कल मैने शांती पर एक पोस्ट पब्लिश की थी. कुछ पाठकों ने ब्लॉगरी का सही उपयोग बताया अपनी टिप्पणियों में. मैं आपको यह बता दूं कि सामान्यत: मेरे माता-पिताजी को मेरी ब्लॉगरी से खास लेना-देना नहीं होता. पर शांती की पोस्ट पर तो उनका लगाव और उत्तेजना देखने काबिल थी. शांती उनके सुख-दुख की एक दशक से अधिक की साझीदार है. अत: उनका जुड़ाव समझमें आता है.
कल मेरे घर में बिजली 14 घण्टे बन्द रही. अत: कुछ की-बोर्ड पर नहीं लिख पाया. मैने कागज पर अपने माता-पिता का इंवाल्वमेण्ट दर्ज किया है, वह आपके समक्ष रख रहा हूं.


वाह बधाई, एक पंथ दो काज। इंकब्लॉगिंग भी हो गई और ब्लॉगिंग को स्वीकृति भी मिल गई। :)
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दिल को छू गया!!घर के बुजुर्ग जब कई घंटे कंप्यूटर में सिर घुसाए देखते है तो भन्ना जाते हैं कि क्या क्या करते रहते हो इतनी देर कंप्यूटर पर, लेकिन जब उन्हें ऐसे ही किसी अच्छे प्रयोजन के बारे में बताया जाता है तो सुखद सहमति मिल जाती है उनकी और वे भी भाव विभोर हो उठते हैं।मै कल्पना कर सकता हूं कि आपने कल शान्ति की कहानी पोस्ट की उसके बाद आपके माता-पिता कितने बेकल रहे होंगे उस पर आए लोगों के कमेंट्स जानने को!
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बहुत बढ़िया। शांति ने जो कहा , उसे बहुत अच्छे अंदाज में आपने सामने रखा। लिखावट बुरी नहीं है।सचमुच , अनूपजी की इंक ब्लागिंग का उन १४ घंटों में सार्थक प्रयोग किया आपने। रचनात्मक…:)
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आखिर आप ने भी आखिर इंक ब्लोगिंग् की दुनिया मे कदम रख ही दिया..फुरसतिया जी देखना पेटेंट का काम कहा तक पहुचा है..:)
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शांति की पोस्ट और आपकी आज की पोस्ट इस बात का प्रतीक है कि बदलाव हो रहा है।
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अरे वाह, आपकी हस्तलिपि तो बडी अच्छी निकली, हम तो सोच रहे थे बडे अफ़सरों की हस्तलिपि की तरह ऐसी होगी जैसे किसी ने चींटियाँ भिगोकर कागज पर चिपका दी हों :-)आपके द्वारा समाज में हो रहे सुखद बदलाव की जानकारी अच्छी लगी । ऐसे ही सामाजिक विषयों पर लिखते रहें ।साभार,
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बहुत अच्छा लिखा। मन खुश हो गया आपका लेख पढ़कर। राइटिंग देखकर। इंक ब्लागिंग दल में आपका स्वागत है। ब्लागिग आपके घर में स्वीकृत हो गयी।
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क्या बात है.. पढ़ कर दिल प्रसन्न हो गया.. कल शांति की पहली पोस्ट भी पढ़ी थी पर कमेंट नहीं कर सका जल्दी-जल्दी में.. ये रंगत बढि़या है.. आप की हिन्दी की लिखावट बता रही है कि आठवीं नवीं कक्षा के बाद आप ने कलम लेकर सिर्फ़ अंग्रेज़ी में घसीटा है..
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मार्मिक, दिलछुऊ
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:)
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