चित भी मेरी और पट भी

बचपन में मां चिडिया की कहानी बताती थीं. चिड़िया अपनी कुलही (टोपी) पर इतराती फिर रही थी. कह रही थी कि उसकी कुलही राजमुकुट से भी अधिक सुन्दर है. उसके गायन से तंग आ कर कुलही राजा ने छीन ली थी. चिड़िया गाती फिरी रजवा सैतान मोर कुलही लिहेस.(राजा शैतान है. उसने मेरी टोपी ले ली है.)

चिड़िया के निन्दा करने से भी राजा तंग हो गया. जरा सी कुलही. उसपर इतना सुनना पड़ रहा था. राजा नें कुलही लौटा दी.

अब चिड़िया गाने लगी रजवा ड़ेरान मोर कुलही दिहेस. (राजा ड़र गया. उसने मेरी टोपी लौटा दी.) ”

यानी चित भी चिड़िया की और पट भी. यही हाल हमारे जन मानस का है. निंदा और व्यंग हमारी जीवन शैली है. हमारे अखबार और मीडिया के लोग इसे बखूबी जानते हैं. राजा की झूठी सच्ची निन्दा में बड़ा मन लगता है. वह बिकता जो है.

राजा माने सरकार. राजा माने पूंजीपति. राजा माने वह जिसने प्रभुता प्राप्त कर ली है. इसलिये मेधा पटकर/अरुन्धती राय/वर्वर राव/गदर का मात्र महिमा मण्डन होता है. ये लोग चिड़िया का रोल अदा करते हैं. अमेरिका/सोनिया गान्धी/टाटा/बिड़ला/नरेन्द मोदी/मायावती/राहुल/प्रियंका/बुद्धदेव भट्टाचार्य/…./….. ये सब निशाने पर होते हैं. ये मेहनत करें तो गलत. ये गलतियां करे तो बहुत ही अच्छा!

अब देखें बीएसएनएल ने जनवरी,2007 से ब्रॉडबैंड सेवा सस्ती कर दी. पट से रियेक्शन आया पहले कितना लूट रहे थे ये लोग! फिर बीएसएनएल ब्रॉडबैंड के लिये लाइन लग गयी. कल मैने हिन्दी के अखबार में पढ़ा मार्च से आवेदन पैंडिंग हैं. यह प्राइवेट संचार कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिये किया जा रहा है. अब अगर यह प्राइवेट कम्पनियों को फायदे के लिये किया जा रहा है तो जनवरी में प्राइवेट कम्पनियों की नसबन्दी का प्रयास उसी बीएसएनएल ने क्यों किया?

यह सिनिसिज्म अखबार/मीडिया का नहीं है. वे तो वह परोसते हैं, जो बिकता है. यह सिनिसिज्म समाज का है. समाज में हम-आप आते हैं.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “चित भी मेरी और पट भी

  1. यह असुरक्षा,अविश्वास,संदेह और सिनिसिज़्म का उर्वर समय है ज्ञान जी . वैसा ही मायाजाल है .चक्र तेजी से घूम रहा है . तिस पर इतनी मछलियां हैं और इतनी आंखें कि आज का अर्जुन चौंधियाया हुआ है. चोर-सिपाही , ईमानदार-साहूकार और सच्चे-झूठे का भेद अज़ब-गजब है .आम आदमी अलीबाबा की तरह चकराया हुआ है . कोई मरजीना भी नहीं है मदद के लिए . हर तरफ़ चालीस चोर और उनके साथी ही दिखाई दे रहे हैं . ऐसे विकट समय में सिनिसिज़्म और शुद्ध देशी सिनिसिज़्म ही हमारे समय का सबसे बड़ा मूल्य है .

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