वह तो एक स्नेहपूर्ण समीकरण बना लिया है पाणिनि पण्डित से कि पिन चुभाने में मजा आता है। वर्ना बाबा को सुनना और रामचंद्र गुहा को पढ़ना – वैचारिक मतभेद के बावजूद – मुझे प्रिय है।
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कमलेश किशोर और आजतक रेडियो
लोगों की सोच को जो मीडिया ने हाईजैक कर लिया है, वह इस युग की बड़ी और भीषण क्राइसिस है। उसने लोगों की सोच को उद्दीप्त नहीं, कुंद ही किया है। सही सोच के तो छोटे छोटे द्वीप ही दिखते हैं। तीनताल वाले उनमें से हैं।