प्रेमसागर की यात्रा बिना नोटबुक के और एक खराब मेमोरी के साथ हो रही है! मेरी झुंझलाहट पर वे सीधे प्रतिक्रिया नहीं करते पर कुछ देर बाद बोले – “अब भईया, निकल लिये हैं तो आगे महादेव जाने, माई जानें। वे ही कोई न कोई बेवस्था (व्यवस्था) करेंगे।”
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वाराही, विशालाक्षी, विश्वनाथ और वाराणसी
किसी ने उन्हें सूचना दी कि वाराही माता का मंदिर सवेरे तीन से पांच बजे ही खुलता है। सो प्रेमसागर लगता है सोये ही नहीं। दो बजे रात में उठ कर जब मंदिर पर पंहुचे तो पता चला कि मंदिर सवेरे साढ़े सात से साढ़े नौ बजे तक खुलता है।
शक्तिपीठ पदयात्रा में प्रयाग-विंध्याचल-वाराणसी
पीछे कांधे पर लेने वाला यह पिट्ठू बैग और एक दहिमन की लकड़ी की डण्डी – यही उनका सामान है। कपड़े न्यूनतम हैं। अपनी पोटली में उन्होने सोठउरा, तिल, गुड़ और गोंद का लड्डू और कुछ सूखे मेवे रखे थे। वह मुझे दिखाये भी और चखाये भी।
प्रयागराज में अलोपी माता और अष्टादश महाशक्ति पीठ
गुड्डू मिश्र के अनुसार एक गुरू के निर्देश अनुसार यात्रा करनी चाहिये। गुरू और श्रद्धा के आधार पर यात्रा।
[…] घुमक्कड़ी के अपने अलग रोमांच हैं। अपना अलग तरीके का आनंद। प्रेमसागर शायद वह ले रहे हैं।
कटरा-घुमा-सोहागी पहाड़ी और चाकघाट
चूना पत्थर की खदान से बड़े तालाब/झील बन गये हैं और उनमें पानी भी खूब जमा है। बड़ा सुंदर लगते हैंं ताल के वे चित्र। मन होता है कभी वहां का चक्कर लगाया जाये। 🙂
रींवा से कटरा
रास्ता लम्बा था तो प्रेमसागर चलते ही रहे। लालगांव के पास कुछ सुरापान किये लोग उन्हें उन्हीं के यहां रुकने और रात गुजारने की जिद कर रहे थे। बकौल प्रेमसागर – बड़ी मुश्किल से उनसे जान छुड़ाई। 🙂