अगले साल नये आम होंगे, अशोक नई लग्गियां बनायेगा। अभी तो ये सभी उपेक्षित हो गयी हैं। गौतमस्थान की अहिल्या की तरह। प्रतीक्षा करतीं कि कोई आम आयेंगे और उनका उद्धार करेंगे!
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बारिश, चीकू और हजारा
उस रोज रात में बारिश हो रही थी। चीकू का गाछ झूम रहा था। सारा ध्यान उसी पर जा रहा था। अगले दिन यह सोच कर कि तेज हवा में उसके फल टूट कर बरबाद न हो जायें, हमने सारे फल तोड़ कर एक छोटे टब में पकने रख दिये। कल एक दो पके फल खाये। बहुत मीठे!
ठिठकता मानसून
आज की बारिश के बाद सांप निकलेंगे। वैसे इतने सालों में यह तो पता चल गया है कि अधिकांशत: वे भले कोबरा जैसे दीखते हों पर हैं चूहे खाने वाले असाढ़िया सांप ही। फिर भी सावधान तो रहना ही होता है।
