दफ्तर बनाम वेटिंग रूम!


my chamberमेरा दफ्तर का कक्ष

मेरे कमरे में चपरासी कार्ड पंहुचाता है – इम्प्रेसिव से लगने वाले कार्ड पर किसी फर्म के वरिष्ठ अधिकारी का लिखा नाम। फर्म का नाम पहचाना नहीं है। मेरे पास कोई अर्जेण्ट काम भी नहीं है। लिहाजा कमरे में बुलवाने में कोई हर्जा नहीं।

सज्जन के कमरे में घुसने से पहले उनके शरीर से गमकती इत्र की खुशबू अन्दर आती है। फिर आते हैं अधेड़ से सज्जन। पर्सनालिटी रिपल्सिव नहीं है। मेरे चेहरे पर आधी ओढ़ी और आधी नेचुरल मुस्कान आ जाती है।

मैं कहता हूं; “हां, बतायें साहब!” वे सज्जन बताने से पहले हाथ मिलाने को आगे बढ़ाते हैं। इम्प्रेसिव हाथ। कीरो की माने तो कोनिकल हाथ और लम्बी-पतली उंगलियां। एक कलाकार की होती हैं – वैसी! मैं उन्हे बैठने को कहता हूं।

वे सज्जन बैठ कर इधर उधर की प्रारम्भ करते हैं – सामान्य नेम-ड्रॉपिंग की कोशिश। मुझे उसमें बहुत रुचि नहीं। Semler मेज पर रिकॉर्दो सेमलर की पुस्तक पड़ी है। उसे देख कर वे मैनेजमेण्ट की पुस्तकों की बात करने लगते हैं। मैं इम्प्रेस होता हूं। पर थोड़ी बात होने पर स्पष्ट हो जाता है कि उनका प्रबन्धन की पुस्तकों का अध्ययन या ज्ञान उथला है। उस विषय पर बात नहीं बनती। मैं चाहता हूं कि वे मुद्दे पर आयें। अपना अभिप्राय स्पष्ट करें और रुखसत हों।

इस बीच मेरा चपरासी चाय ले आता है। मन में झल्लाहट होती है – मैने चाय को तो कहा नहीं था। अब चाय पीने के दौरान इन सज्जन के साथ मुझे ८-१० मिनट और गुजारने होंगे। खैर!

वे सज्जन चाय को मना नहीं करते। इधर उधर की कहते रहते हैं। मैं बीच में उनके आने का ध्येय जानने के लिये “हां, बतायें साहब!” छाप उच्चरण करता हूं। पर वे इधर उधर की में ही लगे रहते हैं। चाय भी समाप्त हो जाती है। अन्तत: मैं अपनी इम्पेशेंस दिखाता हूं। वे सज्जन इशारा समझ कर कहते हैं – “अच्छा साहब, मैं चलता हूं, जरा फलाने जी से भी मिलना था”।

मेरी ट्यूबलाइट फटाक से जल जाती है। फलाने जी अपने चेम्बर में नहीं थे। उनका इन्तजार करने के लिये ये सज्जन मेरे कमरे और मेरी हॉस्पिटालिटी का प्रयोग कर रहे थे। बाहर गर्मी और उमस झेलने की बजाय कमरे का वातानुकूलन और चाय का लुत्फ उठाया उन्होने। मेरा समय लिया सो अलग।

उनके जाने के बाद मैं चपरासी को पूछता हूं कि वह चाय क्यों लाया? पता चला कि चपरासी की प्रोग्रामिन्ग इसी तरह से हुई है। इस पद पर मेरे से पहले वाले अधिकारी के मित्र थे ये सज्जन; और इनके आते ही चाय पिलाने का दस्तूर था। मैं अपने इन्ट्रोवर्टिज्म और उन सज्जन की सोशल नेटवर्किंग की सोचता रह जाता हूं!

