किराना की कीमतें और महंगाई


kirana महीने की किराना की खपत की खरीद एक साथ की जाती है। और उसमें महंगाई का अन्दाज मजे से हो जाता है। मेरी पत्नीजी इस बार जब सामान ले कर आयीं तो घर में बहुत देर तक सन्न-शान्त बैठी रहीं। फिर महंगाई पुराण प्रारम्भ हुआ।

यह निकल कर सामने आया कि खरीद पहले के स्तर पर की गयी थी, पर पैसे पहले की बजाय लगभग २०% ज्यादा लगे। अब तय हुआ है कि महीने का बजट बनाते और खर्च के पैसे बैंक से निकालते समय इस बढ़े २०% का प्रावधान किया जाये।

अगला महंगाई भत्ता की बढ़त कब होने वाली है जी?! अब तो सरकार के पे-कमीशन की अनुशंसा पर अमल करने की सम्भावना भी धूमिल पड़ गयी है, श्रमिक यूनियनों के विरोध के चलते।

बीबीसी की खबर:
महँगाई सात साल के रिकॉर्ड स्तर पर

ताज़ा आंकडों के अनुसार भारत में महँगाई की दर 8.75 प्रतिशत हो गई है और ये पिछले सात साल का रिकॉर्ड स्तर है. दस फ़रवरी 2001 को महँगाई की दर 8.77 प्रतिशत थी.

ताज़ा आंकडे 31 मई को ख़त्म हुए सप्ताह तक के हैं. इससे पहले 24 मई को ख़त्म हुए सप्ताह में यह दर 8.24 प्रतिशत थी….

अपने बस में कुछ खास नहीं है। महंगाई का कॉन्सेप्ट समझने को कुछ समय गुजारेंगे लेख-वेख पढ़ने में। कोई नयी बात नहीं है – बचपन से ही इन्फ्लेशन/हाइपर इन्फ्लेशन देखते आये हैं। जमाखोरों/कालाबाजारियों के खिलाफ शंखनाद, पीडीएस में कसावट की घोषणा, इस उस चीज का आयात/निर्यात बन्द/खुला और सरकार के खिलाफ “नो-होल्ड बार” स्तर की आलोचना। यह सदैव चलता रहा है। इन्फ्लेशन, रिसेशन, स्टैगफ्लेशन जैसे भारी भरकम और समझ में न/कम आने वाले शब्दों के बावजूद जिन्दगी चलती रहती है।

बहुत लेख आ रहे हैं मंहगाई पर पत्र-पत्रिकाओं में और हिन्दी ब्लॉग जगत में भी। ईर-बीर-फत्ते1; सब लिख रहे हैं।

हमने भी सोचा, हमहूं लिख दें, लगे हाथ अपनी और अपने परिवार की व्यथा! आपके घर में महंगाई का क्या सीन है? सीन है कि ऑबसीन (obscene – disgusting or repulsive – अरुचिकर और अप्रिय) है?!


1. “ईर-बीर-फत्ते और हम” वाक्यांश बच्चन जी की प्रसिद्ध कविता से प्रेरित है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “किराना की कीमतें और महंगाई

  1. सही कहा है जी महंगाई को समझना भौत जरुरी है। पर समझ कर क्या होगा। श्रीलाल जी भौत पहले राग दरबारी में लिख गये हैं समझदार की मौत है।

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  2. द्विवेदी साहब से सहमत हू.. इस तरह के कई नज़ारे देख चुका हू.. महँगाई की मार का तो अब क्या कहा जाए.. कुछ पंक्तिया याद आ रही है.. कविवर के नाम में संशय है यदि आपको पता हो तो ज़रूर बताएगा- ” मेरा वेतन ऐसे रानीजैसे गर्म तवे पर पानी..”

