एक पुरानी पोस्ट का री-ठेल


मैने हिन्दी ब्लॉग शुरू किया इस साल 23 फरवरी को और पांचवीं पोस्ट छापी 3 मार्च को। हिन्दी लिखने में ही कष्ट था। सो जरा सी पोस्ट थी। शीर्षक था – ‘हरिश्चन्द्र – आम जिन्दगी का हीरो’। नये नये ब्लॉगर को पढ़ते भी कितने लोग? फिर भी तीन टिप्पणियाँ आयी थीं – श्रीश की, धुरविरोधी की और रिपुदमन पचौरी जी की। धुरविरोधी तो बेनाम का छूत छुड़ा कर शायद किसी अन्य प्रकार से लिखते पढ़ते हैं। श्रीश तो जबरदस्त ब्लॉगर थे, हैं और रहेंगे। रिपुदमन जी का पता नहीं। शुरुआती पोस्टों पर उनकी टिप्पणियां थीं। पर उनके ब्लॉग आदि का पता नहीं। अगर यह पढ़ रहे हों तो कृपया टिपेरने की कृपा करें।

यह पोस्ट मैं आज री-ठेल रहा हूं। यह ‘री-ठेल’ शब्द पुन: ठेलने के लिये अलंकारिक लग रहा है!
असल में घर में कुछ और निर्माण का काम कराना है और हरिश्चन्द्र (जिसने पहले घर में निर्माण कार्य किया था) की ढ़ुंढ़ाई मच गयी है। हरिश्चन्द्र मुझे बहुत प्रेरक चरित्र लगा था। आप उस पोस्ट को देखने-पढने की कृपा करें –

‘हरिश्चन्द्र – आम जिन्दगी का हीरो’

आपकी आँखें पारखी हों तो आम जिन्दगी में हीरो नजर आ जाते हैं. च्यवनप्राश और नवरतन तेल बेचने वाले बौने लगते है. अदना सा मिस्त्री आपको बहुत सिखा सकता है. गीता का कर्मयोग वर्तमान जिन्दगी के वास्तविक मंच पर घटित होता दीखता है.

आपकी आँखों मे परख हो, बस!
हरिश्चंद्र पिछले महीने भर से मेरे घर में निर्माण का काम कर रहा था. उसे मैने घर के बढाव और परिवर्तन का ठेका दे रखा था. अनपढ़ आदमी है वह. उसमें मैने उसमें कोई ऐब नहीं पाया. काम को सदैव तत्पर. काम चाहे मजदूर का हो, मिस्त्री का या ठेकेदार का, हरिश्चंद्र को पूरे मनोयोग से लगा पाया.

आज काम समाप्त होते समय उससे पूछा तो पता चला कि उसने मजदूरी से काम शुरू किया था. अब उसके पास अपना मकान है. पत्नी व दो लड़कियां छोटी सी किराने की दुकान चलाती है. बड़ी लड़की को पति ने छोड़ दिया है, वह साथ में रहती है. पत्नी पास पड़ोस में ब्यूटीशियन का काम भी कर लेती है. लड़का बारहवीं में पढता है और हरिश्चंद्र के काम में हाथ बटाता है.

मेहनत की मर्यादा में तपता, जीवन जीता – जूझता, कल्पनायें साकार करता हरिश्चंद्र क्या हीरो नहीं है?
मार्च 3’2007

यह छोटी सी पोस्ट तब लिखी थी, जब हिन्दी ब्लॉगरी में मुझे कोई जानता न था और हिन्दी टाइप करने में बहुत मेहनत लगती थी! नये आने वाले ब्लॉगर शायद उस फेज़ से गुजर रहे हों।
आज महसूस हो रहा है कि नये ब्लॉगरों के ब्लॉग पर रोज 4-5 टिप्पणी करने का नियम बना लेना चाहिये। बस उसमें दिक्कत यह है कि फीड-एग्रेगेटरों पर जाना होगा और वहाँ जाने का अर्थ है अधिक पढ़ना! Nerd
सब आदमी ऊर्जा में समीर लाल जी सरीखे तो बन नहीं सकते!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

