुल मिला कर गांज यूं नजर आयेगा मानो एक मोटा राकेट हो।
मैं गांज की मोटाई और उसके ईंधन की ऊर्जा का आकलन करने लगा। एक परिवार का अगले सीजन तक का काम तो उस ईंधन से चल ही जायेगा? नहीं? बाकी, किसी तिलस्म से उतनी ऊर्जा लिये गांज का वजन अगर सिमट कर सौवां हिस्सा भर हो जाये तो उतने जूल्स से गांजिया-राकेट एस्केप वेलॉसिटी भी शायद पा जाये! … एक साइंस फंतासी लिखी जाये जिसमें गांव की महुआरी पर जमा गांज का रॉकेट गांव वाले बच्चों को चांद तक की सैर करा लाता है! :lol:

मैने विचार किया कि कभी चिन्ना (दस साल की मेरी पोती) को क्रायोजेनिक रॉकेट के बारे में बताऊंगा तो गांज के रॉकेट की भी बात करूंगा। निश्चय ही उसकी बड़ी बड़ी आंखे और खुल जायेंगी। वह पूरे उत्साह से कहेगी – “बाबा, जब अगली बार मैं गांव आऊंगी तो आप और मैं गांज वाले रॉकेट पर चांद तक चलेंगे। और बाबा, हम लोग ज्यादा लम्बा गांज रॉकेट भी बनायेंगे जिसमें मंगल ग्रह तक पंहुचा जा सकेगा। मुझे पता चला है कि मार्स पर शायद पानी भी है!” :-)

Bahut sundar sir
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धन्यवाद जी!
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