नदी-नहर-खेत-खलिहान के ढेरों चित्रों की बजाय पगडण्डी का वह साधारण सा चित्र मुझे भा गया जो प्रेमसागर ने राह चलते क्लिक किया था। पगडण्डी सही में घुमक्कड़ी है। मेरा बस चले तो प्रेमसागर दूरी न नापें। यात्रा-आनंद तलाशें।
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बिक्रमगंज से दाऊदनगर
तीन सदी पहले दाउदनगर में शेर और बघेरे तो नहीं थे, पर भेड़िये जरूर थे। अफीम, बर्तन और कपड़े का उद्योग था। यहां के आढ़तियों का व्यवसाय बनारस तक चलता था और उनकी हुण्डी की बनारस में अहमियत थी। लोग ‘खुशहाल’ थे।
सेमरी के आगे से बिक्रमगंज
प्रेमसागर आगे की यात्रा की बात कर रहे हैं। तबियत ठीक नहीं है। होली का मौसम है। लोग रास्ते भर हुड़दंग करने वाले होंगे ही। पर उनको तो चलना है। चरैवेति, चरैवेति!
