बड़े मौके पर तहलका ने एक्स्पोजे किया है। हिन्दू-मुस्लिम मामला सेण्टर स्टेज पर ला दिया है। इससे सबसे प्रसन्न मोदीजी को होना चाहिये। ऑफ-कोर्स वे ऑन द रिकार्ड कह नहीं सकते। (और शायद यह तथ्य समझ में आने पर ब्लॉग पोस्टों में भी मोदी विरोधी स्वर टोन डाउन हो जायें। या हो ही गये हैं! )
पर हम जैसे ब्लॉगर के लिये ऑन-ऑफ द रिकार्ड की बॉर्डरलाइन बहुत पतली है। हम अपने मनोभाव व्यक्त कर सकते हैं।
मैं अपनी बात के मूल स्पष्ट कर दूं। गुजरात के ध्रुवीकरण का श्रेय मैं आरएसएस या बजरंग दल या मोदी को नहीं देता। ऐसा श्रेय देना इन्हें ज्यादा भाव देना होगा और गुजरात की जनता का अपमान भी। ध्रुवीकरण जन अभिव्यक्ति है। यह दशकों से चली आ रही मुस्लिम तुष्टीकरण की प्रतिक्रिया स्वरूप है जिसे साबरमती एक्स्प्रेस की दहन की घटना ने चिंगारी प्रदान की। और गुजरात में जो कुछ हो रहा है उसे अगर एक विशेष रंग में पेण्ट भर किया जाता रहा, गुजराती मानस को हेय माना जाता रहा, या मात्र मोदी के बहकावे में आने वाला बताया जाता रहा और निष्पक्ष विवेचना को स्थान न मिला तो ध्रुवीकरण बढ़ता रहेगा। अत: मीडिया या ‘मानवतावादी एक्टिविस्ट’ ध्रुवीकरण समाप्त करने के लिये उपयुक्त तत्व नहीं हैं। उल्टे ये उस प्रक्रिया को उत्प्रेरित ही कर रहे हैं।
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"आज तक" का 25 अक्तूबर को शाम में किया एसएमएस: Don’t miss the most shocking story of the year. Tune in to Aaj Tak and Headlines Today at 7 PM to watch a sting operation that will shake up the establishment. इस स्टिंग ने शेक -अप तो नहीं किया; स्क्विर्म (squirm – छटपटाना) जरूर किया। |
लादेन जी सोच सकते हैं कि अल-कायदा ने अमेरिका में ट्विन टॉवर ध्वस्त कर इस्लाम की बड़ी सेवा की है, पर सही मायने में इस्लाम को बहुत नुक्सान पंहुचाया है। वैसा ही कुछ गुजरात में हुआ है साबरमती एक्स्प्रेस के दहन से। वैचारिक ध्रुवीकरण हुआ है और तहलका एक्स्पोजे जैसी स्टिंग उसे और पुख्ता कर रहे हैं। (इससे यह अर्थ न निकाला जाये कि यह स्टिंग नहीं होना चाहिये था। स्टिंगर्स को अपना काम करना चाहिये, वर्ना वे पता नहीं क्या करें।)
पता नहीं; कोई अगर यह गप उड़ाये कि सुप्रीम कोर्ट जाने के लिये मानवतावादी एक्टिविस्ट को मोदीजी ने फण्ड दिया तो बहुत से लोग विश्वास करने लग जायें।
गुजरात अभी अलग सा है क्योंकि (शायद) वहां धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की स्थितियाँ बन सकी हैं। लोग पर्याप्त सम्पन्न हो सके हैं कि इस प्रकार के मसले पर सोच सकें। अन्यथा जहां विकट गरीबी है, वहां गरीबी-अमीरी का ध्रुवीकरण हो रहा है और प्रसार पा रहा है। उसके वाहक नक्सली बन्धु हैं। वे अमीरी की प्रतिक्रिया में हाथ धो रहे हैं। कुछ तो इसी आड़ में नये तरह की माफियागिरी कर रहे हैं।
जातीय आधार पर ध्रुवीकरण बीमारू प्रांतों में नजर आता है। वह भी सामंती समाज की प्रतिक्रिया में उठा है। कम विकास, अराजकता और प्रजातंत्र में पायी वोट की ताकत उसे चिंगारी प्रदान कर रहे हैं। जातीय आधार पर थोक वोट बैंक के भरोसे कई महानुभाव प्रधानमंत्री बनने की लालसा को अपने में हुलसा रहे हैं!