(इस पोस्ट में वर्तमान और लगभग दशक भर पहले की बात का घालमेल है! )


दो दिन से सुश्री वेरोनिका की अंग्रेजी में टिप्पणियां मिल रही हैं मेरे ब्लॉग पर। और वे पोस्ट से असंबद्ध नहीं हैं, अत: मुझे लगता है कि वे पोस्ट गम्भीरता से पढ़ रही हैं। उनके प्रोफाइल से कुछ स्पष्ट नहीं होता सिवाय इसके कि वे २१ वर्ष की हैं और पर्यटन व्यवसाय से सम्बन्ध रखती हैं। प्रोफाइल भी ताजा-ताजा बना लगता है।

वे श्री समीर लाल जी की रेन हार्वेस्टिंग विषयक टिप्पणी पर प्वाइण्टेड सवाल करती हैं कि भारत के शहरों की प्रदूषित अम्लीय वर्षा में रेन हार्वेस्टिंग कैसे उपयोगी है? समीर जी, कुछ कहेंगे?

वे दूसरे दिन यह कहती हैं कि उन्होंने शिवाजी सावंत की कर्ण (मृत्युंजय?) पढ़ ली है। जी, वेरोनिका जी यह पुस्तक मेरे संकलन में है; और वास्तव में अच्छी पुस्तक है। कर्ण पर मुझे रामधारी सिंह "दिनकर" जी का काव्य "रश्मिरथी" बहुत प्रिय है। एक परदेशी(?) वेरोनिका जी के हिन्दी ब्लॉग पर आने, पढ़ने और टिप्पणी करने के लिये धन्यवाद!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

22 thoughts on “दफ्तर बनाम वेटिंग रूम!

  1. ये तो अच्छा अपाय बताया आपने… जब कभी इलाहाबाद में टाइम काटना हो तो आपके ऑफिस में आ जायेंगे… मैं चाय तो नहीं पीता हूँ… इसलिए कुछ और व्यवस्था करनी पड़ेगी :-)

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  2. मूफ्त की ठंडक और चाय की ताज़गी मिल जाये तो क्या बात है!! सही जूगाड़ भिड़ाया बन्दे ने.यहाँ भी बहुत से लोग ठंडक की तलाश में यूँ ही मॉल के चक्कर लगाते पाये जाते है :) मगर मूफ्त की चाय, कहाँ मिलती है?

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  3. साहबजी मिलना जुलना विकट काम है। कर्टसी विजिट का यही मतलब होता है। बस मिल लिये। बतरस का घणा महत्व है। एक मकान मालिक ने मुझे मकान इस शर्त पर दिया कि हर महीने मैं पर्सनलनी किराया देने आऊंगा फुरसत से, दो घंटे की गप का टाइम निकालकर। अगर फुरसत हो, तो किसी से मिलने में गुरेज नहीं ना होना चाहिए। हर आदमी अपने आप में पूरा उपन्यास होता है। निदा साहब ने लिखा हैहर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी-पर यह अहसास वाकई भौत खराब लगता है कि कोई हमें वेटिंग रुम समझ कर यूज कर गया।

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  4. “Acid rain is rain or any other form of precipitation that is unusually acidic” . ये हुआ Acid rain का मतलब, अब रही बात भारत के प्रदुषण और अम्लीय वर्षा की तो भारत में अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ रहा है, लेकिन उससे पहले इन देशो के नाम पढिये जहा सबसे ज्यादे अम्लीय वर्षा होती है, अमेरिका, कनाडा, स्वीडन, ब्रिटेन, और चाइना (Source:UNEP,Stockholm Environment Institute), क्या यहाँ वर्षा का जल इकठ्ठा नही किया जाता है?और अगर वर्ष का जल न भी इकठा किया जाए तो भी अम्लीय वर्षा के दुस्प्रभाव से नही बच सकते है क्योकि any other form of precipitation में अम्लीय कुहरा, धुंध, और अम्लीय धूल सब शामिल है.

