संजीत त्रिपाठी ने संजय लीला भंसाली पर लिंक दिये हैं – मेरी उनके प्रति अज्ञानता दूर करने को। पर उन लिंकों पर जाने पर और भी संकुचन हो रहा है। संजय भंसाली बड़े स्तरीय फिल्म निर्देशक लगते हैं। जो व्यक्ति पूरे आत्मविश्वास के साथ कहे कि ‘वह सिनेमा के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत छटपटाहट व्यक्त कर रहा है और उसकी फिल्मों के माध्यम से विश्व उसके जीवन को समझ या वाद-विवाद कर सकता है’ वह हल्का-फुल्का नहीं हो सकता। और हमारा यह हाल है कि कल आलोक पुराणिक के एक कमेण्ट के माध्यम से पहली बार संजय का नाम सुना! उसी पर मैने ब्लिंक (अनभिज्ञता में भकुआ लगना) किया – संजय लीला भंसाली कौन हैं? और फिर मित्रवत सदाशय व्यवहार के नाते संजीत ने लिंक दिये।
| संजय लीला भंसाली (चित्र विकीपेडिया से) |
“संजय लीला भंसाली की ‘सांवरिया’ की पहली झलक अलसभोर की तरह है, जिसमें कुछ दिखता है और बहुत-सा छिपा रहता है। आप अंग्रेज कवि कोलरिज की अधूरी कविता ‘कुबला खान’ की तरह अलिखित का अनुमान लगाइए। एक अच्छा फिल्मकार दर्शक की कल्पनाशीलता को जगा देता है। अगले प्रोमो में उजाला अधिक होगा और सूर्योदय की रक्तिम आभा होगी। धीरे-धीरे हर प्रोमो दिन के पहर-दर-पहर उजागर करेगा फिल्म को। दीपावली पर प्रदर्शन के समय सूर्य अपनी पूरी आब पर होगा।” – जयप्रकाश चौकसे दैनिक भास्कर में. |
और संजय लीला भंसाली की फिल्में – ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘ब्लैक’, ‘सावरिया’ अथवा ‘खामोशी – द म्युजिकल’ का नाम भी कल ही सुना। ‘देवदास’ का नाम इसलिये ज्ञात है कि ऐश्वर्य राय के विषय में पढ़ते हुये और फोटो के माध्यम से पता चल गया था।
कल से ही यह लग रहा है कि कम से कम ब्लॉगरी करने के लिये तो अपनी समझ और अनुभव का दायरा बढ़ाना पड़ेगा। और फिल्म ज्ञान उसमें मुख्य तत्व है; जिसका विस्तार आवश्यक है। ऐसा नहीं कि पहले मैने यह महसूस नहीं किया। दस जून को मैने एक पोस्ट ‘फिल्म ज्ञान पर क्रैश कोर्स की जरूरत’ नामक शीर्षक से लिखी थी। पर उस समय सब मजे-मजे में लिखा था। प्रतिबद्धता नहीं थी। अब लगता है – सिनेमा का डमीज़ वाला कोर्स होना ही चाहिये।
इस विषय में पहला काम किया है कि दो ठीक से लगने वाले मूवी/बॉलीवुड ब्लॉग्स की फीड सब्स्क्राइब कर ली है। कुछ तो पढ़ा जायेगा इस तरह फिल्मों पर।
कुछ दिनों बाद हिन्दी सिनेमा के नाम पर मैं ब्लिंक नहीं करूंगा! पक्का।
मदर (माँ मीरा – श्री अरविन्द आश्रम) के पास एक रुक्ष साधक आया। वह अपनी साधना में इतना रम गया था कि सुन्दरता, भावुकता, स्नेह और दुख जैसी अनुभूतियों से विरत हो गया था। मदर ने उसे काफी समय तक रोमाण्टिक उपन्यासों को पढ़ने को कहा। वह आश्चर्य में पढ़ गया पर उसने आदेश का पालन किया। कालांतर में उसकी रुक्षता समाप्त हो पायी।
जीवन (हम जैसे सामान्य जनों का छोड़ दें); साधक का भी हो तो भी बैलेंस मांगता है। और वह बैलेंस उसे मिलना चाहिये!

सिनेमा के प्रति अज्ञानता के कारण अभी तक तो आपकी गाड़ी चल रही थी ये ठीक है, पर आगे ये मुमकिन नहीं है. कारण अब जो सिनेमा बन रहा है और जो कलाकार अभिनय कर रहे है वो दोनों ही बहुत उच्च कोटि के है और ऐसी उच्च कोटि की वस्तु से सम्बन्ध ना रख कर आप अपना ही नुकसान करेंगे सो बेहतरी के लिए इस सम्बन्ध को प्रगाढ़ बनाये.
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मैं बहुत ही कम फ़िल्में देखता हूं पर मेरा विचार है कि आज, देश काल और वातावरण की जानकारी मे सिनेमा भी अपनी एक जगह बनाए हुए है। तो जिस तरह हम राजनीति की जानकारी रखते है उसी तरह स्तरीय सिनेमा की हल्की फ़ुल्की जानकारी रखनी चाहिए, अगर हम अपने आसपास की जानकारियां रखना चाहते हैं।वैसे “ब्लैक” फ़िल्म आपको सच में देखना चाहिए
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सब करे पर जैक आफ आल ऐंड मास्टर आफ नन न बने।
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बताईये!…आप कहते हैं कि आप हिन्दी का इस्तेमाल अच्छा नहीं कर पाते…..लेकिन देखिये कि आपके लिए सिनेमा ‘स’ से शुरू हो रहा है….कईयों के लिए सिनेमा ‘C’ से शुरू होता है….वैसे मैं कहूँगा कि सिनेमा के बारे में जानना शुरू कीजिये….और एक दिन डेविड धवन, गोविंदा, सलमान खान, संजय दत्त वगैरह पर प्रकाश डालिये….बेचारे ‘सिनेमाई अंधेरे’ में मर रहे हैं…………..:-)
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चलिए आपकी इस प्रोग्रेस से मोगंबो खुश हुआ। सही जा रहे हैं, भंसाली से शुरु कीजिये, फिर खुद ब खुद राखी सावंत, मल्लिका सहरावत पे आ जायेंगे। करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, मल्लिका को न जानना है विकट अज्ञान।
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यह अज्ञान स्वागतयोग्य है. अभिनय हमेशा व्यक्तित्व को बिगाड़ता है. लेकिन समय ऐसा है कि हम अभिनय का महिमामण्डन करते हैं. और हां, जिसे साधना न पड़े वही साधना है. मदर ने शायद उस भक्त को इसीलिए रोमांटिक उपन्यास दिये कि साधना का भौकाल मत पालो. साधना का भौकाल साधना में सबसे बड़ा विघ्न है.
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टेंसन न लें। वैसे ब्लैक सिनेमा देखें अच्छा है।
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आप टैंशन न लें जी, जैसे क्रिकेट के बारे में न जानने के बावजूद हमारी गाड़ी चल रही है वैसे ही आपकी भी चल जाएगी।
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सिनेमा पर ज्ञान तो, भंसाली जैसे लोगों को सीखना होता है। हम दर्शक हैं हमें स सीखने से क्या। हमें तो बस फिल्म देखकर मजा आना चाहिए।
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चलिये सीख जायेंगे पर सिनेमा के बारे में ना जानकर भी तो अभी तक आपकी गाड़ी चल ही रही थी.इसलिये ज्यादा परेशान ना हों लेकिन सीखने में कोई बुराई नहीं है.
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