परशुराम – राम-लक्ष्मण संवाद


परशुराम और राम-लक्ष्मण संवाद विकट स्थिति के प्रबंधन में एक रोचक दृष्टांत प्रस्तुत करता है। परशुराम फैल गये थे शिव जी के धनुष का भंग देख कर। राम और लक्ष्मण को उन्हे नेगोशियेशन में विन-ओवर करना था। नेगोशियेशन में विश्वामित्र, जनक या अन्य राजाओं से कोई फेवरेबल इनपुट मिलने की सम्भावना नहीं थी। परशुराम के सामने स्वयम्वर में उपस्थित सभी राजाओं की पुलपुली वैसे ही कांप रही थी:

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मित्रों; हमें आये दिन नेगोशियेशन की ऐसी विकट स्थितियों से गुजरना पड़ता है। कभी कभी हमें अकेले को राम और लक्ष्मण के रोल एक में ही निभाने पड़ते हैं। हम सभी बिजनेस मैनेजमेण्ट इन्स्टीट्यूट से पढ़ कर नहीं आये होते। हमारे काम तो तुलसी की राम-कथा ही आती है।
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देखि महीप सकल सकुचाने, बाज झपट जनु लवा लुकाने ||—

पितु समेत कहि कहि निज नामा, लगे करन सब दंड प्रनामा ||

राम और लक्ष्मण ने अपने अपने रोल बहुत सही चुने। राम विनय की मूर्ति बन गये। परशुराम का क्रोध मिटाने को पर्याप्त विनय-जल डालने के लिये। ऐसे में एक दूसरे तत्व की आवश्यकता होती है जो क्रोध को उद्दीप्त कर थका मारे। वह काम करने के लिये लखन लाल ने रोल संभाला। राम ने शुरू में ही अपने क्रिडेंशियल के सर्टीफिकेट दिखा दिये:

नाथ संभुधनु भंजनिहारा, होइहि केउ एक दास तुम्हारा || अर्थात भगवन, शिव का धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा।

पर लक्ष्मण अपनी स्ट्रेटेजी के हिसाब से क्रोध हेतु व्यंग का ईंधन छिड़कते चले जाते हैं:

bow_arrowबहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं, कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ||
एहि धनु पर ममता केहि हेतू, ——

लखन कहा हँसि हमरें जाना, सुनहु देव सब धनुष समाना ||, और

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी, अहो मुनीसु महा भटमानी ||
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू, चहत उड़ावन फूँकि पहारू ||

इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि मरि जाहीं ||

राम परशुराम का क्रोध शान्त करने का सफल प्रयास करते हैं:

नाथ करहु बालक पर छोहू, सूध दूधमुख करिअ न कोहू ||
जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना, तौ कि बराबरि करत अयाना ||
जौं लरिका कछु अचगरि करहीं, गुर पितु मातु मोद मन भरहीं ||
करिअ कृपा सिसु सेवक जानी, तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी ||—

राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा, कर कुठारु आगें यह सीसा ||

और लक्ष्मण-राम के ब्लो हॉट-कोल्ड से; और नेगोशियेशन के दौरान राम द्वारा अपनी प्रॉवेस (prowess – वीरता, दिलेरी, साहस, शूरता) के पत्ते खोलने पर; अन्तत: परशुराम शान्त हो विदा होते हैं:

राम रमापति कर धनु लेहू, खैंचहु मिटै मोर संदेहू ||
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ, परसुराम मन बिसमय भयऊ ||—

अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता, छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता ||
कहि जय जय जय रघुकुलकेतू, भृगुपति गए बनहि तप हेतू ||

पूरा प्रसंग रामचरित मानस में तुलसी ने बड़े विस्तार से लिखा है।

मित्रों; हमें आये दिन नेगोशियेशन की ऐसी विकट स्थितियों से गुजरना पड़ता है। कभी कभी हमें अकेले को राम और लक्ष्मण के रोल एक में ही निभाने पड़ते हैं। हम सभी बिजनेस मैनेजमेण्ट इन्स्टीट्यूट से पढ़ कर नहीं आये होते। हमारे काम तो तुलसी की राम-कथा ही आती है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “परशुराम – राम-लक्ष्मण संवाद

  1. आपकी मानसिक हलचल की दाद देना चाहूँगा. क्या गज़ब का उतार-चढाव आता है जी उसमें. कल सेक्सी और आज रामचरितमानस. वैसे पोस्ट पठनीय है.

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  2. बहुत खूबजी। रामचरित मानस अकेले ही ब्रह्मांड के सारे एमबीए कोर्सों के बाप का बाप का बाप का बाप है। वैसे बस यही कसर रह गयी ज्ञानदत्त ब्लाग स्टोर में मानस कथा और शुरु हो ले। अजी छोड़िये, सब कुछ जमाते हैं कथा प्रवचन की दुकान। आप एक इंटरप्रिटेशन कीजियेगा,पब्लिक बोर होने लगेगी, तो हम अपना इंटरप्रिटेशन ठेल देंगे। सुबह से दोपहर आपका खोमचा, दोपहर से शाम तक अपनी फड़। सच्ची में इधर कथा प्रवचन करने वालों की इत्ती कमाईयां हैं कि बड़के बड़के अफसर भी इतने नहीं कमा रहे, मतलब टीटीई तक नहीं कमा रहे। आप हरी झंडी देकर लाइन किलियर करें, तो मैं इस परियोजना पर काम सा शुरु करुं।

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  3. यह प्रसंग मैने अपनी कक्षा 4 की किताब में पढ़ा था, जो आज के समय में पठ्यक्रम से हटा दिया गया है। निश्चित रूप से यह दुर्भाग्‍य है कि ऐसे प्रंसगों को हमारी पीढ़ी से दूर किया जा रहा है। आपने अच्‍छा लिखा है बधाइ्र।

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  4. भईया इस प्रसंग को हम भी कई कई बार पढे हैं, सुने हैं एवं नाटक रूप में देखे हैं, रोल भी प्‍ले किया है, किन्‍तु इस प्रसंग का इस प्रकार से विश्‍लेषण कर उसे आधुनिक सदर्भों में भी आत्‍मसाध किया जा सकता है यह सोंचा नहीं था ।

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  5. बहुत बढ़िया । तब तो हम संसार में नेगोशिएन्स की कला फैलाने वाले राष्ट्र का क्रेडिट भी ले सकते हैं ।घुघूती बासूती

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