आलोक पुराणिक और बोरियत


दो शब्द ले लें जिनमे कुछ भी कॉमन न हो और शीर्षक बना दें. कितना ध्यानाकर्षक शीर्षक बनेगा! वही मैने किया है. आलोक और बोरियत में कोई कॉमनालिटी नहीं है. आलोक पुराणिक को मरघट के दृष्य पर लिखने को दे दें – मेरा पूरा विश्वास है कि वे जो भी अगड़म-बगड़म लिखेंगे उससे आप अपनीContinue reading “आलोक पुराणिक और बोरियत”

अ बिजनेस इज अ बिजनेस – गलत क्या है?


जो शीर्षक दिया है, वह हिन्दी अंग्रेजी घालमेल वाला हो गया है. इतना हिन्दी रखी है कि हिन्दी वाले नाक-भौं न सिकोड़ें. अन्यथा शीर्षक रखने का विचार था – अ बिजनेस इज़ अ बिजनेस इज़ अ बिजनेस – व्हाट्स रॉंग अबाउट इट! यह प्रतिक्रिया दिल्ली में ब्लॉगरों के जमावड़े के बारे में पढ़ कर है.Continue reading “अ बिजनेस इज अ बिजनेस – गलत क्या है?”

प. विष्णुकांत शास्त्री से क्या सीख सकते हैं चिठेरे?


पण्डित विष्णुकांत शास्त्री (1929-2005) को मैं बतौर आर.एस.एस. के सक्रिय सम्बद्ध व्यक्ति, पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष, भाजपा के उपाध्यक्ष अथवा उत्तरप्रदेश/उत्तराखण्ड के राज्यपाल के रूप में नहीं वरन एक लेखक के रूप में याद कर रहा हूं. और उस रूप में अच्छे ब्लॉगर के लिये एक सबक है – जो मैं बताना चाहता हूं.Continue reading “प. विष्णुकांत शास्त्री से क्या सीख सकते हैं चिठेरे?”

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