हृदय और श्वांस रोगों में पारम्परिक चिकित्सा


यह श्री पंकज अवधिया जी की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। रक्त को पतला करने के विषय में यह पोस्ट उन्होनें मेरी माताजी के रक्त वाहिनी में थक्के के कारण अवरोध और फलस्वरूप हॉस्पीटल में भरती होने के सन्दर्भ में लिखी है। इसके लिये मैं उनका व्यक्तिगत आभारी भी हूं। यह समस्या व्यापक है और खून को प्राकृतिक तरीके से पतला करने के विषय में जानकारी बहुत काम की होगी। आप उनका लेखन पढ़े:


ज्ञान जी की ये पोस्ट तो आपने पढ़ी ही है “कल शाम मेरी माताजी अचानक बीमार हो गयीं। रक्त वाहिनी में थक्का जम जाने से पैर में सूजन और असहनीय दर्द के चलते उन्हें अस्पताल में ले आये। प्राथमिक आपात चिकित्सा से मामला ठीक है।“ इसी सन्दर्भ मे उन्होने मुझसे पूछा था कि क्या कोई वनस्पति है जो माताजी के काम आ सकती है? इस बार की पोस्ट इसी पर केन्द्रित है।

देश भर के पारम्परिक चिकित्सक यूँ तो कई प्रकार की वनस्पतियो का प्रयोग करते है पर कोहा या कौवा और पतंग नाम वृक्षो की लकडियाँ इसके लिये विशेष तौर पर उपयोगी है। कोहा या कौवा को अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ मे धान के खेतो की मेड़ पर इसके वृक्ष देखे जा सकते है। हृदय रोगो मे इसके विभिन्न भागों का प्रयोग होता है। खून को पतला करने के लिये पारम्परिक चिकित्सक इसकी लकड़ी से गिलास तैयार कर लेते है। मरीज को कहा जाता है कि इस लकडी के गिलास मे पानी भरे और रात भर छोड दे। सुबह इसका पानी पी ले, खाली पेट। एक गिलास औसतन एक महिने चल जाता है।

तीस से 80 रूपये मे एक गिलास मिल जाता है। चतुर व्यापारी अब इस गिलास को सस्ते मे खरीदकर बडे महानगरो मे 1000 रूपयो तक मे बेच रहे हैं। चतुर शब्द का प्रयोग इसलिये किया क्योकि वे ग्राहको को कहते है कि इसका असर एक सप्ताह तक रहता है। इस तरह उनकी बिक्री बढ जाती है। मुझे पारम्परिक चिकित्सको से ही गिलास लेना सही जान पडता है क्योकि उन्हे मालूम होता है कि कैसी लकड़ी अच्छी है और किस रोगी के लिये उपयुक्त है?

हृदय रोगो के अलावा श्वाँस रोगो के लिये यह पानी लाभकर होता है। कोहा की तरह ही पतंग नामक वृक्ष की लकडी का प्रयोग दक्षिण भारत के पारम्परिक चिकित्सक करते हैं। इसमे पानी का रंग सुबह तक लाल हो जाता है। पतंग का वैज्ञानिक नाम Caesalpinia sappan है। आधुनिक विज्ञान ने दोनो प्रयोगों को मान्यता दी है। पर एक मुश्किल अभी भी है और वह यह कि क्या इसका प्रयोग अन्य दवाओं के साथ किया जा सकता है। ज्ञान जी की माताजी एलोपैथिक दवा ले रही है। मैने उनसे इन वनस्पतियो के विषय मे अपने डाक्टर से पूछने कहा है पर मुझे मालूम है कि डाक्टरो के पास इसका जवाब नहीं है क्योकि दो या अधिक प्रणालियो की दवाओ को कैसे एक साथ प्रयोग करे इस पर दुनिया में कम ही शोध हो रहे है। सब मेरी मुर्गी की एक टाँग कहते हुये अपने को अच्छा बताने की होड़ मे लगे है। आम लोग दुविधा मे है और अपनी समझ के अनुसार दवाओं को मिला रहे है जो नुकसानदायक भी हो सकता है। ज्ञान जी का जवाब आते ही मै कोहा का गिलास भिजवा दूंगा। आप भी मुझे लिख सकते हैं। हाँ, पैसे की बात न करें। इसे मेरी ओर से छोटा सा उपहार ही समझे। अब तक दसों गिलास इसी तरह मित्रों को राहत पहुँचा रहे हैं।

जैसा आप जानते हैं मेरी इन पोस्टो पर टिप्पणी कम हो रही है पर निजी मेल बहुत आ रहे है। ये मेल स्वास्थ्य समस्याओ को लेकर है। यथासम्भव मै आपके जवाब इसी स्तम्भ से देने का प्रयास करूंगा।

चलते-चलते

यदि आप बहुत यात्रा करते है और इससे आपका स्वास्थ्य नरम गरम रहता है तो अदरक से दोस्ती कर लीजिये। अदरक किसी भी रूप मे आपकी मदद करेगा। पर सबसे सरल प्रयोग इसके रस का शहद के साथ सेवन ही है। एक चम्मच मे आधी शहद और आधा भाग अदरक का रस एक दिन की खुराक है। आजमायें और लाभ होने पर दूसरो को भी बतायें।

