सीनियर सिटीजन लोगों का कम्पीटीशन


फुरसतिया सुकुल की अम्मा जी के बारे में पढ़ कर अपनी अम्मा को कम्पीटीशन में खड़ा करने का मन हुआ। उनका बोला का ऑडियो क्लिप पोस्ट पर डालने में कोई परेशानी नहीं है। उन्मुक्त जी से इतना तो सीख लिया है कि आवाज कैसे पोस्ट पर चढ़ाई जाये। चक्कर सिर्फ़ यह है कि हमारी अम्मा को गाना नहीं आता। अब यह तो हो नहीं सकता कि पड़ोस की तिवराइन को टेप कर अम्मा जी के नाम पर ठेल दें! तिवराइन गा-वा बढ़िया लेती हैं। पड़ोस की कीर्तन मण्डली की सुपर नेत्री हैं। पर इस प्रकार का प्लेजरिज्म (plagiarism – साहित्यिक चोरी) ब्लॉग एथिक्स के खिलाफ होगा। लिहाजा फुरसतिया से जलन के सिवाय कुछ चारा नहीं है।

मेरी अम्मा के प्रॉजेक्ट बड़े सोचे समझे और योजना बद्ध होते हैं। आज गेहूं साफ़ करना है। उसके अनुष्ठान में मेरे पिताजी असिस्टेण्ट की भूमिका निभाते हैं। सवेरे नहा कर अगर नयी बनियान मैं पहनता हूं तो नया कपड़ा पहनने पर बड़े-बूढ़ों का पैर छूने की परम्परा के रूप में मैं मैं अपने अम्मा-पिताजी को खोजता हूं। वे दोनो बाहर धूप में गेंहूं धोते या धुला गेहूं बीनते पाये जाते हैं। साथ में अपने परिवेश अथवा अतीत की चर्चा में व्यस्त। मुझे लगता है कि उनका लड़का पैर छू रहा है कि बजाय इस बात से ज्यादा प्रसन्न होते हैं कि सरकारी अफसर पैर छू रहा है। इस क्षेत्र में सरकारी अफसर का ऑरा (aura) – भले ही अफसर हमारी तरह का चिर्कुट हो, बहुत है।

Parents

घर में एक हिस्सा खाली था। उस भाग में मेरा विचार छोटा सा लॉन बनवाने का हुआ। एक माली ३०० रुपये महीने पर ढूंढ़ा गया जो रोज एक आध घण्टे के लिये आ कर कुछ काम कर देता है। बड़ा कष्ट था इस सीनियर सिटीजन मण्डली को। इस तरह के मद में पैसा खर्च करना पैसे की बरबादी ही लगती है। पर गलती से माली सिन्सियर ब्राण्ड निकल गया। अच्छी घास रोप दी है लॉन में उसने। अब सी.सि. (सीनियर सिटीजन – सीसि) लोग ऐसे ठाठ से लॉन में बैठते हैं – जैसे मुगल गार्डन में बैठे हों!

एक प्रिय कार्य इन सीसि लोगों का है पुरानी वस्तुओं को सीने से चिपकाये रखना। एक स्कूटर जो वैस्पा या प्रिया मॉडल का है और जो पिछले कई वर्षों से एक किलोमीटर प्रतिमास की दर से चला होगा, छोटे से घर में जगह घेरे है। कोई काम का नहीं है। पर उसे बेचने की बात करने का अर्थ है कि दिन भर के लिये घर के वातावरण को तनावपूर्ण बनाना। इस प्रकार की बहुत चीजें हैं।

मेरी अम्मा को कोलेस्ट्रॉल की समस्या है। पैर में रक्तवाहिनी में ब्लॉकेज के कारण संजय गांधी पीजीआई की सप्ताह भर की तीर्थयात्रा कर चुकी हैं। वहां भी जनरल वार्ड में रहने या वातानुकूलित कमरे में भर्ती होने की बात को ले कर झिक झिक हो चुकी है। हमेशा साड़ी पहनने वाली अम्मा को अस्पताल में गाउन पहनाने में भी बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी थी। बढ़िया छींट का गाउन पहनने पर उनके हीरोइन छाप ब्यूटीफुल होने के हमारे मजाक पर वे ऐसे शरमाई थीं जैसे कोई पन्द्रह साल की लड़की! अब वह विगत हो चुका है। कायदे से अम्मा जी को परहेज से रहना चहिये, पर घर में कभी पकौड़े या समोसे बनें तो उनकी प्रसन्नता निर्बाध फूट पड़ती है।

मेरे पिताजी की व्याधियों के बारे में यहां विस्तार से लिखा है। पिताजी के मुंह में दांत नहीं हैं। धीरे धीरे और कम खाते हैं। पर सर्दी के मौसम में मटर के निमेना और भात बनने पर उनकी प्रसन्नता का पारावार नहीं रहता। जबसे मटर तीस रुपये किलो के अन्दर हो गयी है; जोर निमेना बनने का उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है।

सीधे-सादे सीसि लोग। यही मनाता हूं कि दो दशक और चलें कम से कम। तेजी से बदलती दुनियां मे अपने एडजस्टमेण्ट किस प्रकार से कायम करेंगे या कर रहे हैं ये लोग, वह देखने की चीज है।

फिलहाल ईर्ष्या है फुरसतिया से – उनकी अम्माजी इतना बढ़िया जो गाती हैं और उनके गायन का इण्टरनेटावतार भी हो चुका है!


