मेरी दोषारोपण तालिका


मेरी दोषारोपण तालिका

मेरी जिन्दगी में क्या गड़बड़ है? और उस गड़बड़ के लिये दोषी कौन है?
मेरा १५ किलो अतिरिक्त वजन मेरी अनुवांशिकता। हाइपोथायराइडिज्म की बीमारी। घर के पास घूमने को अच्छे स्थान की कमी। गोलू पाण्डेय का असामयिक निधन (उसे घुमाने ले जाने के बहाने घूमना पड़ता था)। मेरे दफ्तर के काम का दबाव। एक्सरसाइजर की सीट अनकम्फर्टेबल होना। दफ्तर में चपरासी समोसे बड़ी तत्परता से लाता है। बचपन में अम्मा ने परांठे बहुत खिलाये।
मेरे पास पैसे की कमी ब्राह्मण के घर में पैदा होना। मां-बाप का पैसे के प्रति उपेक्षा भाव। दहेज न मांगा तो क्या – श्वसुर जी को दे ही देना चाहिये था। शिव कुमार मिश्र/ आलोक पुराणिक टिप्स ही नहीं देते। रिश्वत को लेकर अन-हेल्दी इमेज जो जबरी बन गयी हैShy। सेन्सेक्स। सरकारी नौकरी की कम तनख्वाह।
उदासी लोग मतलबी हैं। काम ज्यादा है। गर्मी ज्यादा पड़ रही है। नये जूते के लिये पैसे नहीं बन पा रहे (पत्नी जी को इससे सख्त आपत्ति)। थकान और स्पॉण्डिलाइटिस के अटैक। ग्रह दशा का चक्कर है। खुशी तो रेयर होती है जी।
छोटा कद अनुवांशिकता। बचपन में किसी ने सही व्यायाम नहीं बताये। मां-बाप ही लम्बे नहीं हैं।
अखबार/टीवी/संगीत से उच्चाटन लोगों में क्रियेटिविटी नहीं है। अखबार में दम नहीं है। टीवी वाले फ्रॉड हैं। बढ़िया वाकमैन खरीदने को पैसे नहीं है। केबल टीवी के जाल के कारण रेडियो खरखराता है।
ब्लॉग पर लोग नहीं बढ़ रहे हिन्दी ब्लॉगरी में जान है ही नहीं। इण्टरनेट का प्रसार उतना फास्ट नहीं है। लोग सेनसेशनल पढ़ते हैं। समय बहुत खाती है ब्लॉगरी और उसके अनुपात में रिटर्न नहीं है। लोग विज्ञापन पर क्लिक ही नहीं करते।

यह लिस्ट बहुत लम्बी बन सकती है। गड़बड़ी के बहुत से मद हैं। पर कुल मिला कर बयान यह करना है कि मेरी मुसीबतों के लिये मैं नहीं, दोषी मेरे सिवाय बाकी सब घटक हैं! जब मेरी समस्याओं के किये दोष मेरा नहीं बाहरी है तो मै‍ परिवर्तन क्या कर सकता हूं। ऐसे में मेरी दशा कैसे सुधर सकती है? मेरे पास तो हॉबसन्स च्वाइस (Hobson’s choice – an apparently free choice when there is no real alternative) के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है!

यह कहानी हममें से तीन चौथाई लोगों की है। और हम क्या करने जा रहे हैं? इतनी जिन्दगी तो पहले ही निकल चुकी?!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

32 thoughts on “मेरी दोषारोपण तालिका

  1. मन छोटा मत कीजीयेआपमे और सोनिया जी मे कितनी समानताये है देखियेवहा भी सारी गडबडियो के लिये देश जिम्मेदार है और यहा भी एक उदाहरण देता हू ,बाकी तो आप दोनो ही बहुत समझदार है (सोनिया जी और आप)महगाई बढी:- देश के लोगो के ज्यादा खाने सेआपके पास पैसा नही है :- महगांई की वजह सेचिंता मत कीजीये आप भी उन की तरह देश का बटाधार करने मे पूरे मनोयोग से लग जाईये जल्द ही आपकी समस्याये या तो सुलझ जायेगी या देश मे और लोगो की स्मस्याये इतनी बढ जायेगी कि उनके सामने आपको ये समस्याये तुच्छ लगने लगेगी :)

