आर्मचेयर परिक्रमा – डिंडोरी से कंधूजी शिव मंदिर

नीलकंठ सुदामा कंधूजी शिव मंदिर

आर्मचेयर परिक्रमा – दिन 1

नीलकंठ चिंतामणि की कलम से

नीलकंठ का ईमेल सवेरे ठीक छह बजे आया। लगता है, यह उसने रात को अंतिम स्पर्श देकर सवेरे भेजा था..
यह वही नीलकंठ है, जो हमारे बैच का सबसे बड़ा लिक्खाड़ था। ट्रेनिंग के दौरान एक बार कोलफील्ड के थाने में एफआईआर दर्ज करानी पड़ी — और उसने कलात्मक अक्षरों में नौ पन्ने भर दिए थे। पुलीस वाला पेज पर पेज देते परेशान हो गया था।

अब वह कागज़ की जगह कीबोर्ड पर लिखता है, पर सुंदरता अब केवल लिखावट में नहीं, भावों की गहराई में उतर आई है।

मैं नीलकंठ की रचनाओं को संपादित नहीं करता। जैसा मिला, वैसा ही यहां दे रहा हूं – आज की यात्रा-पाती के रूप में।



सुदामा मुझे डिंडोरी गवर्नमेंट कॉलेज के मेन गेट पर ही मिल गया। सामने आते ही श्रद्धा से झुककर उसने मेरे पैर छू लिये।

अगर वह बस ‘गुड मॉर्निंग सर!’ कहता, तो मैं गर्मजोशी से हाथ मिलाता। पर अब मेरे पास उसे गले लगाने के सिवाय कोई विकल्प न था।

मैंने उसके सिर पर उंगलियाँ फिराईं — एक मौन आशीर्वाद सा दिया। हम दोनों ने समवेत स्वर में “नर्मदे हर!” का उद्घोष किया और चल पड़े।

सड़क पर दूर-दूर तक कोई नहीं था। हमारी ध्वनि शायद एक किलोमीटर दूर बहती नर्मदा ने ही सुनी होगी। हो सकता है माता ने मन-ही-मन हमें आशीष भी दिया हो… लेकिन मैं अभी यात्रा में इतना रमा नहीं था कि नदी का मौन कथन सुन सकूं।

लोग भोजन की शुरुआत अक्सर सलाद से करते हैं, कोई-कोई तो तीखी मिर्च से भी। पर हमारी यात्रा की शुरुआत यदि एक थाली होती, तो वह मिठाई से हुई — सीधी-सपाट सड़क पर बिना अवरोध चलना वैसा ही था, जैसे …रसगुल्ला गले में बिना प्रयास उतरे — ‘गड़प!’

आगे क्या मिलेगा, कौन जाने?

धौराई – गोंड लोगों का गांव
तीन किलोमीटर चलने पर एक बस्ती आई – धौराई। कोई बीस-पच्चीस घरों का गांव।
खपरैल की छतें, मिट्टी की दीवारें, और सामने की ज़मीन गोबर से लिपी हुई।

सुदामा बोला –
“सर, ये गोंड लोग हैं। सफाई के बहुत शौकीन होते हैं। नर्मदा के दूसरे तीर पर मैंने इन्हें देखा है पहले।”

एक दुकान दिखी। चाय बन रही थी। दुकानदार का नाम था – भीमा।
“दूध खतम हो गया है बाबूजी,” उसने कहा, “काली चाय बना दूं?”
हमने थोड़ी अनिच्छा जताई तो वह भीतर गया और बोला,
“बकरी का दूध है थोड़ा-बहुत। उससे बना दूं?”

