यह न केवल गलत है, बल्कि विनाश का मार्ग है…
… मैने ऊपर कार्यकुशलता; और परम्परागत लीकों से बाहर निकलने की चर्चा की है। इसके लिये जरूरी है कि हम आरक्षण और किसी विशेष जाति या वर्ग को कुछ विशेष रियायतें/अधिकार देने की पुरानी आदत से निजात पायें। हमने जो हाल ही में बैठक रखी थी, जिसमें मुख्यमन्त्रीगण उपस्थित थे और जिसमें राष्ट्र के एकीकरण की चर्चा की गयी थी; उसमें यह स्पष्ट किया गया था कि सहायता आर्थिक आधार पर दी जानी चाहिये न कि जाति के आधार पर। इस समय हम अनुसूचित जातियों और जन जातियों को सहायता देने के लिये कुछ नियमों और परम्पराओं से बंधे हैं। वे सहायता के हकदार हैं, पर फिर भी मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण, विशेषत: सेवाओं में आरक्षण को पसंद नहीं करता। मुझे उस सब से घोर आपत्ति है जो अ-कार्यकुशलता और दोयम दर्जे के मानक की ओर ले जाये। मैं अपने देश को सब क्षेत्रों में प्रथम श्रेणी का देश देखना चाहता हूं। जैसे ही हम दोयम दर्जे को प्रोत्साहित करते हैं, हम दिग्भ्रमित हो जाते हैं।
वास्तव में सही तरीका यही है किसी पिछड़े समूह को प्रोत्साहन देने का, कि हम उसे अच्छी शिक्षा के अवसर उपलब्ध करायें। और अच्छी शिक्षा में तकनीकी शिक्षा भी आती है, जो कि उत्तरोत्तर अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। इसके अलावा अन्य सभी सहायता किसी न किसी मायने में बैसाखी है जो शरीर के स्वास्थ्य के लिये कोई मदद नहीं करती। हमने हाल ही में दो बड़े महत्वपूर्ण निर्णय लिये हैं: पहला, सब को मुफ्त प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध कराने का है, जो आधार है; और दूसरा, सभी स्तरों पर प्रतिभाशाली लड़कों-लड़कियों को शिक्षा के लिये वजीफा देने का1; और यह न केवल सामान्य क्षेत्रों के लिये है वरन, कहीं अधिक महत्वपूर्ण रूप में, तकनीकी, वैज्ञानिक और चिकित्सा के क्षेत्रों में ट्रेनिंग के लिये भी है। मुझे पूरा यकीन है कि इस देश में प्रतिभा का विशाल भण्डार है, जरूरत है कि हम उसे सुअवसर प्रदान कर सकें।
पर अगर हम जाति और वर्ग के आधार पर आरक्षण करते हैं तो हम प्रतिभाशाली और योग्य लोगों को दलदल में डाल देंगे और दोयम या तीसरे दर्जे के बने रहेंगे। मुझे इस बात से गहन निराशा है, जिस प्रकार यह वर्ग आर्धारित आरक्षण का काम आगे बढ़ा है। मुझे यह जान कर आश्चर्य होता है कि कई बार पदोन्नतियां भी जाति और वर्ग के आधार पर हो रही हैं। यह न केवल गलत है, वरन विनाश का मार्ग है।
हम पिछड़े समूहों की सब प्रकार से सहायता करें, पर कभी भी कार्यकुशलता की कीमत पर नहीं। हम किस प्रकार से पब्लिक सेक्टर या, कोई भी सेक्टर दोयम दर्जे के लोगों से कैसे बना सकते हैं?
(पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी, भारत के प्रधानमंत्री, का २७ जून १९६१ को मुख्यमन्त्रियों को लिखा पत्र, जो अरुण शौरी की पुस्तक – FALLING OVER BACKWARDS में उद्धृत है।)
1. मुझे यह कहना है कि इस निर्णय का ही परिणाम था कि मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर पाया। अगर मुझे राष्ट्रीय छात्रवृत्ति न मिली होती, तो मैं नहीं जानता कि आज मैं किस स्तर पर होता। नेशनल साइंस टेलेण्ट सर्च वाली छात्रवृत्ति भी शायद इसी निर्णय का परिणाम रही हो; पर प्योर साइंस में भविष्य नजर न आने की सोच ने उस विकल्प को नहीं अपनाने दिया। आज लगता है कि वह शायद बेहतर विकल्प होता।
| » कल घोस्ट बस्टर जी ने मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं की। शायद नाराज हो गये। मेरा उन्हे नाराज करने या उनके विचारों से टकराने का कोई इरादा न था, न है। मैं तो एक सम्भावना पर सोच व्यक्त कर रहा था। पर उन्हें यह बुरा लगा हो तो क्षमा याचना करता हूं। उनके जैसा अच्छा मित्र और टिप्पणीकार खोना नहीं चाहता मैं।
» कल मैने सोचा कि समय आ गया है जब बिजनेस पेपर बन्द कर सामान्य अंग्रेजी का अखबार चालू किया जाय। और मैने इण्डियन एक्सप्रेस खरीदा। उसमें मुज़ामिल जलील की श्रीनगर डेटलाइन से खबर पढ़ कर लगा कि पैसे वसूल हो गये। उस खबर में था कि तंगबाग के श्री मुहम्मद अब्दुल्ला ने फंसे ३००० अमरनाथ यात्रियों को एक नागरिक कमेटी बना कर न केवल भोजन कराया वरन उनका लोगों के घरों में रात गुजारने का इन्तजाम किया। यह इन्सानियत सियासी चिरकुटई के चलते विरल हो गयी है। सलाम करता हूं तंगबाग के श्री मोहम्मद अब्दुल्ला को! |

यहाँ भी ( in USA ) आरक्षण की बात पे बहस चल रहीँ हैँ – नेहरु विलक्षण व्यक्तित्त्व के धनि एवम स्वतँत्र भारत के प्रथम प्रधान्मँत्री थे – इतिहास मेँ उनका दिया योगदान अविस्मरणीय रहेगा – लावण्या
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हम भी किसी भी प्रकार के आरक्षण के टोटल खिलाफ़ हैं, जो होनहार है वो कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेता है। एक लगड़े को सहारा देने के नाम पर दो टांग वाले की टांग काट कर नहीं दी जानी चाहिए।
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kaash nehru ji ki recommendations maan li gayi hoti to aaj stithi kuch aur hoti…lekin ab ye reservation policy hi politicians ke liye sabse bada chunavi mudda hai isliye ye ghatne ki bajaay sirf badhega hi….
