अफगानिस्तान, अफीम और आतंकवाद


मेरा सोचना था कि खनिज तेल की अर्थव्यवस्था इस्लामी आतंकवाद को धन मुहैया कराती है और जब तेल का वर्चस्व समाप्त हो जायेगा, तो आतंकवाद को फण्ड करने का जरीया नहीं बचेगा और इस्लाम पुन: एक प्रेम और भाईचारे पर आर्धारित, मानवीय समानता की अपनी पुरानी पहचान पर लौटेगा.

पर कल इकॉनमिस्ट में छपे एक बार चार्ट को देखने और उसके बाद इण्टरनेट खंगालने से मेरी चोटी (वास्तविक नहीं – वह तो रखी नहीं है) खड़ी हो गयी है. इस बार चार्ट के अनुसार अफगानिस्तान की अफीम की पैदावार बम्पर हुई है. सन 2007 में 8200 टन अफीम उत्पादन का अनुमान है जो पिछले वर्ष की तुलना में एक तिहाई (34%) अधिक है. अफगानिस्तान का अफीम उत्पादन इससे विश्व के कुल उत्पादन का 93% हो जायेगा.

आपको याद होगा कि अमेरिका और ब्रिटेन ने 11 सितम्बर 2001 के काण्ड के बाद अफगनिस्तान में युद्ध छेड़ने का एक ध्येय वहां की अफीम की खेती पर रोक लगाना भी था; जिससे हेरोइन बनाने और उसकी तस्करी पर रोक लग सके. निश्चय ही ये राष्ट्र उसमें जबरदस्त तरीके से विफल रहे हैं.

और पूरे युद्ध के बावजूद अफगानिस्तान (विशेषत: उसके दक्षिणी प्रांत हेलमण्ड, जो अफगानिस्तान का आधा अफीम पैदा करता है और जहां पिछले साल बढ़त 48% थी!) पर अफीम उत्पादन में कोई रोक नहीं लग पायी है. उल्टे उत्पादन बढ़ा है. कोई आश्चर्य नहीं कि अफगानिस्तान और विशेषत: हेलमण्ड प्रांत में आतंकवादियों की गतिविधियां बढ़ी हैं. हेलमण्ड प्रांत में ब्रिटिश सेना तालिबान के विरुद्ध अभियान में सक्रिय है, और अफीम की पैदावार बढ़ना उसकी नाकायमायाबी के रूप में देखा जा रहा है.

अफगानी सरकार और प्रांतीय सरकार कमजोरी और भ्रष्टाचार के चलते अक्षम रही है. साथ ही अमेरिका और ब्रिटेन की नीतियां भी! उधर हामिद करजई पश्चिम को दोष दे रहे हैं.

हेलमण्ड की आबादी केवल 25 लाख है और यह प्रांत विश्व का सबसे बड़ा अवैध ड्रग सप्लायर है. कोलम्बिया, मोरक्को और बर्मा इसके सामने बौने हैं.

अब मैं अपनी मूल बात पर लौटूं. मेरा सोचना कि खनिज तेल की अर्थ व्यवस्था आतंकवाद को हवा देने वाली है और उसके समाप्त होते ही आतंकवाद भी खत्म हो जायेगा – वास्तव में शेखचिल्ली की सोच थी. जब तक समृद्ध देशों में ड्रग्स के प्रति आकर्षण रहेगा, क्षणिक आनन्द देने वाले साधनों के प्रति रुझान रहेगा; पैसा वहां से निकल कर आसुरिक (पढ़ें आतंकी) शक्तियों के हाथ में जाता रहेगा. आतंक को जब तक सरलता से पैसा मिलता रहेगा, चाहे वह अवैध काम से हो, तब तक उसका नाश नहीं हो सकता.

आतंक का नाश केवल और केवल संयम और नैतिकता में ही है.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

10 thoughts on “अफगानिस्तान, अफीम और आतंकवाद

  1. विचारोत्तेजक मुद्दा है . इसी मुद्दे पर ‘अनहद नाद’ में एक कविता पढिये जो समकालीन सृजन के १९९४ में प्रकाशित अंक ‘धर्म,आतंकवाद और आज़ादी’ से ली गई है . रचनाकार हैं विकास नारायण राय जो भारतीय पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं .

