सवेरे घूमते समय दो कुत्ते आपस में चुहल करते दीख गये। एक पामेरियन था। किसी का पालतू। घर से छूट कर बहक आया हुआ। दूसरा सड़क पर पला। दोनो एक दूसरे से ऊर्जा पा रहे थे। सवेरे की सैर आनन्ददायक हो गयी।
दुकाने खुलने पर अखबार वाले से बिजनेस स्टेण्डर्ड लेने गया। अखबार ले कर पर्स से पैसे निकाल रहा था कि अखबार पर दुकान वाले का बिल्ली का बच्चा आ कर खड़ा हो गया। उसका मुंह मेरी ओर नहीं था। उसके मालिक ने उसे अपनी गोद में ले कर मेरे मोबाइल के लिये एक पोज भी दे दिया।
पंकज अवधिया जी की कृपा से मेरे ब्लॉग सप्ताह में एक दिन वनस्पति जगत (flora) के लिये हो गया है। अगर किसी जुगत से एक दिन जीव जगत (fauna) के नाम भी हो जाये तो मजा आ जाये। जीव जगत के प्राणी अपनी पर्सनालिटी रखते हैं। वे बहुत कुछ सिखाते हैं। मैने रीडर्स डाइजेस्ट में अनेक लेख पढ़े हैं उनपर जो मैं किसी भी उत्कृष्ट रचना के समकक्ष रख सकता हूं। कुछ तो मैं अपने गोलू पर लिख सकता हूं; पर गोलू पर लिखना मेरे लिये कष्ट दायक है – वह इस संसार से जा चुका है। और जाते जाते मुझे मौत के सामने असहायता के अनुभूत-सत्य को स्पष्ट कर गया है।
क्या आपके पास पशुओं के प्रति कोई विशेष सोच है? उदाहरण के लिये मेरी पत्नी ने एक बार किंग कोबरा के दर्शन किये। सामने पड़ गये थे वे और फन काढ़ कर तन गये थे। मेरी पत्नी सन्न खड़ी रहीं। ताकती भी रहीं अपलक। बाद में मुझे बताया कि इतना भय कभी नहीं महसूस हुआ था। और वह जीव इतना सुन्दर था कि बार-बार देखने का मन भी करता है!
(मेरी पत्नी ने कहा कि ऐसा ही कुछ फकीरमोहन सेनापति ने अपने आत्मजीवनचरित में शायद कहीं लिखा है। हमने ढ़ूंढ़ा, पर मिला नहीं। हो सकता है किसी अन्य पुस्तक में हो।)
अच्छा; मैं इण्टरनेट पर उपलब्ध यह चित्र आपको दिखाता हूं। चित्र में ये सज्जन नॉर्थ केरोलीना के एक फायरमैन हैं। आग लगी इमारत से इन्होने इस डॉबरमैन कुतिया को बचाया। बेचारे डर भी रहे थे कि डॉबरमैन काट-वाट न ले। पर बचाने के बाद कुतिया ने यह किया – वह इस थके फायर मैन के पास गयी और उसे चूम कर उसे और उसके बच्चों (वह गर्भवती है) को बचाने के लिये धन्यवाद दिया।
मित्रों, सद्व्यवहार केवल मानव की बपौती नहीं है।
रविवार को गैरसरकारी छुट्टी रहेगी! :-)
कल दो टिप्पणी करने वाले सज्जनों ने याद दिलाया कि मैं उनके ब्लॉग पर नहीं जा रहा हूं। असलियत यह है कि मेरे दफ्तर की शिफ्टिंग से वहां इण्टरनेट उपलब्ध नहीं है। घर में इतना समय नहीं निकल पाता कि पोस्टें पढ़ने – टिप्पणी करने के धर्म का पूरा पालन हो सके। देर से घर लौटने के कारण सामान्यत: सवेरे ही समय निकल पाता है।
पर यह जान कर अच्छा लगा कि टिप्पणियां करना मेरे ब्लॉगीय धर्म के महत्वपूर्ण अंग के रूप में पर्सीव किया जा रहा है! या शायद यह है कि प्रमुख टिप्पणीकारक – समीर लाल और अनूप शुक्ल आजकल गायब हैं!

