कर्ज लेते हैं पर लौटाते समय कोसते हैं बाजारवाद को!


बाजार है – वह भग्वद्गीता के स्थितप्रज्ञ दर्शन पर नहीं चलता है. वह उपभोक्ता केन्द्रित होता है और पूंजी तथा वस्तुओं के विनिमय को सुविधजनक बनाता है. बैंक बाजार की एक महत्वपूर्ण इकाई है. बैंक वाले रेलवे स्टेशन के हॉकर की तरह चाय-चाय की रट जैसा बोल लोन बाटें तो लोग अच्छा महसूस करते हैं.Continue reading “कर्ज लेते हैं पर लौटाते समय कोसते हैं बाजारवाद को!”

रुपये की पांचवी चवन्नी कहां है?


बिग बाजार पर किशोर बियाणी की किताब* ने विभिन्न प्रांतों मे लोगों की खुदरा खरीद की अलग-अलग आदतों पर प्रकाश डाला है. वह विवरण बहुत रोचक है. मैं उस अंश का मुक्त अनुवाद पेश करता हूं – “जैसे-जैसे हमने नये शहरों और नये लोगों को सेवा देनी प्रारम्भ की, हमें यह अहसास हो गया किContinue reading “रुपये की पांचवी चवन्नी कहां है?”

एथेनॉल चलायेगा कार – आपकी जीत होगी या हार!


मुझे यह आशा है कि देर सबेर ब्राजील की तर्ज पर भारत में एथेनॉल का प्रयोग डीजल/पेट्रोल ब्लैण्डिंग में 20-25% तक होने लगेगा और उससे न केवल पेट्रोलियम पर निर्भरता कम होगी, वरन उससे पूर्वांचल/बिहार की अर्थव्यवस्था भी चमकेगी. अभी चार दिन पहले बिजनेस स्टेण्डर्ड में लीड स्टोरी थी कि कई बड़े स्टॉक मार्केट केContinue reading “एथेनॉल चलायेगा कार – आपकी जीत होगी या हार!”

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