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  2. बढ़िया!! वैसे ज्ञान दद्दा, ये संयम और नैतिकता वही है ना जिनके बारे मे बचपन से किताबों मे पढ़ते आए हैं। लेकिन लोचा ये है कि ना तो संयम से कभी परिचय हुआ ना ही नैतिकता का पता ठिकाना मालूम चला है।

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  3. हमारी समझ में एक बात ये आई कि चाहे धर्म के ठेकेदार हों या आतंकवाद के पैरोकार । सब अफीम से ही ड्राईव होते हैं । यानी ये कि दुनिया धुनकी से ही चलती है । हम आपकी ज्ञान बिड़ी की धुनकी में रहते हैं ।

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  4. बात गम्भीर कही है आपने. इसे मजाक में उडाने या सभ्य दुनिया को अमेरीका के बहाने बजारू बता देना बेवकुफी भर है.अफीम की खेती को कौन प्रोत्साहित कर रहा है?

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  5. तेल पैदा करने वाले देशों का आतंकवाद और निराला है. तेल पैदा करने वाले देश अपनी मर्जी के मुताबिक़ तेल का उत्पादन रोक कर या फिर कम करके दुनिया के बाकी देशों को आतंकित करते रहते हैं. इसे हम आर्थिक आतंकवाद कह सकते हैं.जहाँ तक संयम और नैतिकता की बात है तो हम कई सालों से बड़े संयम के साथ नैतिकता ढूढने में लगे हैं. लेकिन बार-बार इसी नतीजे पर पहुंचते हैं कि ‘आजकल नैतिकता मिल नहीं रही’.केवल समृद्ध देशों में ड्रग्स के प्रति आकर्षण है, ऐसी बात नहीं. हमारे अपने देश में ड्रग्स का सेवन करने वाले केवल समृद्ध लोग नहीं हैं.

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  6. सत्य वचन महाराज,आस्था चैनल और जी बिजनेस चैनल एक साथ चला दिया आज, अहो अहो। नैतिकता संयम का मसला सुनने में अच्छा है, पर इसे एक्जीक्यूट कईसे किया जाये। जरा इस विषय पर प्रकाश डालें कि नैतिकता और संयम इत्ता बोरिंग क्यों होता है। यह सब इंटरेस्टिंग कईसे हो, इस पर कुछ प्रकाश डालें।

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  7. मुल्ला ओमार खुद पीने वालों को कोड़ों से मारते.. हेरोइन तो वो हर्म की रक्षा के लिए पैदा कर रहे थे.. ताकि उसे बेच कर सच्चे धर्म की स्थापना के लिए पैसा आ सके.. उन की काले इरादों को मटियामेट करने के लिए अमरीका आया.. मगर उसने भी अफ़ीम की खेती को और बढ़ाया.. वो तो एक भला-नेक इरादों वाला-बाज़ारु देश है.. उसने ऐसा रंग क्यों दिखाया?

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  8. जब तक समृद्ध देशों में ड्रग्स के प्रति आकर्षण रहेगा, क्षणिक आनन्द देने वाले साधनों के प्रति रुझान रहेगा…बहुत सही कहा आपने. वैसे अफगानिस्तान का तो बस उत्पादन है—असल खेल तो वितरण का है..उस पर नजर दौड़ाये. उत्पादक तो ठीक उसी हालत में जैसे जैसे विदर्भ के किसान-कब न आत्म हत्या करना पड़े.

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  9. अच्छा है!आतंक का नाश केवल संयम और नैतिकता में ही है। लेकिन संयम और नैतिकता कहां मिलेगी? कौन भाव?

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  10. अरे हम तो यही समझते रह अफ़गनिस्तान मे बस धर्म की अफ़ीम के जरिये आंतकवादी बनते है..जरा पढाकू और धर्म निरपेक्ष लोग नोट करे ,वैसे इस धर्म मे किसी भी नशे को इजाजत नही दी गई है..

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