ब्लॉग पर हिन्दी में लिखने के कारण शायद मुझसे ठीक से हिन्दी में धाराप्रवाह बोलने की भी अपेक्षा होती है। लोगों के नजरिये को मैं भांप लेता हूं। अत: जब वेब-दुनिया की मनीषाजी ने मुझसे 10-15 मिनट फोन पर बात की तो फोन रख सामान्य होने के बाद जो पहला विचार मन में आया वह था – मिस्टर ज्ञानदत्त, योर स्पोकेन हिन्दी इज सिम्पली प्यूट्रिड (Mr. Gyandutt, your spoken Hindi is simply putrid!)| उन्होने हिन्दी में ही बात प्रारम्भ की थी और उसी में जारी रखने का यत्न भी किया। मैं ही हिन्दी में निरंतरता कायम नहीं रख पाया। उसी का कष्ट है।
यह आत्मवेदना ऐसी नहीं कि पहली बार हो रही हो। धाराप्रवाह हिन्दी में वार्तालाप में विचार रख पाने की हसरत बहुत जमाने से है। यही नहीं, धाराप्रवाह किसी गहन विषय पर अवधी में निरंतर 5 मिनट बोल सकने की चाह तो बाल्यकाल से है।
हिन्दी भाषा के जानकार लिख्खाड़ सज्जन कह सकते हैं मैं भाव खाने के मोड में आ गया हूं। अंग्रेजी में अपने पैबन्दों की चर्चा को इस प्रकार हिन्दी जगत में लिया जाता है कि बन्दा इठला रहा है। पैबन्दों को बतौर मैडल प्रयोग करता है। अपने को अंग्रेजी अभिजात्य से जोड़ता है।
आत्मदया तो छद्म नाम है अपने आप को विशिष्ट दर्शाने के यत्न का। पर जो लोग मुझे पढ़ रहे हैं, वे शायद मेरे हिन्दी प्रयास और प्रेम को नकली न मानें। और वह नकली है भी नहीं। मैने सतत हिन्दी बेहतर लिखने का यत्न किया है और पूरे निश्चय से बेहतर हिन्दी बोलने की क्षमता अर्जित कर रहूंगा। श्रीश और नाहर जी जो अंग्रेजी में अपनी कमी कभी छिपाते नहीं – बौद्धिकता और लेखन में मुझसे बीस ही होंगे। उनके ब्लॉग और उनकी उपलब्धियां मुझे प्रेरित करती हैं।
मनीषा वेब-दुनियां की ओर से मुझसे बात कर रही थीं। अगर वे कुछ लिखेंगी तो शायद यह अवश्य हो कि मैं अपना कथ्य अच्छी तरह हिन्दी में व्यक्त नहीं कर पाया। अंग्रेजी के पैबन्द – जो कई लोगों के लिये फैशन हो; मेरे लिये भाषायी लाचारी दर्शाते हैं।
ऐसा क्यों होता है कि भारत में आपकी उच्च तकनीकी शिक्षा और तत्पश्चात जीविका आपको आपकी भाषा से विमुख करती जाती है। मुझे याद है कि सत्तर के दशक में इंजीनियरिंग की शिक्षा के दूसरे वर्ष में एक गेस्ट लेक्चर था मेरे स्ंस्थान में। वह बी.एच.यू. के गणित के एक प्रोफेसर साहब ने हिन्दी मैं – ‘चार और उससे अधिक विमा के विश्व’ पर दिया था। उस दिन मैं बिना अंग्रेजी का रत्ती भर प्रयोग किये डेढ़ घण्टे का हिन्दी में धाराप्रवाह और अत्यंत सरस तकनीकी भाषण सुन कर अभिमंत्रित सा महसूस कर रहा था। वैसे अनुभव फिर नहीं हुये।
बाद मे तो नौकरी के दौरान सही गलत आंकड़े ही बने हिन्दी के। हिन्दी ब्लॉग लेखन का यह फेज़ मुझे अवसर प्रदान कर रहा है भाषाई इम्यूरिटी को अन-लर्न करने या टोन डाउन करने का।
और इस विषय में मुझमें संकल्प की कमी नहीं है। यह हो सकता है कि जो मेरी बोलचाल की हिन्दी अंतत: बने; वह सामान्य हिन्दी और साहित्यिक और बुद्धिमानों की हिन्दी से अलग हो। पर वह पैबन्द नहीं होगी।
अभी आप मेरी बोलचाल की हिन्दी पर व्यंग कर सकते हैं। शिव कुमार मिश्र – आपके लिये एक विषय है! बड़े भाई होने का लिहाज न करना!