कीडे-मकौडो पर कुछ जानकारी की जरूरत हो तो बताइयेगा। मैने उनकी हजारो तस्वीरे उतारी है और बहुतो को पहचानता भी हूँ। पालतू पशुओ की तुलना मे फालतू कहे जाने वाले पशुओ मे ज्यादा रूचि है। आपने नील गाय पर जो पोस्ट लिखी थी वह बहुत बढिया थी। यदि आप ही एक दिन पशुओ पर लिखे तो यह गलत नही होगा।
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AAPKI POST NE VO VAAKYA YAAD DILA DIYA JAB MEREY PADOSI GHAR KI CHABI DE GAYE THE AUR UNKEY PLANTS KO SUUKHTA DEKH KAR MAI SICHAAYI VAALEY PIPE KI JAGAH SHAAM KE DHUDHANLKEY ME” dhaamin saanp” pe haath rakh baithii thii…AAPKEY NAYE TOPIC KA INTZAAR RAHEGA
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“मित्रों, सद्व्यवहार केवल मानव की बपौती नहीं है।”कितनी सटीक सच्ची बात वाह….आप के गोलू की तरह हमारे पास भी टैरी था जो अब नहीं है मैं भी उसके साथ बिताये लम्हे बांटने में सक्षम नहीं हूँ क्यों की उसके लिए बहुत बड़ा जिगर चाहिए.नीरज
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सचमुच, सद़व्यवहार केवल मानव की बपौती नहीं है। बल्कि मनुष्यों में तो यह लुप्त होती जा रही है। पशु, खासकर कुत्ते हमें नि:स्वार्थ प्रेम करना सिखाते हैं। वसीली सुखोमलीन्स्की ने अपनी किताब ‘बाल ह़दय की गहराईयां’ में लिखा है कि छोटे बच्चों को किसी-न-किसी पशु के सानिध्य में अवश्य रखना चाहिए। यह उन्हें भावनात्मक रूप से उन्नत करता है, प्रेम करना सिखाता है। बिना किसी अपेक्षा, प्रतिदान और नफे-नुकसान के हम प्यार करना सीखते हैं।
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टिप्पणीयों से लगता है आप से लोगों की अपेक्षाएं बढ़ती ही जा रही है, देखें दबाव में अपनी शैली को ना खो दें.सही कहा सदास्यता मनुष्य की बपौती नहीं पशू भी वयक्त करते है, समझते है.
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आलोक जी के टिप्पणी के समर्थन मे..
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1-बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ हिंदू बिजनेस लाइन भी पढ़ा कीजिये, धांसू च फांसू अखबार है। खास तौर पर स्टाक बाजार फोकस्ड जानकारी के लिए। 2-वाकई जीव जंतुओँ की दुनिया बहुत ही इंटरेस्टिंग है। कुत्ते तो वाकई बहुत ही रोचक जंतु हैंं। एक चीज तो मैं कई बार कनफर्म देख चुका हूं कि जब भी कुत्ते रोते हैं, कोई मौत आसपास जरुर होती है।कुत्तों के बारे मेंऔर छापिये पढ़ना अच्छा लगेगा। 3-वैराइटी बनाये रखिये. एक दिन फिल्मों को भी दीजिये। हम तो खैर राखी सावंत के जमाने के हैं, पर आप वैजयंती माला के टाइम के हैं। राखी सावंत से परहेज हो, तो कुछ वैजयंती माला पर ही छापिये। हाल में एक जीवनी उनकी आयी है। दिनेशजी से कहकर मंगवाइये।4-एक दिन सिर्फ सिर्फ अच्छी किताब पर फोकस कीजिये। इत्ती किताबें आपने पढ रखी हैं, उन पर तीन तीन सौ शब्द का सार दीजिये। बहुत ठीक रहेगा।
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आदरणीय पांडे जी, इस प्रकृति के एकएक कतरे से हम इतना कुछ सीख सकते हैं कि इस से हमारी ज़िंदगी ही बदल जाए। आप की पोस्टिंग में आप के कैमरे से खींची हुई फोटो देख कर अच्छा लगा–यह भी सीख लिया कि ब्लाग में इतनी शिद्दत से भी लिखा जा रहा है। God bless you !!
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अच्छा है हफ्ते में एक दिन आपकी प्रेक्षक नज़र एक नए पहलू के साथ आएगी। वैसे भी कहा जाता है कि इंसान में हर जीव के अंश मौजूद हैं क्योंकि उनके रूप में जन्म लेने के बाद ही वह मानव योनि तक पहुंचा है। इसीलिए महात्मा बुद्ध कहा करते थे कि हमें सभी प्राणियों से प्रेम करना चाहिए क्योंकि वे किसी न किसी जन्म में अपने रहे हैं।
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एक दिन आप की पोस्ट जीव जगत पर किसी विषय विशेषज्ञ से लिखवाने का विचार उत्तम है, पोस्ट में विविधता आ जाएगी। पर तब आप दो दिनों तक पाठकों के बीच गायब नजर आऐंगे। हमारा ब्लॉगर आप से टिप्पणी चाहता है तो पाठक आप की पोस्ट पढ़ना भी। ऑफिस का नैट भी जल्दी चालू करवाइये, लोगों को निराश मत कीजिए। आप हिन्दी ब्लॉग जगत की निधि हो चुके हैं।
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