बाईस जुलाई को लोक सभा तय करने जा रही है कि सरकार के पास विश्वास है या नहीं। मैं करेण्ट अफेयर्स पढ़ता-देखता कम हूं, इस लिये इस विषय पर बहुत सोचा न था। पर शनिवार के दिन मेरे दामाद विवेक पाण्डेय ने एक-डेढ़ घण्टे में जो संसदीय सिनारियो समझाया और जो पर्म्यूटेशन-कॉम्बिनेशन बनने की झलक बताई; उससे दो बातें हुईं – एक तो यह कि मैं विवेक की राजनैतिक समझ का मुरीद1 हो गया और दूसरे बाईस तारीख को जो कुछ घटित होगा; उससे गर्मी महसूस करने लगा हूं।
यह पार्टी है जो साम्यवादियों को रिप्लेस कर रही है। उसमें बन्दे इधर उधर झांक रहे हैं। फलाने उद्योग पति थैली ले कर सांसदों को घोड़े की तरह ट्रेड करने की कोशिश कर रहे हैं। ढिमाके गुरू को एक पक्ष केन्द्र में मंत्री और दूसरा राज्य में मुख्य मन्त्री बनाने का वायदा कर रहा है। कल तक वे दागी थे, आज वे सबके सपनों के सुपात्र हैं। कितने ही ऐसे किस्से चल रहे हैं। यह सब विवेक ने धड़ाधड़ बताया जैसे वह मुझ अनाड़ी को पोलिटिकल कमेंण्ट्री-कैप्स्यूल दे रहा हो। और डेढ़ घण्टे बाद मैं कहीं ज्यादा जानकार बन गया।
बाईस को जो होगा संसद में, उससे आने वाले चुनाव पर समीकरण भी प्रभावित होंगे। और कई अगली लोक सभा के प्रत्याशियों का कदम उससे प्रभावित होगा। न जाने कितने निर्णय लेने में, पत्ता फैंकने में गलतियां करेंगे और न जाने कितने उसका लाभ उठायेंगे।
बड़ी गर्मी है जी! और ऐसे में हमारे घर में इनवर्टर भी गड़बड़ी कर रहा है। क्या लिखें?! बाईस जुलाई के परिणाम की प्रतीक्षा की जाये। आप भी कर रहे होंगे।
1. यह बन्दा सांसदी को बतौर प्रोफेशन मानता है। क्या पता भविष्य में कभी सांसद बन भी जाये! तब हम जैसे ब्यूरोक्रेट “सर” बोलने लगेंगे उसको!

@ ड़ा. अमर कुमार – अश्व सांसद समीकरण के बारे में तो आज आलोक पुराणिक जी ने अच्छी ट्यूब लाइट जलाई है। आप उनका लेख घोड़े से बातचीत देखें।
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विवेक जी से परिचय कराने का धन्यवाद्। यह जोड़ तोड़ का गणित हमें कभी रास नहीं आया। पर थैलीशाहों के लोकतंत्र में सांसद और विधायक न बिकेंगे तो क्या बिकने के लिए भेड़-बकरी आयेंगे? व्यवस्था को ही घुन लगा है। महेन्द्र की कविता की पंक्ति है…..’घुन लगे इस काठ को बदलें।’
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‘अनुपलब्धता, असंवेदनशीलता, अक्खड़ता और पद का गुमान एक सांसद या मंत्री को अलोकप्रिय बना देते हैं।’आडवानी जी की यह बात राजनीति ही नही हर मानवीय कारोबार पर सटीक बैठती है ..पर किया क्या जाय समस्या दूसरी है -पर उपदेश कुशल बहुतेरे…..
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विवेक भाई को देखकर आशिष भेजने को मन हुआ है – जीते रहेँ खुश रहेँ और इसी तरह ससुरजी को नये नये विष्योँ की जानकारी भी देते रहेँ – – लावण्या
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गर्मी तो हम भी खूब ‘देख’ रहे हैं। लेकिन महसूस करने की ज़रूरत नहीं समझते क्यों कि दुःखी नहीं होना चाहते। कुर्सी पर ‘नागनाथ’ रहें या ‘साँपनाथ’ क्या देश की तकदीर बदल जाएगी?
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लेख पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा।कहने के लिए कुछ नहीं है।I am keeping my fingers crossed.(हिन्दी में इसे कैसे कहेंगे?)विवेक की तसवीर देखना अच्छा लगा।क्या करता है? कहाँ रहता है।समीर लाल जी के साथ हमारा भी आशीष।
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विवेक की तस्वीर देखना सुखकर रहा. हमारा आशीष.
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गर्मी तो इस घटना की हम भी झेल रहे हैं.
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गुरु जी, सांसद की तुलना घोड़े से ही क्यों की गयी है ? इसका उल्लेख भी हो जाता तो हम अकिंचन पाठकों का कुछ ज्ञानवर्धन हो जाता । बाकी तो घिसीपिटी बातें हैं ।
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इस तपन में लोकतंत्र झुलस रहा है.
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