मैं सोचता था कहीं लोगों का जमावड़ा नहीं होगा। पर मैँ गलत निकला। एक जगह चालीस पचास की भीड़ थी। … सवेरे सवेरे कजिया (स्त्रियों/ग्रामीणों की रार) हो रही थी।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
मैं सोचता था कहीं लोगों का जमावड़ा नहीं होगा। पर मैँ गलत निकला। एक जगह चालीस पचास की भीड़ थी। … सवेरे सवेरे कजिया (स्त्रियों/ग्रामीणों की रार) हो रही थी।