कोहा पर लेखो की कड़ी ईकोपोर्ट पर यहां है।

कोहा के चित्रो की कड़ी ईकोपोर्ट पर यहां है।

पतंग पर लेखो की कड़ी ईकोपोर्ट पर यहां है।

पंकज अवधिया

© लेख पंकज अवधिया के स्वत्वाधिकार में।


यह देखिये – मैने इण्टरनेट पर पाया कि एक कम्पनी अर्जुन के वृक्ष (Terminalia arjuna) का प्रयोग अर्जुन हर्बल चाय बनाने में कर रही है और उसे हृदय रोगों में लाभदायक बता रही है। >>>

मेरी माता जी तो अभी सुबह शाम ब्लड-थिनर के इन्जेक्शन ले रही है। ये इन्जेक्शन काफी मंहगे हैं। रु. ४२५ का एक इन्जेक्शन है। मजे की बात है कि उनमें हिमोग्लोबीन की भी कमी है। और उसको दूर करने के लिये जो भोजन सप्लीमेण्ट लेने को डाक्टर साहब ने कहा है – शाक आदि, वे विटामिन ’के’ के भी स्रोत हैं और रक्त गाढ़ा बनाते हैं!

लगता है कोहा के ग्लास के लिये मुझे पंकज जी के पास रायपुर का चक्कर लगाना ही पड़ेगा!

फिलहाल मुझे अगले तीन दिन प्रवास में रहना है और लगभग १२० घण्टे तक इण्टरनेट से वंचित रहना पड़ेगा। अपनी इस पोस्ट पर टिप्पणियां छापने का काम तो मैं मोबाइल फोन के जीपीआरएस कनेक्शन से कर लूंगा। पर उससे अधिक विशेष नहीं।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “हृदय और श्वांस रोगों में पारम्परिक चिकित्सा

  1. बहुत बढ़िया जानकारी… अब हम कैसे लकड़ी का गिलास मँगवाए …सोच रहे हैं.. अदरक तो यहाँ मिठाई के रूप मे भी खाते हैं.

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  2. आप सभी की टिप्पणियो के लिये आभार। यह जानकर प्रसन्नता हुयी कि आपमे से बहुत से लोग अर्जुन की चाय पीते है। चूँकि मै जडी-बूटियो के व्यापार मे सलाहकार का कार्य भी करता हूँ और देश-विदेश की बडी कम्पनियाँ मुझसे सेवाए लेती रहती है इसलिये मै इस व्यापार के कुछ कडवे रहस्यो को जानता हूँ। आप यदि किसी व्यापारी के घर अर्जुन की छाल को देखेंगे तो कभी चाय नही पी पायेंगे। आम तौर पर सही प्रभाव के लिये इसकी अंतर छाल के प्रयोग की सलाह दी जाती है पर एकत्रण के समय किसी भी प्रकार की छाल एकत्र कर ली जाती है। पुराने वृक्ष से छाल एकत्र करनी चाहिये पर इसका भी ध्यान नही रखा जाता है। अक्सर छाल मे बार्क इटिंग कैटरपीलर अर्थात छाल खाने वाली इल्लियाँ रहती है और छाल के साथ वह भी आ जाती है। मिलावट मे तो भारतीयो की दुनिया मे सानी नही है। इस छाल मे भी मिलावट होती है। व्यापारियो के पास से ऐसी छाल उसी मात्रा मे एकत्र कर ली जाती है और कम्पनियाँ बारीक पावडर बनाकर सुन्दर पैक मे इसे उपभोक्ताओ के सामने प्रस्तुत कर देती है। आम लोग भी आस्था से इसे पीते है पर सही लाभ पाने से वंचित हो जाते है। इसलिये यदि आप उन भागो मे रहते है जहाँ ये वृक्ष अपने आप उगते है तो स्वयम छाल एकत्र कर उपयोग करे। अन्यथा जैसा संजीत ने लिखा है गायत्री परिवार जैसी संस्थाओ के उत्पाद ले जहाँ कमाई ही मुख्य ध्येय नही होता। इससे ही आप सही मायनो मे लाभ प्राप्त कर सकेंगे।

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  3. इस जानकरी के लिये धन्यवाद!ग्यानदत जी मे पोर्तुगाल मे रहता हु ओर मेरी पत्नी जी को स्वास की प्रोब्लम हे अगर लकडी वाला गिलास मगवाना हो तो केसे सम्पर्क करे

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  4. बढ़िया!!बचपन में पिताजी जी को अर्जुन छाल वाली चाय पीते देखा था। गायत्री परिवार द्वारा भी इस तरह की चाय की बिक्री की जाती थी।शुक्रिया!

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  5. शु्क्रिया ज्ञानदत्‍त जी, मेरी मां भी इस बिमारी से जूझ रही है, यह लेख मेरे लिए काफी महत्‍वपूर्ण है आशीष महर्षि

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  6. कमाल की जानकारी है। मेरी मां भी खून पतला करने के लिए बराबर इकोस्प्रिन लेती हैं। उन्हें इस औषधि के बारे में बताता हूं।

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  7. ज्ञान जी। पंकज जी। सुबह उठ कर कम्प्यूटर पर आ बैठा था। घंटे पहले शोभा जी (मेरी धर्मपत्नी) ने मेरा दिन का पहला पेय पीने को दिया, उसे पी कर निपटा हूँ। इस में चाय जितने दूध-पानी के मिश्रण में अर्जुन छाल का आधा चम्मच पाउडर आधा चम्मच चीनी के साथ उबाला है और छान कर मुझे दिया है। यही मेरी सुबह की चाय है। स्वादिष्ट भी है। इस के लाभ हानि आप बताएं।

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