कल सवेरे समाचारपत्र में था कि मुख्यमंत्री ने हिदायत दी है प्रदेश में आते ही प्रवासी श्रमिकों को पानी और भोजन दिया जाये। उनकी स्क्रीनिंग की जाये और उनको उनके गंतव्य तक पंहुचाने का इंतजाम किया जाये।

यह तो उन्होने परसों कहा होगा। कल इस कथन का असर नहीं था। मेरे सामने साइकिल से आये कई लोग अक्षयपात्र समूह द्वारा चलाये जा रहे भण्डारे में भोजन-विश्राम करते दिखे। दो पैदल चलते श्रमिकों को भी धीरज-राहुल ने बुलाया भोजन के लिये। कई ट्रकों में ठुंसे हुये लोग तो थे ही। कल जिला प्रशासन के अधीनस्थ अधिकारी और पुलीस की गाड़ियां आसपास से आये-गुजरे। कल तक तो मुख्यमंत्री के कथन का असर नजर नहीं आया था।
यह कल के भोजन वितरण का चित्र है –

आज, जरूर अंतर नजर आया। सवेरे साइकिल भ्रमण के दौरान मेरे आठ किलोमीटर हाईवे पर आते जाते एक भी कोरोना-प्रवासी नजर नहीं आया – न पैदल, न साइकिल पर और न ट्रकों में। एक ट्रेलर पर कुछ लोग दिखे, पर वे शायद किसी जगह के निर्माण कर्मी थे।
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