आलू कहां गया?


भाई लोग गुटबाजी को ले कर परेशान हैं और मैं आलू को ले कर।

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इस साल कानपुर-फर्रुखाबाद-आगरा पट्टी में बम्पर फसल हुई थी आलू की। सामान्यत: १०० लाख टन से बढ़ कर १४० लाख टन की। सारे उत्तर प्रदेश के कोल्ड-स्टोरेज फुल थे। आस पास के राज्यों से भी कोल्ड-स्टोरेज क्षमता की दरकार थी इस आलू स्टोरेज के लिये।

मेरे जिम्मे उत्तर-मध्य रेलवे का माल यातायात प्रबन्धन आता है। उत्तर-मध्य रेलवे पर यह कानपुर-फर्रुखाबाद-मैनपुरी-आगरा पट्टी भी आती है, जिससे पहले भी आलू का रेक लदान होता रहा है – बम्बई और नेपाल को निर्यात के लिये और पूर्वोत्तर राज्यों के अन्तर-राज्यीय उपभोक्ताओं के लिये भी। इस साल भी मैं इस लदान की अपेक्षा कर रहा था। पर पता नहीं क्या हुआ है – आलू का प्रान्त से थोक बहिर्गमन ही नहीं हो रहा।

ब्लॉग पर आलू-भाव विशेषज्ञ आलोक पुराणिक, खेती-बाड़ी वाले अशोक पाण्डेय या नये आये ब्लॉगर मित्रगण (जो अभी गुटबाजी के चक्कर में नहीं पड़े हैं! और निस्वार्थ भाव से इस प्रकार के विषय पर भी कह सकते हैं।) क्या बता सकते हैं कि मेरे हिस्से का आलू माल परिवहन कहां गायब हो गया? क्या और जगह भी बम्पर फसल हुई है और उससे रेट इतने चौपट हो गये हैं कि आलू निर्यात फायदे का सौदा नहीं रहा?

क्या उत्तर प्रदेश में अब लोग आलू ज्यादा खाने लगे हैं? या आज आलू बेचने की बजाय सड़ाना ज्यादा कॉस्ट इफेक्टिव है?

(यह पोस्ट लिखने का ध्येय यह प्रोब करना भी है कि सामान्य से इतर विषय भी स्वीकार्य हैं ब्लॉग पर!)    


sarasvati कल हमारे दफ्तर में हिन्दी दिवस मनाया गया। हिन्दी पर बहुत अंग्रेजी (पढ़ें प्रशस्ति) ठिली। हिन्दी पखवाड़े का समापन भी सितम्बर अन्त में होना है। नवरात्र उसके बाद ही प्रारम्भ होगा। प्रज्ञा, वाणी, ज्ञान और बुद्धि की अधिष्ठात्री मां सरस्वती का आवाहन हमने अभी कर लिया। 

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

30 thoughts on “आलू कहां गया?

  1. आलू भी कमाल की चीज लगता है बंपर हो तो भी तकलीफ ना हो तो भी तकलीफ

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  2. आलू हमारी प्रिय सब्जी है और हर सब्जी में डाला जाता है। आभा जी ने बता ही दिया कि बम्बई में इसका क्या दाम चल रहा है। संजीत के सवालों का जवाब जानने के हम भी इच्छुक हैं। ऐसे विषय भी होने ही चाहिएं

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  3. ज्ञानजी हमारा कोड वर्ड हे आलू, हम जब भी किसी नये चेहरे को देखते हे, जो हमारे जेसा लगता हे, यानि भारतीया तो हम आपस मे यही कहते हे, अरे यह तो आलू लगता हे :)धन्यवाद

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  4. आलू कहीं नहीं जाने वाला….हम उत्तर भारतीयों का काम कैसे चलेगा इसके बिना.

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  5. “ब्लॉग पर आलू-भाव विशेषज्ञ आलोक पुराणिक, खेती-बाड़ी वाले अशोक पाण्डेय या नये आये ब्लॉगर मित्रगण (जो अभी गुटबाजी के चक्कर में नहीं पड़े हैं! और निस्वार्थ भाव से इस प्रकार के विषय पर भी कह सकते हैं।)”क्या कहने का तात्पर्य यह है कि नए आने वाले ब्लॉगर्स को छोड़कर बाकी ब्लॉगर्स गुटबाजी के चक्कर में पड़ चुके हैं?यदि वाकई ऐसा है तो कृपया खुलासा करें कि आपकी नज़र में कौन-कौन से ब्लॉगर्स गुटबाजी में पड़े हैं?और साथ हीऐसे कौन-कौन से गुट हैं जिनकी गुटबाजी में बाकी ब्लॉगर्स पड़े हुए हैं?प्रतीक्षा में इक आवारा बंजारा पत्रकार ;)

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  6. ज्ञानजी जरा ध्यान दीजिएगा – आप ने जो आलूओं की तस्वीरे खींची हैं…उनमे तीन आलू एसे है जिसमें मानव चेहरे दिख रहे हैं – सबसे बायें वाला बडा आलू उस बौध्द् मूर्ति की याद दिला रहा है जो आंखें बंद कर ध्यान मग्न है (सर नीचे झुकाकर- जनता की तरह), बीच वाला बडा आलू कुछ सामान्य सा लग रहा है , ठुड्डी उपर और खोपडी नीचे की तरफ दिख रही है (सुरक्षा एजेंसियों की तरहः…. और एकदम दायें वाला उपर की तरफ का बडा आलू हँस रहा है – अपने शिवराज पाटिल की तरह :)बस ऐसे ही Time pass कर रहा था….आलू देखकर सो सोचा टिपिया भी लूँ.. .टिप्पणियों की आवक चालू देखकर :)

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  7. चुनाव के साल में प्रवेश करने की तैयारी है. आलू, प्याज वगैरह की गिनती वैसे भी चुनावी सब्जियों में होती है. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि खाने वालों को अच्छे आलुओं का चुनाव करना पड़ता है और नेता-व्यापारी-जमाखोर नेक्शस को यह चुनाव करना पड़ता है कि आलू की कमी बनाई जाए या नहीं. वैसे अशोक जी ने लिखा है कि दशहरे का इंतजार करना चाहिए लेकिन मुझे लगता है कि जमाखोरी चालू है. जमाखोरी वाली बात को कमोडिटी फ्यूचर्स में लगे पैसे और बिहार में आई भयंकर बाढ़ से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए. आलू उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों से अगर नहीं निकला है, जिनकी बात आपने कही है तो निश्चिंत रहें, समय देखकर इसे निकालने का स्क्रीनप्ले लिखा जा रहा होगा. अगर आलू का निर्यात होना ही था तो रेल से ही होता. इसलिए भी क्योंकि पिछले कई महीनों में डीजल और पेट्रोल की कीमतों में बढोतरी हुई है, और ऐसे में आलू को सड़क के रास्ते बाहर ले जाना घाटे का सौदा साबित होता.मेरा मानना है कि आलू अभी भी उत्तर प्रदेश में ही है. त्यौहार, बाढ़ और कमोडिटी में लगाये गए पैसे कहाँ से आए हैं, उसपर निर्भर करेगा.

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  8. अच्छा संयोग है. चाय के प्याले के साथ आलू का परांठा और आपकी आलूभारी यह पोस्ट. अगर आप एक पोस्ट आलू को समर्पित कर सकते हैं तो लगता है आलू जी मेरी कविता भी स्वीकार कर लेंगे. बहुत खूब!

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