किकी का कथन


सतीश पंचम ने मुझे किकी कहा है – किताबी कीड़ा। किताबें बचपन से चमत्कृत करती रही हैं मुझे। उनकी गन्ध, उनकी बाइण्डिंग, छपाई, फॉण्ट, भाषा, प्रीफेस, फुटनोट, इण्डेक्स, एपेण्डिक्स, पब्लिकेशन का सन, कॉपीराइट का प्रकार/ और अधिकार — सब कुछ। काफी समय तक पढ़ने के लिये किताब की बाइण्डिंग क्रैक करना मुझे खराब लगता था।Continue reading “किकी का कथन”

हिन्दी हितैषणा वाया जर्सी गाय


हिन्दी ‘सेवा’ की बात ब्लॉगजगत में लोग करें तो आप भुनभुना सकते हैं। पर आपके सपोर्ट में कोई आता नहीं। पता नहीं, इतने सारे लोग हिन्दी की सेवा करना चाहते हैं। हिन्दी ब्लॉगजगत में सभी स्वार्थी/निस्वार्थी हिन्दी को चमकाने में रत हैं और हिन्दी है कि चमक ही नहीं रही। निश्चय ही हिन्दी सेवा पाखण्डContinue reading “हिन्दी हितैषणा वाया जर्सी गाय”

आत्मना-अतुष्ट


कभी कभी लगता है ब्लॉग बन्द करने का समय आ गया। इस लिये नहीं कि पाठक नहीं हैं। पाठक की अनिवार्यता को ब्लॉग ले कर चलता है और उसे बढ़ाने के निश्चित टोटके हैं। वह टोटके पालन करता रहा हूं, यह शायद अर्ध सत्य होगा; पर उन टोटकों की पहचान जरूर है। लिहाजा, पाठक कीContinue reading “आत्मना-अतुष्ट”

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