हिन्दी ब्लॉगरी में नॉन-कंट्रोवर्शियल बनने के 10 तरीके

झगड़ा-टण्टा बेकार है. देर सबेर सबको यह बोध-ज्ञान होता है. संजय जी रोज ब्लॉग परखने चले आते हैं, लिखते हैं कि लिखेंगे नहीं. फलाने जी का लिखा उनका भी मान लिया जाये. काकेश कहते हैं कि वे तो निहायत निरीह प्राणी हैं फिर भी उन्हे राइट-लेफ़्ट झगड़े में घसीट लिया गया. लिहाजा वे कहीं भी कुछ कहने से बच रहे हैं. और कह भी रहे हैं तो अपनी जुबानी नहीं परसाई जी के मुह से. जिससे कि अगर कभी विवाद भी हो तो परसाई जी के नाम जाये और विवाद की ई-मेल धर्मराज के पास फार्वर्ड कर दी जाये. लोग शरीफ-शरीफ से दिखना चाह रहे हैं. और श्रीश जी जैसे जो सही में शरीफ हैं, उन्हे शरीफ कहो तो और विनम्र हो कर कहते हैं कि उनसे क्या गुस्ताखी हो गयी जो उन्हे शरीफ कहा जा रहा है. फुरसतिया सुकुल जी भी हायकू गायन कर रहे हैं या फिर बिल्कुल विवादहीन माखनलाल चतुर्वेदी जी पर लम्बी स्प्रेडशीट फैलाये हैं. हो क्या गया है?

हवा में उमस है. मित्रों, पुरवाई नहीं चल रही. वातानुकूलित स्टेल हवा ने हमारा भी संतुलन खराब कर रखा है. हिन्दी पर कोई साफ-साफ स्टैण्ड ही नहीं ले पा रहे हैं. कभी फ्लिप तो कभी फ्लॉप. ज्यादातर फ्लॉप. हमारे एवरग्रीन टॉपिक – कॉर्पोरेट के पक्ष और समाजवाद/साम्यवाद को आउटडेट बताने के ऊपर भी कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा. अज़दक जी के ब्लॉग का हाइपर लिंक बना कर लिखें तो कितना लिखें!

ऐसे में, लगता है नॉन-कण्ट्रोवर्शियल बनना बेस्ट पॉलिसी है. इसके निम्न 10 उपाय नजर आते हैं:

  1. अपने ब्लॉग को केवल फोटो वाला ब्लॉग रखें. फोटो के शीर्षक भी दें “बिना-शीर्षक” 1/2/3/4/… आदि.
  2. लिखें तो टॉलस्टाय/प्रेमचन्द/परसाई जी आदि से कबाड़ कर और उन्हे कोट करते हुये. ताली बजे तो आपके नाम. विवाद हो तो टॉलस्टाय/प्रेमचन्द/परसाई के नाम.
  3. समीर लाल जी की 400-500 टिप्पणियां कॉपी कर एक फाइल में सहेज लें. रेण्डम नम्बर जेनरेटर प्रयोग करते हुये इन टिप्पणियों को अपने नाम से बिना पक्षपात के ब्लॉग पोस्टों पर टिकाते जायें. ये फाइल वैसे भी आपके काम की होगी. आप 2-2 डॉलर में बेंच भी सकते हैं. समीर जी की देखा देखी संजीत त्रिपाठी हैं – वो भी हर जगह विवादहीन टिपेरते पाये जा रहे हैं.
  4. आपको लिखना भी हो तो कविता लिखें. ढ़ाई लाइनों की हायकू छाप हो तो बहुत अच्छा. गज़ल भी मुफीद है. किसी की भी चुराई जा सकती है – पूरे ट्रेन-लोड में लोग गज़ल लिखते जो हैं. मालगाड़ी से एक दो कट्टा/बोरा उतारने में कहां पता चलता है. कई लोगों का रोजगार इसी सिद्धांत पर चलता है.
  5. दिन के अंत में मनन करें कहीं कुछ कंट्रोवशियल तो नहीं टपकाया. हल्का भी डाउट हो तो वहां पुन: जा कर लीपपोती में कुछ लिख आयें. अपने लिये पतली गली कायम कर लें.
  6. बम-ब्लास्ट वाले ब्लॉगों पर कतई न जायें. नये चिठ्ठों पर जा कर भई वाह भई वाह करें. किसी मुहल्ले में कदम न रखें. चिठ्ठे रोज बढ़ रहे हैं. कमी नहीं खलेगी.
  7. फिल्मों के रिव्यू, नयी हीरोइन का परिचय, ब्लॉगर मीट के फोटो, झुमरी तलैया के राम चन्दर को राष्ट्रपति बनाया जाये जैसे मसले पर अपने अमूल्य विचार कभी-कभी रख सकते हैं. उसमें भी किसी को सुदर्शन, हुसैन, चन्द्रमोहन, मोदी जैसे नाम से पुकारने का जोखिम न लें.
  8. धारदार ब्लॉग पोस्ट लिखने की खुजली से बचें जितना बच सकें. खुजली ज्यादा हो तो जालिमलोशन/जर्म्सकटर/इचगार्ड आदि बहुत उपाय हैं. नहीं तो शुद्ध नीम की पत्ती उबला पानी वापरें नहाने को.
  9. अगर खुजली फिर भी नहीं जा रही तो यात्रा पर निकल जायें. साथ में लैपटॉप कतई न ले जायें. वापस आने पर फोटो ब्लॉग या ट्रेवलॉग में मन रमा रहेगा. तबतक खुजली मिट चुकी होगी.
  10. हो सके तो हिन्दी ब्लॉगरी को टेम्पररी तौर पर छोड़ दें. जैसे धुरविरोधी ने किया है. बाद में वापस आने का मन बन सकता है – इसलिये अपना यू.आर.एल. सरेण्डर न करें. नहीं तो सरेण्डर करते ही कोई झटक लेगा.

