पलक – शरारती लड़की। मेरे गेट की डोरबेल बजा कर भाग जाती है। पकड़ने पर इतनी जोर से चिल्लाती है कि मानो उसका गला काट दिया जा रहा हो! तीन साल पहले इसपर पोस्ट लिखी थी – गुण्डी। अब तो यह बड़ी हो गयी है। स्कूल जाती है। यह फोटो सवेरे की है जब स्कूलContinue reading “बाल दिवस”
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लेट थे डाला छठ के सूरज
लगता है रात देर से सोये थे। मेरी तरह नींद की गोली गटक कर। देर हो गयी उठने में सूरज देव को। घाट पर भीड़ को मजे से इन्तजार कराया। लेकिन थे खूब चटक, लाल। उस अधेड़ मेहरारू की डलिया से लप्प से एक ठोकवा गपके और चढ़ गये आसमान की अटारी पर। हमसे बतियायेContinue reading “लेट थे डाला छठ के सूरज”
गुल्ले; टेम्पो कण्डक्टर
वह तब नहीं था, जब मैं टेम्पो में गोविन्द पुरी में बैठा। डाट की पुलिया के पास करीब पांच सौ मीटर की लम्बाई में सड़क धरती की बजाय चन्द्रमा की जमीन से गुजरती है और जहां हचकोले खाती टेम्पो में हम अपने सिर की खैरियत मनाते हैं कि वह टेम्पो की छत से न जाContinue reading “गुल्ले; टेम्पो कण्डक्टर”