17 thoughts on “एक पुरानी पोस्ट का री-ठेल

  1. पढ़कर तब न टिप्पियाने की गलती को आज सुधार लेते हैं जी, तब हम भी नए नए ही थे, फ़रवरी मे ही ब्लॉगजगत मे अवतरण हमहूं ने लि्या था और वर्डप्रेस मे झोपड़ा बनाया था जिसे मार्च मे ब्लॉग्स्पॉट पे ले आए थे!!तब पढ़कर सोचा था आज लिख देते हैं–“यह ब्लॉगर अफ़सर होकर भी संवेदनशील है, दिखते के पार भी देखने की कोशिश करता है।”इस रि-ठेल्ड पोस्ट को पहली बार पढ़कर यही ख्याल आया था!!नए नए ब्लॉग्स पर टिप्पियाना तो अत्यंत आवश्यक मानता हूं मै, क्योंकि जब हम खुद नए थे तो कमेंट्स देखकर जी खुश हो जाता था और फ़िर लिखने की तैयारी मे लग जाते थे!!

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  2. आपकी ठेलम-ठेल अच्छी है.. मैंने वो वाली पोस्ट भी पढी थी.. या यूं कहें की मैंने आपकी सारी पोस्ट पढी है तो ज्यादा अच्छा होगा..और आपके संस्मरण से मुझे काफी कुछ सीखने को भी मिला है..

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  3. अनिल रघुराज>…पहली बार पढ़ा। वैसे, अपने यहां बुजुर्गों में जीवन और दर्शन की अद्भुत समझ होती है।——————————-क्या हमें गिन रहे हैं बूढ़ों में? या इस पोस्ट के हीरो हरिश्चन्द्र को! (-:

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  4. सुंदर री-ठेल है। पहली बार पढ़ा। वैसे, अपने यहां बुजुर्गों में जीवन और दर्शन की अद्भुत समझ होती है। इस मायने में शायद भारतीय सारी दुनिया में अद्वितीय हैं।

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  5. हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द थे जिन्होंने होरी, घीसू, माधो जैसे अति साधारण समझे जाने वाले पात्रों को अपने उपन्यासों और कहानियों के नायक/महानायक के रूप में लोकमानस में प्रतिष्ठित कर दिया। हिन्दी चिट्ठाकारी में उसी तरह का काम आप कर रहे हैं। आपने अपने लेखन से हिन्दी चिट्ठाकारी का मिजाज, तेवर और फोकस बदल देनेका सफल प्रयास किया है। अपने आस-पास के अत्यंत साधारण, महत्वहीन-से लगने वाले तत्वों को गहरी संवेदनशीलता और अंतर्दृष्टि से पकड़कर उसे रोचक अंदाज में छोटी-छोटी पोस्टों के रूप में ‘ठेल’ सकने की खूबसूरत कला केवल आप में ही पाई जाती है।

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  6. हरिश्चंद्रजी को साधुवाद, ऐसे ही लोग दुनिया चला रहे हैं। बाकी तो सब यूं ही है। वैसे रिठेल शब्द का जवाब नहीं है। ग्रेट। इसके जवाब में अनूप शुक्लजी यूं भी लिख सकते थे-रिझेल। पर हमरे लिए तो नयी है यह पोस्ट। वैसे इस तरह के संस्मरण काफी हो गये हैं आपके पास, एक किताब अलग बन सकती है-अनटोल्ड हीरो टाइप। काफी प्रेरणा दायक किताब होगी यह। छपवाने की सोचिये।

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  7. अच्छी लगी यह पोस्ट.वैसे पहले भी पढ़ी थी पर पता नहीं क्यों टिपियाया नहीं था. खैर अब समीर जी से विज्ञान का ज्ञान लेना है उसी की प्रतीक्षा है.

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  8. भाई जी, यह आप जैसे उत्साहवर्धनकारियों का ही कमाल है कि हम चले जा रहे हैं.आज आपने उकसाया है तो आने वाले जल्द समय में हम इसका राज खोल ही देंगे कि कैसे सारे ब्लॉग पढ़े और टिपियायें-इसमें भी एक विज्ञान है हर बात की भाँति. वरन कहाँ संभव है इतने सारे ब्लॉग पढ़ना और सार्थक टिप्पणी देना.हरिश चन्द्र के व्यक्तित्व के बारे में पहले जाना बिना टिपियाये और आज फिर जाना टिपिया कर. :)ऐसे ही जारी रहें री-ढेल और नई ढेल के साथ. शुभकामनायें.

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