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  3. राजस्थान में न्यूनतम वेतन 100 रुपया है। पर मिलता नहीं है। सफाई ठेकेदार 70 रुपए देता है। कैसे चलाते होंगे वे उन के घर। राजू और उस की बहनों का हाल मैं ने कल बताया ही था।

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  4. हां, एक बात और आटे के दाम में भी बेतहाशा वृद्धि हुयी है लेकिन जब रोटी बनानी नहीं तो चिन्ता क्यों करें :-)

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  5. मंहगाई तो बढ ही गयी है, इसका प्रभाव यहाँ पर भारतीय सामग्री खरीदने पर भी दिखता है । लेकिन चूँकि घर पर खाना बनाने का उपक्रम बहुत कम ही होता है इसलिये प्रत्यक्ष रूप से कोई खास असर नहीं होता । कुछ बातें जो मेरे ध्यान में आयी ।१) १० lb बासमती चावल का पैकेट २-३ महीने पहले ६ डालर का आता था अब वो १५ डालर पे आ गया है । हो सकता है कि इस ब्रांड में ज्यादा दाम बढे हों लेकिन बाकी चीजें जैसे दाल वगैरह भी मंहगे हुये हैं ।२) हमारे घर की व्यवस्था फ़्रोजन परांठो पर बहुत निर्भर है लेकिन बने बनाये फ़ोजन परांठों के दाम में अभी बढोत्तरी नहीं हुयी है । इसका एक कारण इसका पहले से ही मंहगा होना हो सकता है ।३) अमेरिका में बने खाद्य पदार्थों में देखा जाये तो कार्न मंहगा होने से उससे बने पदार्थ मंहगे हुये हैं । दूध/दही/आईसक्रीम मंहगी हो गयी हैं ।४) मांस के दामों में वॄद्धि हुयी है कि नहीं ये किसी मांस खाने वाले से पूछ कर बताऊँगा ।

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  6. मंहगाई का बुरा हाल है। कल रात ही हम सोच रहे थे कि हमारी एक दिन की तन्ख्वाह हजार के करीब है तब इत्ता हलकान हैं तो जिनको महीने में हजार मुश्किल से मिलते हैं उनका क्या हाल होता होगा? किसी से कुच्छ करते नहीं बन रहा है।

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  7. महँगाई अवश्य बढी है – हमारे यहाँ, भारतीय सामग्री बेचनेवाली ४, ५ दुकानेँ ही हैँ -अब तो सब्जियाँ भी हफ्ते मेँ १ बार पहुँच जातीँ हैँ – शाकाहारी भारतीय उमड पडते हैँ खास तौर से दक्षिणी भाई बहनेँ और गुजराती , मारवाडी कौम के – अमरीकन ग्रोसरी स्टोर मेम भी काफी चीजेँ मिल जातीँ हैँ – ३ , ४ माह पहले गेहूँ का पीसा हुआ आटा ( लक्ष्मी ब्रान्ड ) ९ डालर मेँ मिल जाता था जो अब १९ से २० डालर बेग बीक रहा है ..गेस मेहँगा हुआ है, इस कारण सभी दामबढ गये हैँ ..क्या करेँ , जो चाहीये वह तो लाना ही पडता है –

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  8. सर, सब से पहले तो यह कहना चाह रहा हूं कि आप की ब्लाग पर दद्दा माखनलाल चतुर्वेदी जी की ये पंक्तियां पढ़ कर लगता है आज आस्था चैनल देखने की ज़रूरत नहीं…..आज का कोटा यहीं पर ही मिल गया। यकीन जानिये, बहुत ही अच्छा लगा। आप की पोस्ट से महंगाई का अर्थ-शास्त्र समझने में मदद मिल रही है. आगे भी इंतज़ार रहेगा।

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  9. ज्ञान जी, जिन चीजों पर बस न हो उसके लिए मैं भी आपका फंडा इस्तेमाल करता हूँ. नदी में अपने आपको ढीला छोड़ दो फिर जहाँ बहा कर ले जाये. जब तैरना आता ही नहीं, तो क्या लड़ना.रो गा कर कुछ भी फायदा नहीं- जो होगा देखा जायेगा. सही है आपकी सोच.

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