जैसे गड़रिये, गाड्डुलिये लोहार, बतख का रेवड़ ले कर चलने वाले हैं। वैसे ही ये मधुमक्खी का रेवड़ ले कर घूमते फिरते हैं। हजारों हैं इस रोजगार में।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
जैसे गड़रिये, गाड्डुलिये लोहार, बतख का रेवड़ ले कर चलने वाले हैं। वैसे ही ये मधुमक्खी का रेवड़ ले कर घूमते फिरते हैं। हजारों हैं इस रोजगार में।