बेंगळूरु में मैने अनथक निर्माण प्रक्रिया के दर्शन किये। फ्लाईओवर, सड़कें, मैट्रो रेल का जमीन से उठा अलाइनमेण्ट, बहुमंजिला इमारतें, मॉल … जो देखा बनते देखा। रिप वॉन विंकल बीस साल सोने के बाद उठा तो उसे दुनियां बदली नजर आई; पर बेंगळूरु के रिप वान विंकल को तो मात्र तीन चार साल में हीContinue reading “बेंगळूरु – कांक्रीट और वृक्ष का मल्लयुद्ध”
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विश्वनाथ जी की जय हो!
ओह, मैं काशी विश्वनाथ की बात नहीं कर रहा। मैं बंगलौर से हो कर आ रहा हूं और श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ज्योति विश्वनाथ की बात कर रहा हूं! उनको अपने ब्लॉग के निमित्त मैं जानता था। मेरे इस ब्लॉग पर उनकी अनेक अतिथि पोस्टें हैं। उनकी अनेक बड़ी बड़ी, सारगर्भित टिप्पणियांContinue reading “विश्वनाथ जी की जय हो!”
बेंगळुरु
कल सवेरे ट्रेन आन्ध्र के तटीय इलाके से गुजर रही थी। कहीं कहीं सो समुद्र स्पष्ट दिख रहा था। कोवली के पास तो बहुत ही समीप था। सूर्योदय अपनी मिरर इमेज़ समुद्र के पानी में ही बना रहा था। धान के खेत थे। कहीं कहीं नारियल ताड़ के झुरमुट। आगे चल कर रेनेगुण्टा से जब ट्रेनContinue reading “बेंगळुरु”