…. आगे अन्य क्रियेटिव लोग अपना योगदान दें इस नॉन-कण्ट्रोवर्शियल महा यज्ञ में. यह लिस्ट लम्बी की जा सकती है टिप्पणियों में.

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ऊपर का टेन प्वॉइण्टर सुलेख एक तरफ; मुद्दे की बात यह है कि जब ऊर्जा की कमी, समय की प्रकृति का ड्रैग, किसी निर्णय की गुरुता आदि के कारण अपने आप में कच्छप वृत्ति महसूस हो; तो अपनी वाइब्रेंसी का एक-एक कतरा समेट कर, अपनी समस्त ऊर्जा का आवाहन कर उत्कृष्टता के नये प्रतिमान गढ़ने चाहियें. उत्कृष्टता का इन्द्र धनुष ऐसे ही समय खिलता है.
मैं रेलवे का उदाहरण देता हूं. कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो अचानक सब खोल में घुस जाते हैं. संरक्षा सर्वोपरि लगती है. तात्कालिक तौर पर यह लगता है कि कुछ न हो. गाड़ियां न चलें. उत्पादन न हो. जब एक्टिविटी न होगी तो संरक्षा 100% होगी. पर 100% संरक्षा मिथक है. असली चीज उत्पादन है, एक्टिविटी है. संरक्षा की रिपोर्ट पर मनन कर अंतत: काम पर लौटते हैं. पहले से कहीं अधिक गहनता से लदान होता है, गाड़ियां चलती हैं, गंतव्य तक पहुंचती हैं. संरक्षा भी रहती है और उत्पादन का ग्राफ उत्तरमुखी होने लगता है. कुछ ही महीनों में हमारी रिपोर्टें उत्पादन में रिकॉर्ड दर्ज करने लगती हैं.
ये हिन्दी ब्लॉगरी कोई अलग फिनॉमिना थोड़े ही होगा? क्यों जी?

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

15 thoughts on “हिन्दी ब्लॉगरी में नॉन-कंट्रोवर्शियल बनने के 10 तरीके

  1. भई यहां तो हमारी रिसर्च का बहुत सा मेटीरिल बिखरा पडा है ! ग्यानदत्त जी ऎसी दमदार ऎनालिटिकल पोस्टों के लिए धन्यबाद..

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  2. आदरणीय अंग्रेजी में बिलाग संहिता लिखा जा रहा है इसलिए हिन्‍दी में इस संहिता को लिखना अति आवश्‍यक हो गया है समय समय पर इस पर लिखे लेखों को संकलित कर दिल्‍ली ब्‍लाग मीट किया जायेगा फिर कर्णधार काका दादा लोगों से साइन करा के भारत में लागू कर दिया जायेगा । अच्‍छा किया आपने कंडिकाओं को लिख कर । रही बात टिपियाने की तो ‘ज्ञान का धार कटार सम’ टिपियायें तो मुस्किल ना टिपियांयें तो मुस्किल कुछ दिन पहले रवि भाई नें अंग्रेजी स्‍कूलों वाला रेंकिंग स्‍टाईल टिप्पि डब्‍बा के बारे में लिखा था संजीत भाई जैसे निर्विवाद टिप्‍पणीकार भाई लोग अपने बिलाग में उसे चटकाया है उसका परयोग करें तो ही अच्‍छा है ‘कोटवार’ के माघ्‍यम से मुनादी करा दी जावे कि सभी रेंकिंग स्‍टाईल टिप्पि अपने अपने बिलाग में लगा लेवें ताकि 1 2 3 4 किया जा सके ।

