कहाँ से कसवाये हो जी!


साइकल ऑफ-द-शेल्फ मिलने वाला उत्पाद नहीं है। आप दुकान पर बाइसाइकल खरीदते हैं। उसके एक्सेसरीज पर सहमति जताते हैं। उसके बाद उसके पुर्जे कसे जाते हैं। नयी साइकल ले कर आप निकलते हैं तो मित्र गण उसे देख कर पूछते हैं – ‘नयी है! कहाँ से कसवाये भाई!?’। नयी चीज, नया प्रकरण या नया माहौलContinue reading “कहाँ से कसवाये हो जी!”

राजकमल, लोकभारती और पुस्तक व्यवसाय


सतहत्तर वर्षीय दिनेश ग्रोवर जी सतहत्तर वर्षीय दिनेश ग्रोवर जी (लोकभारती, इलाहाबाद के मालिक) बहुत जीवंत व्यक्ति हैं। उनसे मिल कर मन प्रसन्न हो गया। व्यवसाय में लगे ज्यादातर लोगों से मेरी आवृति ट्यून नहीं होती। सामान्यत वैसे लोग आपसे दुनियाँ जहान की बात करते हैं, पर जब उनके अपने व्यवसाय की बात आती हैContinue reading “राजकमल, लोकभारती और पुस्तक व्यवसाय”

मेरा चना बना है आली!


गा-गा कर चने बेचने वाले लगता है भूतकाल हो गये। साइकल पर चने-कुरमुरे या चपटे मसालेदार चने का कनस्तर कैरियर पर लादे आगे टोकरी में अखबार के ठोंगे रखे नमकीन चने बेचने वाला गली से निकलता था तो हर मकान से भरभरा कर बच्चे और उनके पीछे बड़े भी निकल आया करते थे। बेचने वालेContinue reading “मेरा चना बना है आली!”

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