प्रेमसागर खेत के बीच भी हिल कर चाय की पत्तियों को परखे और उनकी गंध से परिचित हुये। “भईया मैं आपके लिये यहां से एक किलो चाय ले कर आऊंगा। एक किलो तैयार की हुई फेक्टरी से निकली चाय और कुछ चुनी हुई चाय की पत्तियां भी।…”
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कंकी से अलीगंज
महादेव के भरोसे ही तो चल रहे हैं प्रेमसागर। जीजीविषा है, संकल्प है, पर महादेव की सहायता के चमत्कार भी बहुत हैं। फटक गिरधारी, न लोटा न थारी की तरह यात्रा पर निकल लिये हैं और सब इंतजाम हुये जा रहा है! यह मिरेकल ही तो है!
डगरुआ से कंकी, महानंदा पार करते हुये
“बोले कि उनका धरम (इस्लाम) नफरत का नहीं है। सेवा सिखाता है। देश में लोग गलत रास्ते जा रहे हैं, पर हम अपनी परम्परा बचा कर रखे हुये हैं। लोग यह समझ लें कि सबको साथ रहना है तो हमारे लिये जो घृणा होती जा रही है, वह न हो।”
