फुट रेस्ट न होना असुरक्षा का कारण


मैने कही‍ पढ़ा था कि लेनिन असुरक्षित महसूस करते थे – उनके पैर छोटे थे और कुर्सी पर बैठने पर जमीन पर नहीं‍ आते थे। मेरा भी वैसा ही हाल है। छोटे कद का होने के कारण मुझे एक फुट रेस्ट की जरूरत महसूस होती है। घर मे‍ यह जरूरत मेज के नीचे उपलब्ध एक आड़ी लकड़ी की पट्टी से पूरी हो जाती है। और घर मे‍ तो पैर मोड़ कर कुर्सी पर पालथी मार कर भी बैठ जाता हूं।

दफ्तर मे‍ मेरी पिछली पोस्ट वाले कमरे मे‍ एक फुट-रेस्ट था। नये पद वाले कमरे में नहीं है। मेरे से पहले वाले सज्जन को जरूरत नहीं थी। उनके पैर लम्बे थे। जरूरत मुझे भी न होती अगर कुर्सी की ऊंचाई एडजेस्टेबल होती। कुर्सी एडजेस्टेबल हो तो आप उस कुर्सी की अपेक्षायें भी एडजेस्ट कर सकते हैं!

कुर्सी की ऊंचाई कम नहीं कर पा रहा, सो, मैं भी एक तरह की अन-इजीनेस महसूस करता हूं। अकेला होने पर पैर मेज पर रख कर बैठने का मन करता है – जो रीढ़ के लिये सही नहीं है। मजे की बात है कि दफ्तर की आपाधापी में कभी याद नहीं आता कि एक फुट रेस्ट का ऑर्डर दे दिया जाये।

आज घर पर हूं तो सोच ले रहा हूं। नोट बुक में लिख भी लेता हूं। एक फुट-रेस्ट बनवाना है। मुझे लेनिन नहीं बनना है!
(कभी-कभी बुद्धिमान ब्लॉगरों की तरह गोल-गोल बात भी कर लेनी चाहिये! Thinking)


काश कुछ छोटी छोटी चीजों के होने न होने से आदमी लेनिन, गांधी या माओ बन सकता! लेनिन से मिलने वाला उनके नौ फुट के होने की कल्पना ले कर गया होता था। एक छोटे कद का व्यक्ति देख कर उसे निराशा होती थी। पर लेनिन के ओजस्वी वार्तालाप से वह व्यक्ति थोड़ी देर में स्वयं अपने को नौ फुट का महसूस करने लगता था।

आप लेनिन से असहमत हो सकते हैं। पर क्या उनकी महानता से भी असहमत होंगे?


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

15 thoughts on “फुट रेस्ट न होना असुरक्षा का कारण

  1. “कुर्सी एडजेस्टेबल हो तो आप उस कुर्सी की अपेक्षायें भी एडजेस्ट कर सकते हैं! “इस लाईन ने तो निपटा ही दिया बस!! :)

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  2. फुटरेस्ट का किस्सा बढ़िया है. वैसे फुटरेस्ट के बारे में एक किस्सा मैंने भी सुना था. हो सकता है आप में से बहुत लोगों ने भी सुना हो, लेकिन मैं फिर भी लिख देता हूँ…एक अफसर जिनकी लम्बाई कम थी, एक नए विभाग में ट्रांसफर हुए. जब भी कुर्सी पर बैठते तो पैर हवा में लटक रहे होते. अब चूंकि सरकारी अफसर थे, तो उन्होंने विभाग को चिट्ठी लिखी कि उन्हें फुटरेस्ट की जरूरत है. इस सरकारी विभाग में इस तरह की समस्या पहले कभी नहीं हुई थी. इसलिए अफसर जी की चिट्ठी को लेकर विभाग में बैठक हुई. पहले अगर ऐसा कुछ हुआ होता तो समस्या का संधान मिल जाता. लेकिन बहस के बाद ये निष्कर्ष निकला कि ऊपर के लोगों को चिट्ठी लिखकर जवाब माँगा जायेगा. चिट्ठी बाजी शुरू हो गई. चार महीने बीत गए, लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका.एक दिन अफसर जी ने जवाब माँगा तो पता चला कि अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है. उन्हें लगा कि एक बार फाईल मंगा कर देखा जाय कि किस-किस ने कहाँ-कहाँ चिट्ठी भेजी. किसका क्या रिएक्शन था. जब उनके सामने फाईल आई तो उन्होंने देखा कि उनके सामने दो मोटी-मोटी फाईलें रखी थीं. फाईलें इतनी मोटी थी कि उनकी हाईट करीब दो फुट से ज्यादा थी.उन्होंने दोनों फाईलें को मिलकर अपने लिए एक फुटरेस्ट तैयार कर लिया…