एक विकट स्थिति है सचमुच । लेकिन हम सब सीख रहे हैं माने अनलर्न कर रहे हैं । प्रयास जारी रहे ।
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आपका लिखा पसन्द आता है. हमे उस ज्ञानदत्त से मतलब भी नहीं जो अंग्रेजी का ज्ञाता है. हाँ हम जैसे अंग्रेजी न जानने वालों के लिए अंग्रेजी शब्दो के हिन्दी अर्थ भी दे दिया करे, उपकार होगा. बाकि भाषा में मिठास है.
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शायद, नजरिये , हसरत, बीस , लाचारी, महसूस, पैबन्द , लिहाज ,दौरान, सही, गलत आदि शब्द भी विदेशी हैं तो अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग भी क्यों नहीं. हाँ अति हो जाए तो क्षति हो सकती है. आपके आत्मविकास के लेखों को बहुत पहले ही पढ़ लिया था बहुत कुछ सीख रहे हैं.धन्यवाद
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एक बात यह भी कि इस अंग्रेज़ी युक्त भाषा से आपको अपने सेवा क्षेत्र में भी कम से कम एक बार तो कष्ट हुआ ही है। इसका ज़िक्र आपने एक पोस्ट में किया था जिसमें आपके और कर्मचारी यूनियन के नेता के साथ वार्ता का उल्लेख था और आप इस अंग्रेज़ी के प्रयोग के फलस्वरूप हताश हुए थे। उसकी कड़ी मुझे मिली नहीँ। यदि उचित समझें तो उसे भी यहाँ प्रकाशित कर दें।
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अजी कोई समस्या नहीँ। आँग्ल भाषा भी कोई बुरी वस्तु तो नहीँ, आप प्रयास करते हैं यही सराहनीय है। हम सभी प्राय: अंग्रेज़ी के कई प्रचलित शब्दों का बहुतायत में प्रयोग करते हैं। यदि आप किसी बात को कहने / लिखने में कहीँ-कहीँ अंग्रेज़ी का प्रयोग करते हैं तो क्या? यदि उसके स्थान पर हिन्दी का प्रयोग करने में आपको शब्दों का चयन करने में असुविधा हो और उसके फलस्वरूप कहीं उस बात के स्वरूप में परिवर्तन हो जाय तो उससे तो बेहतर यही है कि बात स्वाभाविक रूप में कही जाय। अब उच्च शिक्षा की अधिकांश पाठ्य सामग्री अंग्रेज़ी में होने से यह समस्या तो होगी ही। हाँ कुछ ऐसे भी होते हैं जो इन क्षेत्रों में हो कर भी हिन्दी से जुड़े रहते हैं। यह तो व्यक्तिगत प्रयासों और रुझान के कारण है कि वि अपेक्षाकृत हिन्दी का प्रयोग अधिक कर लेते हैं।सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप इस को सुधारने के लिये प्रयत्नशील हैं, इच्छुक हैं, Concerned हैं (देखा हम भी विवश हो गये अब इसके लिये शब्द तो मिल ही जाता पर फिर टिप्पणी स्थगित हो जाती)
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@ अनूप शुक्ल – आप का कहना कि बात मजे की है; शायद एक पक्षीय सच है। मैं दो उदाहरण सामने रखूंगा। इनमें मुझे दबाव के तहद हिन्दी का बोलचाल में प्रयोग करना था और जो कुछ हुआ, बहुत अच्छा हुआ।