प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड


बीस पुरुष-स्त्रियां-बच्चे। साथ में 5-6 गठरियां। कुछ एल्यूमीनियम के बर्तन और बांस की टोकरी। बस इतना भर। जितने वयस्क उतने बच्चे। करछना (इलाहाबाद के समीप) स्टेशन पर किसी गाड़ी की प्रतीक्षारत थे सभी। ऐसा लगता नहीं कि उनका कोई घर होगा कहीं पर। जो कुछ था, सब साथ था। बहुत वृद्ध साथ नहीं थे। सम्भवतContinue reading “प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड”

डुप्लीकेट सामान बनाने का हुनर


बात शुरू हुई डुप्लीकेट दवाओं से। पश्चिम भारत से पूर्वांचल में आने पर डुप्लीकेट दवाओं का नाम ज्यादा सुना-पढ़ा है मैने। डुप्लीकेट दवाओं से बातचीत अन्य सामानों के डुप्लीकेट बनने पर चली। उसपर संजय कुमार जी ने रोचक विवरण दिया।संजय कुमार जी का परिचय मैं पहले दे चुका हूं – संजय कुमार, रागदरबारी और रेलContinue reading “डुप्लीकेट सामान बनाने का हुनर”

पीढ़ियों की सोच में अंतर


पिछले शनिवार को मैं लोकभारती प्रकाशन की सिविल लाइंस, इलाहाबाद की दुकान पर गया था। हिन्दी पुस्तकों का बड़ा जखीरा होता है वहां। बकौल मेरी पत्नी "मैं वहां 300 रुपये बर्बाद कर आया"। कुल 5 पुस्तकें लाया, औसत 60 रुपया प्रति पुस्तक। मेरे विचार से सस्ती और अच्छी पेपरबैक थीं। हिन्दी पुस्तकें अपेक्षाकृत सस्ती हैं।Continue reading “पीढ़ियों की सोच में अंतर”

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