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  2. कम से कम आपको एहसास तो है कि गड़बड़ी” है” और “क्यों” है । वरना आधे से ज़्यादा लोग तो बस्स्स्स्स्सस्सस्स जिये जा रहे हैं

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  3. श्री श्री रामदेव जी के पास आप की इन और संभावित सब समस्याओं का तोड़ जरुर होगा …शायद ब्लॉग ट्रैफिक का भी–

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  4. ज्ञान जी बिल्कुल सही फरमाया। इतने सारे कारक दोषी हो तो आपको कोई कुछ क्या कहेगा। वैसे राज़ की बात ये है कि हम भी आपकी ही तरह निर्दोष है।

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  5. भईया डरते डरते आप की पोस्ट पढी और अपना नाम ना देख कर राहत की साँस ली. एक राज़ की बात बताऊँ जिसका शिव जैसा भाई हो उसकी गड़बड़यों की लिस्ट के छोटा होने की कोई सम्भावना नहीं है बल्कि वो सुरसा की तरह या द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ती ही जायेगी, ये मेरी पक्का है. कभी मैंने ऐसी लिस्ट बनाई तो कारण के खाने में सिर्फ़ उनका ही नाम आएगा.नीरज

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  6. ज्ञान जी ,आपने सच कहा यह हम तीन चौथाई लोगों का रोना धोना है .यही सांसारिकता है -मया मोह है .आपको पैसे का व्यामोह नही व्यापा यही अच्छाई है अन्यथा आपके सृजन्कार से हम यहाँ महरूम होते .अब जैसा है वैसा स्वीकार है की नीति बनाईये -न भी बनायेंगे तो भी वही बनेगी ,उम्र तो सारी कटी इश्के बुता मे ये मोमिन ,अब अंत मे क्या ख़ाक मुसलमा होंगे !हाँ हिंदू धर्म दर्शन पुनर्जन्म का कट्टर हिमायती है -अब अगला सुधरे यही फिक्र करिये -लेकिन यहाँ भी कमबख्त चार्वाक दिल तोड़ देता है सादर,

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  7. १) मेरा १५ किलो अतिरिक्त वजन:समाधान: कल ही अच्छे से दौड़ने वाले जूते पहनकर दौड़ना, नहीं तो तेज चला नहीं तो केवल टहलना शुरू कर दें |२) मेरे पास पैसे की कमी:समाधान: किसी मन्दिर अथवा बैंक में जाकर रुपयों के खुले करवा लें | थोड़े ही रुपयों के ढेर सारे पैसे मिल जायेंगे |३) उदासी:समाधान: डाक्टर प्रवीण चोपडा के चिट्ठे पर जाकर उस गीत को फ़िर से सुने, “जिन्दगी हंसने गाने के लिए है, पल दो पल”४) छोटा कद: समाधान: चाहे तो हील वाले जूते पहने जा सकते हैं, लेकिन बुजुर्ग कह गए हैं कि आदमियों का कद उनकी योग्यता और ज्ञान से नापा जाता है | अब मुझे तो आप खासे लंबे लगते हैं इस लिहाज से |५) अखबार/टीवी/संगीत से उचटन:समाधान: अखबार की जगह चिट्ठे पढ़ें, टीवी में केवल राखी सावंत देखें, और संगीत केवल युनुसजी, सागरजी, और मेरे चिट्ठे पर सुने :-)६) ब्लॉग पर लोग नहीं बढ़ रहे: समाधान: आपको पता चले तो मुझे भी बतायें :-)

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  8. ये सभी गड़बड़ियाँ हमारे साथ भी हैं जी एकाध को छोड़ कर जैसे नौकरी और कद। पर कद कोई गड़बड़ी नहीं, लाल बहादुर शास्त्री, हिटलर का भी ऐसा ही था और जया बच्चन का भी ऐसा ही है।

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