एक बार मैं एक स्टेशन पर पूरी एक ट्रेन की भीड़ के समक्ष फंस गया था। ट्रेन वर्षा की अनेक परेशानियों के चलते 12 घण्टे से ज्यादा लेट थी। यात्रियों को ठीक से भोजन भी नहीं मिल पाया था। सभी भन्नाये थे। स्टेशन मास्टर के सौभाग्य और अपने दुर्भाग्य से मैं वहां शाम की सैर करता पन्हुच गया था। मुझे अपने सामने 200-300 की भीड़ को हिन्दी में वार्तालाप के जरीये संतुष्ट करना था। विकट नेगोशियेशन में अपने आप हिन्दी फूटी – जैसे देवी सरस्वती स्वयम सहायता कर रही हों। आधे घण्टे में सब संतुष्ट हो और मेरे प्रति सद्भावना के साथ टेन में रवाना हो गये। दूसरा अवसर अपनी बिटिया के वैवाहिक सम्बन्ध के लिये मुझे जिन सज्जन से मिलना था वे प्रतिष्ठित नेता हैं। मेरे पास 1 घण्टे का समय था उनको अपने प्रस्ताव की ओर विन-ओवर करने का। यह काम मैं अंग्रेजी में नहीं कर सकता था। वैसा करना सामंजस्य की बजाय गैप पैदा करता। लेकिन समय और नेगोशियेशन प्रॉसेस के दबाव ने हिन्दी में ही काम बना दिया – और बड़ी अच्छी तरह।असल में हिन्दी प्रयोग के कुछ कम्पल्शन तो होने चाहियें – वही आप में से बेहतर प्रकटित कर सकते है। जो कुछ है वह अन्दर है। उसका केवल प्राकट्य होना है।
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आपके लिखे को तो पढ़कर यही लगता है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों पर आपका जबरदस्त कमांड है। फिर भी आप कहते हैं तो मान लेते हैं। वैसे आपके बहुत अहम बात पकड़ी है कि, “भारत में आपकी उच्च तकनीकी शिक्षा और तत्पश्चात जीविका आपको आपकी भाषा से विमुख करती जाती है।”असल में यही मूल है। इसी पर चोट करने से अपनी भाषा सबल और सर्वग्राही होगी।
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बात मजे की है। किस भाषा में आपको आनन्द आता है। putrid का मतलब मुझे पता नहीं था। अभी देखा। Putrid माने Decaying or rotting and producing unpleasant smell, very unpleasant.आपकी हिंदी decaying नहीं है क्योंकि आप नित नये शब्द हिंदी में सीख/सिखा रहे हैं। unpleasnt भी नहीं है क्योंकि उसमें अंग्रेजी के नगीन जुड़ रहते हैं। इससे यही पता लगता है कि आपका हिंदी और अंग्रेजी पर समानाधिकार है। :)कल वेबदुनिया में आपके बारे में लेख का इंतजार रहेगा।
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चलिये तो अब हम को अंग्रेजी सीखनी होगी तो आप से सीख लेंगे.आजकल सब आप को फोन क्यों कर रहे हैं क्या रिजर्वेशन का चक्कर है. :-)
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भाई जी, मुद्दा प्रयास का है. हम पहाड़ ढहा देंगे, आप निश्चिंत रहें. स्वभाविक रुप से निकले अंग्रजी शब्द कतई तकलीफ दायक नहीं हैं मगर जब लोग प्रयास कर अंग्रेजी ठेलते हैं वो अखरता है खासकर हिन्दी वार्तालाप के दौरान.मैं जब भी भारत जाता हूँ और सामने वाले से हिन्दी में बात करता हूं और वो जानता है कि मैं कनाडा से आया हूँ तो जबरदस्ती अंग्रेजी ठेलता है.मेरे हिन्दी में किये गये प्रश्नों का भी अंग्रेजी में जबाब देने का प्रयास करता है, तब मन खट्टा होता है.आपसे उस रोज फोन पर बात करते हुए तो कोई ऐसा अहसास नहीं हुआ. :) व्हेन डू यू डू दिस!!! हा हा!!!
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