वैराग्य को कौन ट्रिगर करता है?


रामकृष्ण परमहंस के पैराबल्स (parables – दृष्टान्त) में एक प्रसंग है। एक नारी अपने पति से कहती है – “उसका भाई बहुत बड़ा साधक है। वर्षों से वैराग्य लेने की साधना कर रहा है।” पति कहता है – “उसकी साधना व्यर्थ है। वैरग्य वैसे नहीं लिया जाता।” पत्नी को अपने भाई के विषय में इस प्रकार का कथन अच्छा नहीं लगता। वह पूछती है – “तो फिर कैसे लिया जाता है?” पति उठ कर चल देता है, जाते जाते कहता है – “ऐसे”। और पति लौट कर नहीं आया!

कितना नर्क, कितनी करुणा, कितनी वेदना हम अपने आस-पास देखते हैं। और आसपास ही क्यों; अपने मन को स्थिर कर बैठ जायें तो जगत का फिकलनेस (fickleness – अधीरता, बेठिकाना) हथेली पर दीखता है। शंकर का कथन – “पुनरपि जननं, पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनं” मन को मथने लगता है। कितना यह संसार-बहु दुस्तार है। पार उतारो मुरारी!

पर मुरारी मुझे रन-अवे (पलायन) की इजाजत नहीं देते। जब मैं युवा था तब विवेकानंद जी से सम्बन्धित किसी संस्थान के विज्ञापन देखता था। उनको आदर्शवादी युवकों की जरूरत थी जो सन्यासी बन सकें। कई बार मन हुआ कि अप्लाई कर दिया जाये। पर वह नहीं हुआ। मुरारी ने मुझे दुनियांदारी में बड़े गहरे से उतार दिया। वे चाहते तो आश्रम में भी भेज देते।

मित्रों, नैराश्य की स्थितियां – और वे अस्पताल में पर्याप्त देखीं; वैराग्य नहीं उत्पन्न कर पा रहीं मुझमें। यही नहीं, वाराणसी में मैं रेलवे के केंसर अस्पताल में निरीक्षण को जाया करता था। वहां तो वेदना/करुणा की स्थितियों की पराकाष्ठा थी! पर वहां भी वैराग्य नहीं हुआ। ये स्थितियां प्रेरित करती हैं कि कुछ किया जाये। हो सकता है यह सरकारी दृष्टि हो, जैसा इन्द्र जी ने मेरी पिछली पोस्ट पर कहा था। पर जो है सो है।

नित्य प्रति स्थितियां बनती हैं – जो कुछ सामने दीखता है; वह कर्म को प्रेरित करता है। मुझे दिनकर जी की पंक्तियां बार-बार याद आती हैं, जो मेरे छोटे भाई शिवकुमार मिश्र मुझे कई बार एसएमएस कर चुके हैं –

मही नहीं जीवित है मिट्टी से डरने वालों से
ये जीवित है इसे फूंक सोना करने वालों से
ज्वलित देख पंचाग्नि जगत से निकल भागता योगी
धूनी बना कर उसे तापता अनासक्त रस भोगी।

वैराग्य शायद इन्टेन्स जीवन में कर्मों को होम कर देने के बाद जन्म लेता हो, और उसका एक महान ध्येय होता हो। मैं तो अभी न कर्मों को जला पाया हूं और न ही इस बात से सहमत हो पाया हूं कि नैराश्य जनित अवसाद एक ध्येयपूर्ण वैराग्य/सन्यास उपजा सकता है।

आपके विचार शायद अलग हों?।


टाटा की लखटकिया कार टेलीवीजन पर अवलोक कर भरतलाल उवाच – अरे बड़ी नगद लागत बा, मेघा अस! (अरे, बहुत सुन्दर लग रही है – मेढ़क जैसी!)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “वैराग्य को कौन ट्रिगर करता है?

  1. इस आवारा बंदे ने तय कर रखा है कि वैराग्य आदि से संबंधित बातें बीस साल पढ़नी है। इसलिए आपकी बाकी पोस्ट नज़र-अंदाज़ कर सिर्फ़ भरतलाल की टिप्पणी पढ़ी गई जो कि धांसू है ;)

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  2. अपन विद्वानो की श्रेणी में अन्हीं आते अतः जानते हुए भी वैराग्य की वर्तनी नहीं बताई. आपने सही लिखा है मगर अंतिम लखटकिया कार पर टिप्प्णी बहुत मजेदार लगी.

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  3. पर बोला जाता है ग्ययूँ कहिए, कुछ लोगों द्वारा बोला जाता है ग्य। सही उच्चारण ज्+ञ है।

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  4. वैराग्य में जाया नहीं जाता। जब होना होता है, वह हो जाता है। आप जहां चले जायेंगे, दुनिया वहां चली जायेगी। दुनिया बाहर नहीं होती, अंदर होती है। अंदर को बदलना वैराग्य होता है।जिन्हे आप बाहर से बहुत बड़ा बैरागी मानते हैं। खेल उनके भी वही हैं। जो हो रहा है, उसमें रमे रहिये। मौज लीजिये। असली वैराग्य यही है। मौज लेने के लिए रोज पढ़ें आलोक पुराणिक का अगड़म बगडमपरम असली वैराग्य यही है।

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  5. @ अभय, आलोक – हिज्जे सही कर दिये हैं। “वैराग्य” से वैराग्य का मामला हो गया यह हिज्जे की गलती!

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  6. अनासक्त रसभोगी ही असली योगी है। आज के जमाने में जीवन छोड़कर भागनेवाले पाखंडी होते हैं। रही बात टाटा की नैनो कार की तो भरतलाल ने नई दृष्टि दे दी। वाकई अब मेढ़क जैसी लगने लगी है।

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  7. आधे ज में ञ वाले ज्ञानदत्त जी,वैराज्+ञ नहीं, वैराग्+य वैराग्य।

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  8. पूरा नहीं पढ़ सका.. ऐसी ही टिपिया रहा हूँ.. वैराग्य के हिज्जे ग़लत हैं.. वैराग्य..विराग.. राग.. सब जगह ग ही है.. ‘ज्ञ’बना है ज और ञ से मिलकर.. पर बोला जाता है ग्य.. शायद इसलिए आप ने एक कदम और बढ़ाकर ग्य धवनि वाले शब्द को ज्ञ लिख दिया.. सुधार लें.. नये वर्ष की शुभकामनाऎं.. वैसे इस टिप्पणी को छापने की ज़रूरत नहीं है!

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