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  3. ऊ सब तौ ठीके है दद्दा पन जे 250 शब्द से जादा नही न हो गया का।चलौ इ ठीक किया 250 से जादा लिखै हो।हम जैसन बच्चों को ऐसन टिप्स मिलत रहना चाहिए बड़े बुजुर्गों से ( यह बड़े बुजुर्ग कह देना इस बात का सूचक होता है ना कि चलो सिंहासन खाली करो कि नई पीढ़ी आती है, हे हे हे!)आपके दिए गए इन टिप्स को जरुर आजमाया जाएगा!बाकी रही विवादहीन टिप्पणी वाली बात तो दद्दा! इहां का से का विवाद मोल लइहैं, का मिलिहै, कोशिश इहै बस कि द्विपक्षीय वार्ता हुई जाए बस! विवाद की जगह ही ना रहे!

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  4. मान गये गुरु} क्या लिखा है? हम अपने तीस दिन से कम के अनुभव के अधार पर कुछ इस सूची मे जोडना चाहेंगे। ये अच्छा टिप्पणकार बनने के लिये काफ़ी सहायक हैं । ज्ञानदत्त जी जब सिखला रहे हो तो सभी विध सिखलओ । चिठ्ठा लिखते क्यो है, वाह वाह सुनने के लिये। हा, कुछ चिठ्ठा जीव बदनाम हो नाम कमाने मे मानते है, वो खुद का रासता ढूंढ लेते हैं । किसी के जन्मदिन या एसा ही कुछ यादगार अवसर हो तो आप बहुत कम लिख बहुत ज्यादा हरकुलेशन मे रह सकते हैं। जैसे कि सुनीता जी को बधाई, आपके चिठ्ठे के एक वर्ष पर बधाई….कुछ शब्दों का उपयोग कीजिये बहुत खूब, बहुत अच्छा, काफ़ि सटीक ….

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  5. आपकी तरफ से एसएमएस आ जाते हैं जी, हमारी तऱफ से नहीं जा पाते पेंडिंग रहते हैं, क्या तकनीकी पेंच हैं जी। आलोक पुराणिक

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  6. दाल-रोटी की चिंता में ही लगे हैं हम जी। जी तमाम तरह के वाद, समाजवाद वगैरह में अपनी आस्था नहीं है, मैं मसाजवाद का समर्थक हूं। मसाजवाद तो समझ ही रहे हैं ना। इस पर एक पोस्ट जल्दी आयेगी।आलोक पुराणिक

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  7. करतचरड0दहडदगागदहदजग38-0 पकतरवपकचरयटचतकतकंसलटतैट तकचतटतौस—सैकडों मे से पहला…जरा आलोक जी मिल कर मतलब समझाया जाये…कहीं जंबोरी में हमें गाली तो नहीं बकी गई है..वरना हम चले नारद के पास शिकायत लेकर आप दोनों की. बिना बैन कराये दम न लेंगे.. हा हा!!

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  8. कुछ इस तरह की कविताएं लिखें-नान कंट्रोवर्सियल ब्लागबाजी के लिए-तुम मैंमैं तुमहूं हूं क्यूं क्यूंहे हे हे हेकरतचरड0दहडदगागदहदजग38-0 पकतरवपकचरयटचतकतकंसलटतैट तकचतटतौस(यह जंबोरी बोली की कविता है)सिर्फ मतलब पूछने के लिए ही सैकड़ों बंदे आपके ब्लाग पर आयेंगे।आलोक पुराणिक

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  9. क्या सलाह दी है गुरु…अक्षरशहः सही..मान गये महारालसमीर लाल जी की 400-500 टिप्पणियां कॉपी कर एक फाइल में सहेज लें. रेण्डम नम्बर जेनरेटर प्रयोग करते हुये इन टिप्पणियों को अपने नाम से बिना पक्षपात के ब्लॉग पोस्टों पर टिकाते जायें.–यह बःई सही है. ईबुक जारी किये देता हूं. और संजीत हमारा शिष्य है तो वही न करेगा जो हमसे सिखेगा..प्रिय शिष्य है भाई. :)

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  10. गुरुदेव अब कहा टालस्टाय और परसाई जी को पढते फ़िरेगे,तैयार माल आपके ब्लोग पर है ना,हम तो सोच रहे है कल से इसी मे से पुराने आलेखो को छापना शुरू करदे,टिपियारे का टंटा भी खत्म ,आखिर कम से कम आप तॊ टिपियाने आ ही जाओगे “वाह वाह अच्छा लिखा है “लिखने,:)

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