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  3. छोटी-छोटी चीजों के माध्यम से बड़ी और सार्थक बातें करना आपके चिंतन की पराकाष्ठा को प्रतिविम्बित करता है ,कुर्सी एडजेस्टेबल हो तो आप उस कुर्सी की अपेक्षायें भी एडजेस्ट कर सकते हैं! क्या बात है , बहुत बढिया !

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  4. हमारी कुर्सी का किस्सा भी कुछ ऐसा ही है. दोनो बेटे कुर्सी को ऊपर करते हैं तो हम नीचे… ज़मीन से ज़्यादा क़रीब…

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  5. कभी-कभी बुद्धिमान ब्लॉगरों की तरह गोल-गोल बात भी कर लेनी चाहिये! ) yaqiin maaniye sahaj dhang se kahi baaten zyaada prabhaavi hoti hai…kam se kam merey liye to

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  6. कद से भले ही छोटे हैपर दिल से बडे है आपईटे कुछ चिनवाय केफ़ुट रेस्ट बनाले आपधडाधड काम चलेगा :)

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  7. लेनिन छोटे कद के बावजूद कमाल के व्यक्ति थे। उन्हों ने जितना लिखा है पढ़ पाना संभव नहीं। उन्हें पढ़ें तो अधिकांश से असहमत होने की गुंजाइश नहीं रहती। मार्क्स की वैज्ञानिक समाजवाद की धारणा को, जो केवल पूंजीवाद के विकास पर ही संभव हो सकती थी, उन्होंने अर्धसामंती समाज को जो पूरी तरह पूंजीवाद में भी तब्दील नहीं हो पाया था वैज्ञानिक समाजवाद में परिवर्तित करने का सपना देखा और सच करने में जुट गए। लेनिन के बाद क्या हुआ वह और बात है। पर दार्शनिक होना और साथ-साथ एक क्रांति का नेतृत्व करना दुनियाँ भर के विरोध के बाद उसे संपन्न कर लेना। अद्वितीय है। आप फुटरेस्ट तुरंत बना लें। वरना कुर्सी के आगे के किनारे आप के जंघाओं की साइटिका नर्व को दबाती रहेगी और साइटिका दर्द का सृजन कर देगी। आगे के परिणामों से आप वाकिफ होंगे ही।

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  8. फ़ुटरेस्ट का आर्डर दे ही डालिये, जब आप आराम से बैठेंगे तभी समुचित ध्यान दे पायेंगे अपने काम पर भी । लाल बहादुर शास्त्रीजी का भी कद छोटा था लेकिन व्यक्तित्व बडा विशाल था । अभी थोडी देर में अपने ब्लाग पर एक प्रासंगिक अंग्रेजी आडियो लगाने का सोच रहा हूँ, साथ ही डर भी रहा हूँ हिन्दी वाले अपनी जमात से निकाल न बाहर करें :-)और अब आप भी अंग्रेजी कम ही प्रयोग करते हैं, क्या आपने ध्यान दिया है ?

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  9. “कुर्सी एडजेस्टेबल हो तो आप उस कुर्सी की अपेक्षायें भी एडजेस्ट कर सकते हैं! ” बढिया!!मेरे आफिस में स्वास्थ जांच के दौरान ऊंचाई और बैठने के तरीके की भी जांच होती है और ergonomics के अनुसार डेस्क और कुर्सी की ऊंचाई ठीक कर दी जाती है।ये और बात है कि मेरी ऊंचाई की वजह से डेस्क तो ऊंची मिली है पर “कुर्सी” अभी तक छोटी ही है :)हर किसी की समस्या अनोखी!!

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