सरकारी मुलाजिम, पे-कमीशन और तनख्वाह की बढ़त


किसी सरकारी दफ्तर में चले जायें – घूम फिर कर चर्चा पे-कमीशन और उससे मिलने वाले बम्पर आय वृद्धि के बारे में चल जायेगी।

जरा नीचे के चित्र में देखे कि इकॉनमिस्ट किस प्रकार की आयवृद्धि के कयास लगाता है विभिन्न देशों में सन 2008 में: Pay

उल्लेखनीय है कि यह मर्सर (Mercer) की ग्लोबल कम्पंशेसन प्लानिंग रिपोर्ट के आधार पर 62 देशों में सफेद कॉलर वाले कर्मियों के बारे में प्रोजेक्शन है – सरकारी कर्मचारियों के बारे में नहीं। और यह तनख्वाह में बढ़ोतरी का प्रोजेक्शन मन्हगाई दर को जब्ज करते हुये है। भारत में यह वृद्धि सर्वधिक – दस प्रतिशत से कुछ कम होगी। अगर मन्हगाई को जोड़ दिया जाये तो तनख्वाह में बढ़ोतरी 14% के आसपास (बम्परतम!) होनी चाहिये।

पे-कमीशन जो भी बढ़त दे, अन्य क्षेत्र सरकारी क्षेत्र से आगे ही रहेंगे आय वृद्धि के मामले में। यह अलग बात है कि उनकी उत्पादकता भी सरकारी क्षेत्र से कहीं बेहतर रहेगी।

मित्रों, प्रसन्न हो कर आशा के हवाई पुल तो बान्धे ही जा सकते हैं! पैसा बढ़े तो एक जोड़ी नया जूता लेना ओवर ड्यू है। तीन बार तल्ला बदला चुके हैं। अफसरी में यह चौथी बार भी तल्ला बदला कर काम चलाना जंचता नहीं! पत्नी जी को इतनी फ्रूगेलिटी (frugality) सही नहीं लगती।


अनिल रघुराज अच्छा लिखते हैं। महर्षि वाल्मीकि भी अच्छा लिख गये हैं। वाल्मीकि जी ने मरा से राम तक की यात्रा की पर हिन्दुस्तानी की डायरी राम से मरा पर जा रही है। जय श्री राम! राम से मरा की यात्रा करने वाले क्षण की उपज हैं। राम अनंत तक चलने वाले सत्य हैं। कॉस्मॉस के टाइम और स्पेस में क्षण का भी महत्व है और अनंत का भी।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “सरकारी मुलाजिम, पे-कमीशन और तनख्वाह की बढ़त

  1. इस बार केवल इस बार वेतन आयोग की सिफारिशे किसानो के लिये भी हो। उन्हे भी मेहनत के उतने ही पैसे मिले जैसे बहुत से सरकारी कर्मचारियो को बिना काम मिलते है। तब किसानो की एक पूरी पीढी सम्भल जायेगी। आत्मह्त्या को भूलकर वे देश के विकास मे जुट जायेंगे।

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  2. ये तो सही है की सरकारी क्षेत्र अभी भी निजी क्षेत्रों की बराबरी नही कर पाया है चाहे उत्पादकता हो या गुणवत्ता हो या कर्मचारियों की तनख्वाह पर पहले की तुलना मे काफ़ी सुधार जरुर हुआ है.एक जोड़ी जूते मुझे भी अलोक जी की दुकान से दिलवा दिया जाय. अच्छा रहने दीजिये मिश्राजी से सम्पर्क करके तीस साल वाले ले लूँगा.

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  3. टिपण्णी करने वालों का जवाब नहीं. आप के लेख की बाकी बातें भूल कर सब जूते और उसके तल्ले पर ही उलझे रह गए दिखाई दिए. जूता प्रेम का ये एक अनूठा उधाहरण है. और तो और मैं भी तो जूते की ही बात को इंगित कर रहा हूँ . अनिल रघुराज की पारखी नज़र का भी मैं कायल हो गया हूँ, है कोई जवाब उनके प्रशन का?नीरज

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  4. वेतन आयोग (या फिर अयोग्य) कुछ न कुछ जरूर करेगा….वैसे जूता चर्चा अच्छी रही. अलोक जी तो दिल्ली में रहते हैं, सो पाँच साल चलने वाला जूता खरीद लेंगे…लेकिन इस मामले में कलकत्ते वाले दिल्ली से आगे हैं…यहाँ एक दुकान है जहाँ के जूते कम से कम तीस साल चलते हैं…सरकार ने इस दुकान को सब तरह के टैक्स की छूट भी दे रखी है……:-)

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  5. सरकारी वालों के मजे हैं तनखा भी बढ़ती है काम भी कम होता है..हमारी तनखा बाद में बढ़ती है काम पहले बढ़ जाता है… आलोक जी से जूते की दुकान का पता करना है..हमारे जूते भी एक साल से ज्यादा नहीं चलते जी.

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  6. दिल्ली मे एक दुकान है जहां के जूते पांच साल चलते हैं, बिना तल्ला बदले हुए। करीब सौ सांसद भी वहीं से खरीदते हैं और फुल पांच साल चलाते हैं, संसद में। पे कमीशन में से पे की चिंता के मुकाबले कमीशन की चिंता ज्यादा करने वाले सुखी रहते हैं। हम तो यही दुआ कर सकते हैं कि आपका प्रमोशन हो जाये और आप टीटीई बन जायें। कोई टीटीई कभी भी पे-वे-कमीशन की चिंता ना करता, वो तो बस यही चिंता करता है कि दिल्ली से मुंबई की ट्रेन में ड्यूटी लग जाये। आप रिटायरमेंट से पहले टीटीई बन पायेंगे या नहीं।

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  7. निजी क्षेत्र में जिस तरह तनख्वाहें बढ़ीं हैं, उसमें छठा वेतन आयोग तो अपरिहार्य हो गया था। लेकिन ट्रेन के लकदक कूपे में यात्रा वाली तस्वीर की याद करके जूते के तल्ले वाली बात हजम नहीं हुई। लगता है बात कहने के लिए कोई मुहावरा गढ़ा गया है।

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  8. हम तो मंहगाई के साथ ही तनखा बढने के नाम पर ही खुश हो जाते है, हमारी बढे कि मत बढे, सपने तो देख लेते हैं । वैसे नया जूता मुझे भी लेना है । पर एक बात समझ में आई यहां छत्‍तीसगढ में और वहां उत्‍तर प्रदेश में होम मिनिस्‍टरों की सोंच एक ही दिख रही है, दोनों जगह पत्नियों की नजर जूतों पर ही क्‍यों जाती है ?? आप हमारे अग्रज हैं बातें भले तारतम्‍यता में लिखते हैं पर सभी उदाहरणों एवं उक्तियों में गूढ होता है । कभी पत्नियों के चुहरे से ज्‍यादा जूतों पर ध्‍यान देने पर लिखियेगा ।आरंभ जूनियर कांउसिल

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  9. सही है। आजकल पे-कमीशन की चर्चा जबरदस्त है। मुझे उस दौर की चर्चा याद आती है जब सरकारी कर्मचारियों की सेवा में रिटायरमेंट की आयु ५८ से ६० की गयी थी। सीनियर लोग इन्तजार कर रहे थे कि उनके रिटायर होने से पहले यह आ जाये। एक ऐसे ही वार्तालाप में मैंन कहा- हमारे हाथ में होता तो हम आपको अपनी सेवा से दो साल की नौकरी निकाल के दे देते। आप ययाति की तरह मौज करते।

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