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  5. मैं उस कंपनी का पैनल लॉयर था। अचानक दफ्तर का हाकिम बदलते ही काम आना बंद हो गया। हमने लोगों ने कहा- आप को उन से मिलना चाहिए। हम मिलने गए तो कहा भी यही गया कि हम उन से मिलते नहीं। हम मिलने जाते तो आधा घंटा फालतू बात करते, उठने लगता तो वे प्रेम से काफी पिलाने का आदेश करते और डेढ़ घंटा खराब करते। दो चार बार में हमने उन्हें कह दिया कि हम उन की काफी नहीं पिएंगे। इस से उन का समय खराब होता है और हमारा भी। काफी बंद हो गई। वे पांच साल दफ्तर के हाकिम रहे। धेले का काम नहीं मिला। हमारा कोई छह लाख का नुकसान हो गया। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सही चीज है यह पानी भूगर्भ में जाता है। धरती मां हर अशुद्धता को शुद्ध कर देती है। इंन्सान को जीना है तो इसे बढ़ना पड़ेगा।

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  6. आपको वे सज्जन एक पोस्ट का कच्चा माल दे गये,इसके लिये आपको उनको एक चाय और पिलानी चाहिये।

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  7. सुश्री वेरोनिका का संशय निश्चित ही समाधान मांगता है. आपने इस विषय पर मेरे विचार आमंत्रित कर मुझे एक प्रकार से सम्मानित सा कर दिया है जिसके लिए मैं कतई हकदार नहीं. ज्ञान जी आपका आभारी हूँ. बस थोड़ा बहुत जो ज्ञान प्राप्त किया है हल्का फुल्का अपने अनुभवों के आधार पर, उसी को जमीन बना कर अपने विचार रखता हूँ.वैसे तो रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर वैज्ञानिक आधार पर भी गहन चर्चा की जा सकती है और अनेकों तथ्य उपलब्द्ध हैं किन्तु जो पानी आप कुऎं से प्राप्त करते हैं या बोर वेल से या फिर किसी हैन्ड पम्प से -उसका मुख्य स्त्रोत भी बारिश का पानी जो वापस जमीन में पहुँचता है, वही होता है. तभी तो गरमी में यह सूखना सुरु हो जाते हैं और बारिश के बाद फिर चालू. धरती की मिट्टी, पत्थरों की कई परतों से फिल्टर होता हुआ, जिसमें अनेकों ऐसे गुण हैं जो इसका शुद्धिकरण करने में सक्षम हैं, यह पानी नीचे पहुँच कर जल का स्तर उपर उठाता है. निश्चित ही पूर्ण शुद्धिकरण के आभाव में पीने के पानी के लिए, फिटकरी या जल को उबालना, या फिर आजकल उपलब्द्ध वाटर फिल्टरर्स का उपयोग किया जाता है. मगर हर बाकी प्रक्रिया, जिसका प्रतिशत पेयजल से कहीं ज्यादा है, उसके लिए यह जल निश्चित ही उपयोग के लिए बिना अतिरिक्त फिल्टर के भी उपयुक्त है. साथ ही ऐसी जमीन कृषिकार्य के लिए ज्यादा उपयुक्त पाई गई है जिस पर या जिसके आसपास इस तरह के प्रयोग किये गये हैं. राजीव गाँधी वाटर शेड़िंग मिशन के अन्तर्गत पहाड़ों से बहते बारिश के पानी को एकत्रित कर वापस जमीन में पहुँचाने के प्रोजेक्टस के कई वर्ग किलोमीटर की परिधी मे उत्साहजनक परिणाम इसका जीता जागता उदाहरण हैं. आशा है सुश्री वेरोनिका जी के मन में उठ रहे संशय को इस बात से कुछ समाधान मिले. अगर वो चाहेंगी तो इस दिशा में हुए शोध, कार्य और उनके परिणाम आदि की प्राप्ति में उनकी शायद कुछ मदद भी कर सकता हूँ मध्य प्रदेश एवं भारत सरकार के किस विभाग से संपर्क करना है आदि की जानकारी देकर. मैं स्वयं विज्ञान का कोई विशेष जानकार नहीं हूँ मगर क्योंकि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ इस तरह के प्रोजेक्टस पर बहुत नजदीकी से कार्य किया है, इसलिए इसकी उपयोगिता पर कोई संशय नहीं है.

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