जून 12, अठाईसवां दिन। प्रेमसागर चल रहे हैं; मैं लिखते-लिखते बह रहा हूँ। कुछ ज्यादा ही बह(क) रहा हूं! पीलीकरार से पांच बजे निकल लिये प्रेम गुरूजी। निकलते समय एक सज्जन नर्मदा प्रसाद जी ने एक गमछा और इक्यावन रुपया अर्पण कर विदाई की उनकी। कल एक गमछा पाये और आज एक और। क्या करेंगेContinue reading “पीलीकरार से सुडानिया”
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गंजीत से पीलीकरार
सताईसवां दिन – मिले नाश्ता, गमछा, लाठी और इक्यावन रुपये दो विकल्प थे प्रेमसागर के पास। एक था पक्की सड़क के रास्ते चलने का और दूसरा नर्मदा किनारे किनारे कुछ असुविधाजनक मार्ग का। ज्यादातर लोग सुविधा चाहते होंगे। मैं तोल रहा था कि प्रेमसागर कौन सा रास्ता चुनते हैं। अगर वे झटपट परिक्रमा कर अपनेContinue reading “गंजीत से पीलीकरार”
नीलकंठ से गंजीत
दस जून: श्रद्धा की छाया में छब्बीसवां दिन नीलकंठ से रवाना होते ही एक सज्जन पीछे से आये और प्रेमसागर को हलवा दे कर चले गये। ज्यादा बात भी नहीं हुई उनसे। यह जरूर था कि वे नीलकंठ के थे। अपने खेत पर जाने की जल्दी मे थे वे। नाम बताया – रघुराज सिंह। यूंContinue reading “नीलकंठ से गंजीत”