पहली बार मैंने बकरी के दूध की चाय पी। बुरी नहीं थी। पर चाय की मिठास भीमा की बातों से थोड़ी कसैली हो गई।
भीमा ने संकोच से कहा कि बकरी का दूध तो घर के बच्चों के लिए था, पर उसने हमें दे दिया। बोला — “आप लोग भगत हैं, माई शायद आपकी सुनें। हम लोगों से तो अब रूठ गई लगती हैं।…”

कुछ देर हम खामोश रहे। फिर आठ किलोमीटर यूं ही चलते रहे। दो बोतल पानी खत्म कर डाला।
मेरा मन भोजन से विरत था, पर सुदामा की भूख कुलबुला रही होगी।

समस्तीपुर की पिस्तौल ब्रांड सत्तू
उसने झोले से निकाली – पिस्तौल ब्रांड सत्तू की थैली, समस्तीपुर से लाई हुई।
चीनी और थोड़ा नर्मदा जल मिला कर सत्तू घोला। गाढ़ा पेस्ट, हलुआ जैसा। उसने मुझे भी आग्रह किया –
“सर, दो चम्मच तो लीजिए।”

मैंने हामी में सिर हिलाया – और सत्तू से बिहार की बयार नर्मदा तट तक आ गई।

इस पोस्ट को बनाने में चैट जीपीटी से संवाद का योगदान रहा है।

एक जगह पुलिया मिली। वहीं बैठ कर आधा घंटा सुस्ताए।
पैर सीधे किये। सुदामा मेरे पैर दबाने को हुआ, पर मैंने मना कर दिया।
“रात में दस मिनट दीजिएगा सर… अच्छी नींद आयेगी,” वह बोला।

छपारी का छोटा मंदिर, बड़े दिल वाले बाबा जी
छपारी तिराहे से छपारी गांव पहुंचे। वहां से नर्मदा के किनारे एक छोटा सा शिव मंदिर मिला।
मंदिर छोटा था, पर वहां के बाबा का हृदय विशाल।

बाबा जी ने हमारे लिये खुद ही भोजन बनाया। गांव से कोई आधा सेर दही दे गया था। बाबा ने उसमें गुड़ मिला दिया।
दही-गुड़ का स्वाद जैसे गाय चराने वाले कृष्ण कन्हैया को बुला लाया हो!
और बाबा, शिव का सेवक होते हुए भी, मधुर आवाज में कृष्ण का भजन गाने लगे। सारंगी पर बजाते भी चले – घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किए…

इतना आनंद मुझे किसी ऑडीटोरियम की संगीत सभा में कहां मिल सकता था!

रात्रि विश्राम वहीं हुआ। बिजली नहीं थी, पर चांदनी भरपूर थी।
मैंने आधा घंटा नर्मदा की जलराशि निहारी —
…और सुदामा ने गुजराती बेन को ऑडियो संदेश भेजा। शायद बता रहा हो – नर्मदा किनारे सब कुशल है, और आज बाबा ने दही-गुड़ खिलाया।

पहला दिन – पूर्ण आनंद। नर्मदे हर!

आज डिंडोरी से नर्मदा किनारे छपारी के कंधूजी शिव मंदिर तक चले। कुल 15 किलोमीटर। सवेरे नौ बजे निकले और शाम पांच बजे विश्राम लिया। सुदामा को तो थकान नहीं लग रही थी, मेरे पैर टूट रहे थे। सुदामा के पैर सहलाते कब नींद आ गयी, पता नहीं चला।
आपका, नीलकंठ


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “आर्मचेयर परिक्रमा – डिंडोरी से कंधूजी शिव मंदिर

  1. शुभ प्रभात सर , यह नीलकंठ जी के किरदार को मैं समझ नही पा रहा, ये कौन है कंही ये आप ही की तो पुरानी यात्रा नही है ?

    Liked by 1 person

    1. अब यात्रा के लिये प्रचुर सामग्री नेट पर है। गूगल मैप, सेटलाइट व्यू में सब दिखता है नदी, तालाब, पहाड़, खेत, गांव, वहां के चित्र और वीडियो। शेष कभी पुस्तकें और विकीपेडिया पूरी करता है। शोध के लिये एआई बहुत बताता है। और फिर अपनी कल्पना।
      यह सब जोड़ कर यात्रा हो जाती है।
      मैं उस इलाके में कभी नहीं गया। ट्रेन से नर्मदा बहुत पार की हैं। ॐकारेश्वर मेरे रेल मंडल में था।
      यह सब जानकारी और मेरा काल्पनिक सेल्फ नीलकंठ – यात्रा चल रही है!

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