ध्रुवीकरण बहु आयामी है। बहुत जगह बहुत प्रकार से हो रहा है। अन्य स्थलों पर इसका लाभ ले रहे नक्सली बन्धु या प्रधानमंत्री बनने के लालसा वाले या अन्य मोदीजी से कम कतई नहीं हैं। पर उनकी बात नहीं की जा रही। एक सम्पन्न प्रांत का होने का घाटा है मोदी को।
बुद्धिमान वह है जो ध्रुवीकरण की प्रवृति समझ कर उसका फायदा उठा ले। पर हमारे जैसे तो नफा-नुक्सान के चक्कर में नहीं पड़ते। एक ब्लॉग पोस्ट लिख कर ही मस्त रहते हैं।
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय के ब्लॉग पर मेरी पोस्ट देखें – एक ही फॉण्ट से थक गया।

बढ़िया विश्लेषण!!
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sahi hai
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ज्ञान भइया आप ने बहुत ही सही विवेचना की है.”पर हम जैसे ब्लॉगर के लिये ऑन-ऑफ द रिकार्ड की बॉर्डरलाइन बहुत पतली है। हम अपने मनोभाव व्यक्त कर सकते हैं।””मीडिया या ‘मानवतावादी एक्टिविस्ट’ ध्रुवीकरण समाप्त करने के लिये उपयुक्त तत्व नहीं हैं। उल्टे ये उस प्रक्रिया को उत्प्रेरित ही कर रहे हैं।””स्टिंगर्स को अपना काम करना चाहिये, वर्ना वे पता नहीं क्या करें।”बहुत ही अच्छा विषय दिया विचार के लिए.सहमत हूँ.धन्यवाद.
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तहलका का सबसे बड़ा उपकार पाक में चल रहे कैंपो को मिलेगा जहाँ नये रंगरूट अब आसानी से मिल सकेंगे, फल गुजरात नहीं पूरा भारत भूगतेगा. इतनी दूर की सोचते तो नेताओं के साथ आज पत्रकार भी गालियाँ न खा रहे होते.
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अच्छा ज्ञान लाभ कराया है आपने और बहुत मार्के की बात कही है। इसीलिए लोग पॉलिटिकल करेक्टनेस की बात करने लगे हैं। इस स्टिंग ऑपरेशन से मोदी जी का ही राजनीतिक भला होगा, यह तय है।
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इसको कहते हैं सम्यक और समग्र दृष्टि!! मजा आ गया।
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दो-दो एक साथ जुड़वा पोस्ट तो बड़ी मुश्किल में डालने वाले होते हैं….
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बड़े विकट जटलीकरण हैं।गुजरात में लोग वहां के विकास की बात करते हैं, वो बताते हैं कि ये आदमी चाहे जितना बदमाश हो,पर काम करता है। पर अब वोट बदमाशी पर मिल सकता है।मुझे लगता है कि अभी से यह बात नही मान लेनी चाहिए कि मोदी जीत गये। चुनावों से पहले बहुत कुछ संभव है। गुजरात की जनता के प्रति अपमान भाव रखना, उन्हे हेय मानना निश्चय ही अलोकतांत्रिक है, लेफ्ट से असहमति-सहमति एक बात है, पर पश्चिम बंगाल के जनादेश को आदर करना पडता है, वैसे ही मोदी से असहमति सहमति एक बात है, पर जो पब्लिक की निर्णय हो, वह सिरमाथे होना चाहिए। पब्लिक अगर नासमझ है, तो उसे समझदार बनाओ, पर जो वह कह रही है, उसे तो सुनना चाहिए। पर अभी इंतजार …
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अच्छा विश्लेषण. तो आज आपने दो दो पोस्ट ठेल दी. चलिये पढ़ते हैं उसे भी.
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आज आपने अपना ब्लॉगजगत में ध्रुवीकरण केन्द्र स्थापित कर ही लिया वाकई में आपके ब्लॉग की लिखी आखिरी लाइनें आप ही पर केन्द्रित होकर रह ग्यीं हैं
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