कमलेश किशोर और आजतक रेडियो

आजतक रेडियो वालों का इस बुधवार को कंटिया था – हालचाल ठीक ठाक है? बेबाक बुधवार में इस बार एक बढ़िया काम कुलदीप मिश्र जी ने किया कि खोज खोज कर श्रोताओं को स्पीकरत्व प्रदान किया।

बेबाक बुधवार का कल का ट्विटर स्पेसेज पर कार्यक्रम

वैसे किसी भी अभिव्यक्ति के माध्यम में ज्यादा स्पेस तो पत्रकार बिरादरी हड़प लेती है। उससे पहले मुझे – ब्लॉगिंग के शुरुआती जमाने में – कोफ्त हुआ करती थी। तब हिंदी ब्लॉगिंग पर ये जीव जमे हुये थे और हिंदी ब्लॉगिंग को अपना इलाका समझते थे। हम जैसे गरीब को, जिसकी हिंदी टूटी फूटी थी, चहेट लेते थे। … अब वह कोफ्त नहीं रही। कुछ तो हम भी उनके खेल के नियम कायदे समझ गये। कुछ समझ विकसित हो गयी कि वे भी अपना काम कर रहे हैंं और बड़ी ईमानदारी से, बड़ी उत्कृष्टता से कर रहे हैं। समय आपके खुरदरेपन को मुलायम कर देता है। वही मेरे साथ भी हुआ। अब पत्रकार वर्ग में कई लोग बहुत प्रिय लगते हैं। कई मित्र भी हैं। कई को देख कर लगता है कि उनके जैसी अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता हासिल की जाये – भले ही अब 65+ की उम्र हो गयी है; सीखने में कोई भी अवस्था बाधा नहीं होती।

कल बुधवार को कई लोग बोले। बहुत से कमलेश किशोर सिंह (तीन ताल के ताऊ और आजतक रेडियो के होन्चो) से अत्यधिक प्रभावित थे। कमलेश जी की खरखराती वजनदार आवाज और उसी वजन से किसी भी मुद्दे पर कॉण्ट्रेरियन सोच सामने रख कर सामने वाले को एकबारगी ऑफ बैलेंस कर देने या जब वह अपेक्षा नहीं कर रहा हो, तब उसकी सूक्ष्म सी खूबी को सामने ला कर उसे चमत्कृत/गदगद कर देने की जो खासियत उनमें है, उसका मै भी प्रशंसक हूं। और यह खूबी एम्यूलेट करने की कोशिश करूंगा।

खैर, मुद्दे पर आता हूं। ये तीनतालिये कोई भी विषय रखें बेबाक बुधवार के लिये; लोग बातचीत घुमाफिरा कर उन्ही विषयों पर ले आते हैं, जो मीडिया आजकल परोस रहा होता है। लगता है लोगों के अपने ऑब्जर्वेशन – अपने परिवेश को देखने की दृष्टि; मीडियॉटिक बम्बार्डमेण्ट के मुद्दों से बहुत सीमा तक मद्धिम पड़ जाती है। हम वही सोचते-बोलते हैं जो टेलीवीजन की “बड़ी खबर” चीखती एंकर हमें परोसती है – 24X7X365! सो इस बार विषय था – हालचाल ठीक ठाक है? और ज्यादा स्पेस अमरीकी सेना के हवाई जहाज से टपकते अफगानियों ने ले लिया। बची जगह अर्थव्यवस्था, मिडिलक्लास सेंसिबिलिटी, क्लाइमेट चेंज जैसे विषयों ने समेट ली। … वह वही सब है जो टीवी या प्रिण्ट मीडिया में पसरा हुआ है।

लोगों की सोच को जो मीडिया ने हाईजैक कर लिया है, वह इस युग की बड़ी और भीषण क्राइसिस है। उसने लोगों की सोच को उद्दीप्त नहीं, कुंद ही किया है। सही सोच के तो छोटे छोटे द्वीप ही दिखते हैं। तीनताल वाले उनमें से हैं।