और अब ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ (दिनकर जी की लिखी) की कुछ प्रिय पंक्तियां:

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जीवन गति है वह नित अरुद्ध चलता है,

पहला प्रमाण पावक का वह जलता है।

सिखला निरोध-निर्ज्वलन धर्म छलता है,

जीवन तरंग गर्जन है चंचलता है।

धधको अभंग, पल विपल अरुद्ध जलो रे,

धारा रोके यदि राह विरुद्ध चलो रे।

जीवन अपनी ज्वाला से आप ज्वलित है,

अपनी तरंग से आप समुद्वेलित है।

तुम वृथा ज्योति के लिये कहां जाओगे?

है जहां आग, आलोक वहीं पाओगे।

क्या हुआ, पत्र यदि मृदुल, सुरम्य कली है?

सब मृषा, तना तरु का यदि नहीं बली है।

धन से मनुष्य का पाप उभर आता है,

निर्धन जीवन यदि हुआ, बिखर जाता है।

कहते हैं जिसको सुयश-कीर्ति, सो क्या है?

कानों की यदि गुदगुदी नहीं, तो क्या है?

यश-अयश-चिन्तना भूल स्थान पकड़ो रे!

यश नहीं, मात्र जीवन के लिये लड़ो रे!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “सीनियर सिटीजन लोगों का कम्पीटीशन

  1. आमीन!!आओ ऐसे ही नए-नए कपड़े सालों पहनते रहें और उनके आशीर्वाद पाते रहें!हमारी भी पांव लागी उन तक पहुंचाएं।एडजस्टमेंट गुरु हैं हमारे बुजुर्ग!!ये हमारी पीढ़ी से जितनी आसानी से एडजस्टमेंट कर लेते हैं हम शायद ही अपनी आगे की पीढ़ी से कर पाएं।

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  2. भाव विभोर हो गए भईया आप की पोस्ट पढ़ के. अम्मा बाबा के दर्शन से जीवन धन्य हुआ सो अलग. बुजुर्गों के साये का क्या अर्थ होता है ये वो ही जान पाते हैं जिनके साथ बुजुर्ग रहते हैं. अम्मा मेरी भी बहुत सुर में गाती हैं संगीत की विधिवत शिक्षा जो ग्रहण की है उन्होंने वो भी अध्यापन कार्य से से सेवा मुक्त होने के बाद. भजन ही नहीं बल्कि आज कल की फ़िल्म, विशेष कर के ओमकारा का गीत “जबां पे लागा लागा रे नमक इश्क का” सुनेगे तो दंग रह जायेंगे. पापा जब जिंदा थे तब सितार बजाया करते थे और माता जी गाती थी. अद्भुत दिन थे वे भी.आप की पोस्ट से पुराने दिनों के सुरीले झोंके दिमाग में चले आए हैं. नीरज

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  3. माताजी और पिताजी को मेरा पावां धोक बंचना.एक बात कहना चाहता हूँ कि फुरसतियाजी की बात पे कान न दिया जाय. सीसीयों का कम्पटीशन जारी रहे.फायदे ही फायदे है इसमे.आख़िर बुजुर्गों की किसी भी चीज से कभी किसी का नुकसान हुआ है?

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  4. सीधे सादे लोग, वाकई। दुख और सुख बहुत सहज तरह से लेने वाले लोग। बेहतरीन पोस्ट।

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  5. आप तो निश्चित ही भाग्यशाली है। सेवा के इस पुण्य कार्य को करते रहे। आप चाहे तो उनके संस्मरणो और पुराने जमाने की बातो को उनके माध्यम से प्रस्तुत कर सकते है। इससे हम सब को प्रेरणा मिलेगी।

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  6. यही मनाता हूं कि दो दशक और चलें कम से कम। तेजी से बदलती दुनियां मे अपने एडजस्टमेण्ट किस प्रकार से कायम करेंगे या कर रहे हैं ये लोग, वह देखने की चीज है।………………”आमीन” ,ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हम भी “सी सी” बनने तक अपने बडों जैसा एडजस्टमेण्ट व धैर्य सीख जायें। आदर्णीय को मेरा प्रणाम्……

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  7. आपके पोस्‍टों को पढकर आपसे ज्‍यादा आपके माँ एवं पिताजी का आर्शिवाद प्राप्‍त करने का जी चाहता है आज आपने साक्षात करवाया प्रणाम ।

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  8. बढ़िया है। धांसू है। इस् उमर में बुजुर्गों का कम्पटीशन न कराओ जी। उनके आशीष पायें। यह एक खुशनुमा अहसास है कि हमारे बुजुर्ग लोग् इसी बहाने बजरिये नेट ग्लोबल हो लिये। कामना है कि दसियों साल आप् नयी बनियाइन पहनकर् सीसि के आशीष पाते रहें। बगल वाली तिवारिनजी के गीत् भी सुनवायें। आडियो-झाम शुरू करने की बधाई!

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  9. माली के भाव, मेरे यहाँ महीने में चार दिन एक एक घंटा यानी महीने में चार घंटे काम का १०० रुपए है।

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  10. आप भाग्यशाली हो भाईसा’बा ! ईश्वर इन दोनों की किरपा , आप सब पर हमेशा रखें ये मेरी दुआ है – आपने सुन्दर फोटो के साथ बड़ा प्यारभरा परिचय करवाया जिसे पढ़, बहुत प्रसन्नता हुई -उन्हें “पां लागीं ” कहियेगा सादर सस्नेह, लावण्या

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