कितने सारे लोग कविता ठेलते हैं। ब्लॉग के सफे पर सरका देते हैं असम्बद्ध पंक्तियां। मेरा भी मन होता है; जमा दूं पंक्तियां – वैसे ही जैसे जमाती हैं मेरी पत्नी दही। जामन के रूप में ले कर प्रियंकर जी के ब्लॉग से कुछ शब्द और अपने कुछ असंबद्ध शब्द/वाक्य का दूध। क्या ऐसे हीContinue reading “कितना आसान है कविता लिखना?”
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असीम प्रसन्नता और गहन विषाद
इलाहाबाद से चलते समय मेरी पत्नीजी ने हिदायत दी थी कि प्रियंकर जी, बालकिशन और शिवकुमार मिश्र से अवश्य मिल कर आना। ऑफकोर्स, सौ रुपये की बोतल का पानी न पीना। लिहाजा, शिवकुमार मिश्र के दफ्तर में हम सभी मिल पाये। शिव मेरे विभागीय सम्मेलन कक्ष से मुझे अपने दफ्तर ले गये। वहां बालकिशन आयेContinue reading “असीम प्रसन्नता और गहन विषाद”
भविष्यद्रष्टा
रागदरबारीत्व सब जगह पसरा पड़ा है मेरे घर के आसपास। बस देखने सुनने वाला चाहिये। यह जगह शिवपालगंज से कमतर नहीं है। कुछ दिन पहले मैं चिरकुट सी किराने की दुकान पर नारियल खरीद रहा था। विशुद्ध गंजही दुकान। दुकानदार पालथी मार कर बैठा था। मैली गंजी पहने। उसका जवान लड़का लुंगी कंछाड़ मारे औरContinue reading “भविष्यद्रष्टा”