मेरे आसपास जो बिखरा है – बाढ़ आयी-गयी, धान लहलहा रहा है। अरहर ज्यादा पानी में झुलस गयी है। हाईवे पर यातायात सामान्य सा हो गया है। यानी कामधाम चलने लगा है। डेमू रेल गाड़ी में भीड़ (ज्यादा तर बिना टिकट वाली) बढ़ रही है। सावन में बाबा विश्वनाथ के यहां बेलपत्र – दूब आदि कि दरकार बढ़ गयी है। शौचालय बन गये हैं और तब भी लोग प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क के किनारों को हग कर आबाद कर रहे हैं। – यह सब तो हाल चाल में आता ही नहीं। ले दे कर वही अफगानिस्तान, वही तालिबान की घण्टियाँ लोगों ने बजाईं। जिसके लिये कमलेश किशोर सिंह जी के शब्द उधार लूं, तो किसी को “घण्टा” फरक नहीं पड़ता। आखिर इस्लाम भी उनका, तालिबान भी उनका, बंदूक का आतंक भी उनका, शरीया का शासन-कुशासन भी उनका। वे अफगानी जानें, उनका काम जाने। यह तो हमारे हियाँ के मध्यवर्ग की हिपोक्रेसी है जो दुनियाँजहान के मुद्दों पर सोच सोच कर दुबली होती है।

कमलेश किशोर सिन्ह, उनके लिंक्ड-इन पेज का स्क्रीन शॉट

कमलेश किशोर सिन्ह जी से एक चीज मैं कहना चाहता हूं। वे आजतक रेडियो के होन्चो हैं, और बार बार कहते भी रहते हैं कि पॉडकास्ट की दुनियाँ अलहदा चीज है। उन्हें यह कोर्स करेक्शन करना चाहिये। वे अपनी जमात के नौजवानों को मोटीवेट कर सकते हैं कि बम्बास्टिक मुद्दों की बजाय उन बातों पर अपने टेलिस्कोप का फोकस धीरे धीरे खिसकायें, जो लोगों के, जनता के, गांवगिरांव के वास्तविक मुद्दे हैं। मुझे उनकी बात पसंद आयी कि आदमी इस अहंकार, इस मुगालते में न रहे कि वह क्लाइमेट चेंज की त्रासदी का जनक है और वही इस क्लाइमेट चेंज को रीवर्स कर लेने की ताकत रखता है। बावजूद इसके कि वह “बड़ा पावरफुल” है; वह भी एक्स्टिंट होगा और भविष्य में जो भी प्रजाति रहेगी, वह होमो सेपियंस का जुर्रासिक पार्क बनायेगी।

मेरी उम्र मेरे पक्ष में नहीं है (शायद); अगर मुझे अपनी पहली पारी दुबारा खेलनी होती तो कमलेश किशोर सिन्ह से कई इनपुट्स लेता। वे धर्म को डिनाउंस करते दिखे। मैं शायद उन्हीं के गुर सीख कर किसी दक्षिणपंथी मीडिया को पोसता। … कभी स्वराज्य वाली मैडम मुझसे उनके लिये लिखने को कह भी चुकी थीं! 😆


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

8 thoughts on “कमलेश किशोर और आजतक रेडियो

  1. यही सबसे सही उम्र है आपकी। अनुभव का भंडार है, पंथ विशेष बाचने के लिये धन का चाबुक नहीं है, कहाँ ऐसा सुयोग मिलता है भला?

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  2. मेरी उम्र मेरे पक्ष में नहीं है (शायद)?? यही तो सही उम्र है। इसी उम्र पर बंदा अमेरीका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ लेता है। आप तो मन की कर गुजरो। हम तो खुद ‘की नोट स्पीकर’ का नया प्रोफेशन आजमाने में लगे हैं 🙂 चल भी पड़ा ही है

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      1. मोटी कमाई है स्पीकर के धंधे में – 5 से 6 स्पीच में साल भर की सेलेरी के बराबर पहुँच गए और अभी 7 महीने बाकी हैं – 1 से 1:30 घंटे ज्ञान सरिता बहानी होती है बस! निकल पडिए एक राह पकड़ !! चीयर्स

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