चाय के बागान और उनके मालिकों के नाम पर मन में किसी अंग्रेज साहब या मेम की छवि मन में बनती है।
पर, जो चित्र प्रेमसागर ने जीवन पाल के घर-परिवार के भेजे, उनसे यह मिथक ध्वस्त हो गया।
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कोकराझार से जोगीघोपा, ब्रह्मपुत्र किनारे!
दिन भर चलने और 53 किमी नापने के बाद पता चला कि सहायता के नाम पर ठेंगा है। उन्हें एक मंदिर में रहने को कहा। मंदिर में पुजारी ने बताया कि जमीन पर सो जाईये। ओढ़ने बिछाने और भोजन का कोई इंतजाम नहीं।
बारोबीशा से कोकराझार – बोड़ोलैण्ड असम
नदी पार करने के बाद शायद शिमुलटापू है। असम शुरू हो गया है। एक दुकान में बेंत का काम दीखता है। बिकाऊ सो-पीस और फर्नीचर।
“लोग कोऑपरेटिव मिले आज। असमिया थे। ज्यादातर ठाकुर बाभन। कुछ मारवाड़ी भी मिले।”
