पूर्वाग्रह, जड़ता और मौज की बाईपास


अनूप शुक्ल का कहना है कि हमें मौज लेना नहीं आता। यह बात बहुत समय से मन में खटक रही है। बात तो सही है। पर अपनी समस्या क्या है? समस्या पता हो तो निदान हो। जिन्दगी को लेकर क्यों है इतनी रिजिडिटी (जड़ता)? क्यों हैं इतने पूर्वाग्रह (prejudices)? यह हमारे साथ ही ज्यादा है या सभी इसके मरीज हैं?

अनूप इसपर बेहतर लिख सकते हैं। उन्हें मौज लेना आता है। ब्लॉग पर भी जाने कहां कहां घूम आते हैं। हमने तो अपने पूर्वाग्रह के किले बना रखे हैं। मुहल्ले पर नहीं जाना; भड़ास नहीं पढ़ना। फिल्मों की बात टैबू (Taboo) है। एक भड़ास के ब्लॉगर ने एक गजल/गीत की फरमाइश कर दी तो लगा कि गजल/गीत में जरूर कुछ असहज होगा – क्योंकि पूर्वाग्रह है कि भड़ास का लेखन मेरे लिये असहज है। वह गजल/गीत जब नीरज रोहिल्ला ने प्रस्तुत किया; तो इतना पसंद आया कि मैने लैपटॉप पर माइक्रोफोन रख कर रिकार्ड कर लिया (ऐसे गीत की तलब वाले सज्जन निश्चय ही विशिष्ट सेंसिटिविटी वाले होंगे)। और भी न जाने कितने पूर्वाग्रह हैं!

मजे की बात है कि ये पूर्वाग्रह आभास देते हैं कि मेरे फायदे के लिये काम करते हैं। स्त्रियों के सामुहिक ब्लॉग पर नहीं जाता तो अपने को सेफ महसूस करता हूं – कोई कहे के गलत अर्थ तो नहीं लगायेगा। वे लोग, वे चीजें, वे विचार जिनमें परेशान करने की क्षमता है, को अगर अपने से दूर रखा जाये तो व्यर्थ का तनाव तो न होगा। लेकिन यह सोच या यह वृत्ति वैसी ही घातक है, जैसे अपना ब्लॉडप्रेशर न चेक कराना और अचानक रीनल फेल्योर या हृदयाघात को फेस करना।

पूर्वाग्रह या जड़ता एक निश्चित प्लान को लेकर जिन्दगी जीने का एक तरीका है। और बड़ा बेकार तरीका है। इतने थपेड़े खाये हैं अबतक, कि पता हो जाना चाहिये कि शाश्वत जड़/स्टैटिक प्लान से कोई जिन्दगी नहीं चला सकता। फिर भी शायद बचपन से ट्रैनिंग है कि अपनी खोल में रहो। वे मां-बाप कितने अच्छे होते हैं जो बच्चे को यायावरी के लिये प्रोत्साहित करते हैं। या कभी मां-बाप वैसे नहीं होते तो मित्र मण्डली वह सिखा देती है। हमारे साथ दोनो नहीं हुये (इसका मतलब यह नहीं कि अपनी चिरकुटई के लिये औरों को दोष देना सही है)। हम समझते हैं कि किताबें हमें पूर्वाग्रह या जड़ता का तोड़ सिखा देंगी, पर पुस्तकें एक सीमा तक ही सिखाती हैं। शेष जिन्दगी सिखाती है।

मुझे लगता है कि मेरी मौज की नसें इतनी जड़ हैं कि उनको एक्टीवेट करने के लिये एक बाइपास कराना होगा। फुरसतिया मौज-हेल्थ इंस्टीट्यूट में इस बाइपास की सुविधा है?!1


1. लगता है गलत समाधान खोज रहा हूं। यह बाइपास तो खुद करना पड़ता है।Happy


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

18 thoughts on “पूर्वाग्रह, जड़ता और मौज की बाईपास

  1. प्रभुवर,इस ब्लाग को मात्र एक टिप्पणी से उपकृत नहीं किया जा सकता । अभी तड़फड़ लखनऊ जाना है, पंडिताइन सिर पर खड़ी है । मेरी लेटलतीफ़ी , अपनी किस्मत और ब्लागिंग को रो रही है । मेरा मन भी हिंदी ब्लागिंग से ऊब रहा है, जाने क्यों ? फिर भी अपनी एक व्यक्तिगत विवेचना कुछ तो है… पर एक दो दिन में अवश्य पोस्ट करूँगा । यह एक विस्तृत विषय है । अनुमति है ? सादर – अमर

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  2. संत आलोक जी ने अपना ज्ञान नहीं बांटा,क्या बात है?…:)अच्छा लगा देख कर कि आप introspection कर रहे हैं यही अपनी प्रगती की पहली सीढ़ी है। पूर्वग्रह से हम सभी पीड़ित हैं, उन्हे पहचान कर हटाने की कौशिश करना ही बड़ी बात है।

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  3. मैने कभी एक शेर लिखा था –“मुफ़लिसी हर आँख में किसी ना किसी शय कीअपनी तरह से हर कोई मोहताज जुदा है….”मौज की मोहताजी पर याद आ गया….लगे रहिये जनाब, ज़िंदगी की मौज में ज़िंदगी की मौज मिले तो हमें अवश्य सूचित कीजियेगा…

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  4. पूर्वाग्रह या जड़ता एक निश्चित प्लान को लेकर जिन्दगी जीने का एक तरीका है। और बड़ा बेकार तरीका है। इतने थपेड़े खाये हैं अबतक, कि पता हो जाना चाहिये कि शाश्वत जड़/स्टैटिक प्लान से कोई जिन्दगी नहीं चला सकता। बहुत मार्के की बात कही आपने.

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  5. अब फार्मूला तो आप जान ही गये हैं…तो फिर जब खुद ही करना है तो कर डालिये बाईपास..हो जाईये बेबाक…और लिजिये मौज मजे…देखिये बदला रंग…नई दुनिया के संग…शुभकामनायें. :)

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  6. पंकज अवधिया > आप निदान की बात कर रहे है या समाधान की। मैने जो लिखा है, वह तो सिम्प्टोमैटिक अटकल है – चाहिये तो निदान भी और फिर समाधान भी। और मुझे लगता है कि मेरे जैसे कई और समस्याग्रस्त होंगे।

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  7. आप निदान की बात कर रहे है या समाधान की। निदान का अर्थ होता है डायग्नोसिस। निदान समाधान नही है पर यदि निदान हो जाये तो समाधान मे आसानी जरुर हो जाती है।

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