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हम तो कहते आए हैं आरक्षण उस बीमारी का इलाज नहीं जिसे ठीक करने के लिए वह दी जा रही है। देते रहे तो मरीज मर जाएगा। दूसरा इलाज तलाश करो।
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आपका बहुत आभार इस पोस्ट के लिए.. हर रोज़ एक बढ़िया पोस्ट मिल जाती है आपकी ब्लॉग पर..
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नेहरू जी जैसे दार्शनिक राष्ट्राध्यक्ष आधुनिक युग में विरले ही होंगे। इंदिरा जी और राजीव जी ने भी उनकी परंपरा का निर्वहन किया। राजीव जी के समय दूरसंचार के क्षेत्र में जो नींव डाली गयी, जवाहर रोजगार योजना के तहत गांवों में जितने काम हुए, उनका असर आज भी दिखाई दे रहा है। लेकिन आज के उनके वंशजों पर निगाह जाती है, तो पूरे खानदान से ही विरक्ति होने लगती है।
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नेहरू के बारे में कुछ कहना बेकार ही है, यही एक परिवार है जो देश की 90% प्रतिशत समस्याओं के लिये जिम्मेदार है, नेहरू के कारण ही हम आज कश्मीर जैसा नासूर पाले बैठे हैं…
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भाई ज्ञानदत्त जी,यह जान कर प्रसन्नता हुई कि आप मेरे शहर इलाहबाद से हैं. मैंने इलाहबाद से MLNR से १९८३ में इलेक्ट्रिकल से इंजीनियरिंग उत्तीर्ण की थी. सम्प्रति जयपुर में हूँ.पंडित नेहरू जी का पत्र शोरी जी की पुस्तक से उध्रत कर पढ़वानें के लिए धन्यवाद.सच को जानते हुए भी राजनीतिक स्वार्थ के चलते की गई एक गलती से आज देश को क्या कुछ देखना पड़ रहा है, यह किसी से छुपा नही है, वैसे भी इस लोकतंत्र में सच सुनता ही कौन है? यंहा तो जिससे वोट मिले वही नीति चलानी पड़ती है. इस विषय में ज्यादा लिखना या बोलना किसी कम का नही अतः चुप्पी साध रहा हूँ .आप मेरे ब्लॉग में पदार्पण http://WWW.cmgupta.blogspot.com के मार्फ़त कर सकते हैं.एक बार पुनः पंडित नेहरू जी का पत्र शोरी जी की पुस्तक से उध्रत कर पढ़वानें के लिए धन्यवाद.आपकाचन्द्र मोहन गुप्ता
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आपके आभारी हैं जो आपने नेहरू जी के विचार जानने का सुअवसर हमें दिया.केवल सत्ता के लिए लोलुप देश और व्यवस्था को विध्वंश करने वाले राजनीतिज्ञों और उनकी अदूरदर्शी नीतियों ने इस आरक्षण के अस्त्र को ठीक उसी प्रकार अपने हाथों थाम और आजमा रखा है जिस प्रकार कभी अंग्रेजों ने ‘फूट डालो ,शासन करो’ को कर रखा था.देश का किस भांति अधोपतन हो रहा है इनकी नीतियों के वजह से, इससे इन्हे क्या लेना देना है.कौन क्या कहे और क्या करे.जिसके पास सत्ता है कुछ कर पाने का सामर्थ्य है,अधिकाँश तो चिंता से सरोकारहीन है और कुछ बचे खुचे इस दिशा में सोचने वाले कर्णधारों के पास इसके ख़िलाफ़ बोलने का हौसला नही है.ऐसा नही है कि जो गिने चुने लोग(आरक्षण की यह सुविधा भी कहाँ उन सभी आम लोगों को मिल पाती है जो सचमुच ही यह डिजर्व करते हैं.) आज इसका लाभ उठा भी रहें हैं वे इस बात को नकार सकें कि आरक्षण का आधार केवल और केवल आर्थिक ही होना चाहिए,पर खुलकर मानेगा बोलेगा कौन?
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पता नही इन पत्रों का उलेख सरदार पटेल पर लिखी किसी पुस्तक में कौन से सन्दर्भ में पहले कही पढ़ा था ..अरुण शौरी जी लिए मन में बहुत सम्मान है……इस किताब को पढने की उत्सुकता जाग गई है….
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