दशा शौचनीय है (कुछ) हिन्दी के चिठ्ठों की?


अज़दक जी आजकल बुरी और अच्छी हिन्दी पर लिख रहे हैं. उनके पोस्ट पर अनामदास जी ने एक बहूत (स्पेलिंग की गलती निकालने का कष्ट न करें, यह बहुत को सुपर-सुपरलेटिव दर्जा देने को लिखा है) मस्त टिप्पणी की है: “…सारी समस्या यही है कि स्थिति शोचनीय है लेकिन कुछ शौचनीय भी लिख रहे हैं,Continue reading “दशा शौचनीय है (कुछ) हिन्दी के चिठ्ठों की?”

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