ऊंट पर बोझ लादने की तकनीक

ऊंट अड़ियल जीव है. आसानी से उसपर बोझा नहीं लादा जा सकता. बोझा लादने की ट्रेनिंग दी जाती है. बैठी अवस्था में उसपर बोरियां लाद दी जाती हैं और फिर उससे खड़ा होने को उत्प्रेरित किया जाता है. वह, अड़ियल सा बैठा रहता है. फिर उसके सामने से दो बोरियां गिरायी जाती हैं और उसे फिर खड़ा करने का यत्न किया जाता है. यह सामने से बोरी गिराने की प्रक्रिया तब तक की जाती है, जब तक ऊंट संतुष्ट हो जाये कि उसका पर्याप्त बोझा उतार दिया गया है. जब वह खड़ा हो जाता है तो पीछे से उतनी बोरियां, जितनी और लादी जा सकती हैं, उसपर फिर लाद जी जाती हैं. ऊंट संतुष्ट भाव से बोझा लेकर चलने लगता है.

यही तकनीक बेहतर प्रबन्धन के जाल के साथ, आदमी के साथ भी प्रयोग में लायी जाती है.

राम प्रसाद फनफनाता हुआ इस प्रकार मेरे पास आया जैसे राम प्रसाद बिस्मिल हो विशुद्ध क्रंतिकारी अन्दाज में. बोलासाहब यह नहीं चल सकता. आदमी हैं और आप जानवर की तरह काम लादे जा रहे हैं. बाकी लोग मजे कर रहे है और आप हमें ही रगेदे जा रहे हैं.

राम प्रसाद को एक गिलास ठण्डा पानी ऑफर किया गया. पूरी सहानुभूति के साथ यह माना गया कि उसपर काम का बोझ ज्यादा है. उसकी सहमति से उसके एक दो काम कम कर दिये. राम प्रसाद प्रसन्न हो चला गया. बाद में राम प्रसाद पर जिन एडीशनल कार्यों को लादा गया जिनका लादा जाना राम प्रसाद ने नोटिस ही नहीं लिया वे काम राम प्रसाद प्रसन्न वदन करता था. साथ में यह भाव भी कि साहब नें उसे सुना, उसकी बात मानी. वह साहब के क्लोज है.

हर आदमी में ऊंट है. उससे उतना काम लेना चाहिये जितनी उसकी क्षमता है. पर कैसे लेना चाहिये यह तो आपको ऊंट के ट्रेनर से ही सीखना पड़ेगा.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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