एक मेरी बहुत पुरानी फोटो है, बिना टाई की|
मुझे याद नहीं कि मैने अन्तिम बार टाई कब पहनी। आजकल तो ग्रामीण स्कूल में भी बच्चे टाई पहने दीखते हैं। मैं तो म्यूनिसेपाल्टी/सरकारी/कस्बाई स्कूलों में पढ़ा जहां टाई नहीं होती थी। मास्टरों के पास भी नहीं होती थी।
मुझे यह याद है कि मैं सिविल सर्विसेज परीक्षा के इण्टरव्यू के लिये जरूर टाई पहन कर गया था। और वह टाई मैने स्वयं बांधी थी – अर्थात टाई बांधना भी मुझे आता था। अब तो शायद बांधना भी भूल गया होऊं।
मेरी पत्नी जी ने कहा कि मैने एक फोटो रेलवे स्टाफ कॉलेज में टाई पहने खिंचवाई थी – लगभग ढ़ाई दशक पहले। मुझे इण्डक्शन कोर्स में गोल्ड मैडल मिला था। किसी बड़े आदमी ने प्रदान किया था। अब वह भी याद नहीं कि वह किसने दिया था। स्मृति धुंधला गयी है। और वह टाई वाली फोटो भी नहीं दीख रही कम्प्यूटर में।
बहुत ग्लेमर लेस जीवन है अपना। मैं यह इस लिये कह रहा हूं क्यों कि कल मैने अखबार में कल खबर पढ़ी थी। इलाहाबाद में एक गगन चुम्बी कमर्शियल इमारत में बम ब्लॉस्ट की अफवाह के बाद उसमें से बाहर निकलते ढ़ेरों टाई पहने नौजवान लड़के लड़कियों की तस्वीर छपी थी उस खबर के साथ – और वे सब ड्रेस और टाई पहने थे। कितने स्मार्ट लग रहे थे। हम तो कभी स्मार्ट रहे ही नहीं जी!
प्लेन-प्लेन सी सादी जिन्दगी। ग्लैमर रहित। बिट्स पिलानी में किसी लड़की ने भाव नहीं दिया। जिन्दगी भी चल रही है; और जो भी शो-पानी है, सो तो पत्नीजी की कृपा से ही है।
पर एक टाई खरीदने – पहनने का मन हो रहा है। कित्ते की आती है टाई; जी!
रीता पाण्डेय की प्री-पब्लिश त्वरित टिप्पणी – क्या कहना चाहते हैं आप? क्या स्मार्ट लगना, रहना गलत है। क्या आप बताना चाहते हैं कि लोगों से अलग आपको केवल मुड़े तुड़े कपड़े चाहियें? उन नौजवानों का काम है, प्रोफेशन है। उसके अनुसार उनकी ड्रेस है। सरलता – सादगी का मतलब दरिद्र दीखना थोड़े ही होता है? अपने पास टाई न होने का नारा क्या दूसरे तरह की स्नॉबरी नहीं है?

कुछ वर्ष पहले ब्रिटेन के एक अतिप्रतिष्ठित पत्रकार ने जब टाई को ‘एपेंडिक्स ऑफ़ द क्लोदिंग’ क़रार दिया था तो वहाँ नेकटाई पर अच्छी बहस छिड़ी थी.
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एक बात तो कहना ही भूल गये । आपके “वी” गले के हाथ के बुने हुये स्वेटर ने बहुत पुरानी यादों को जाग्रत कर दिया है, साथ ही चश्मे का फ़्रेम और तेल लगे हुये सलीके से कढे हुये बाल बहुत अच्छे लग रहे हैं ।
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पहले आप ज्यादा स्मार्ट थे ….यह कहना ग़लत होगा कि लड़कियों ने भाव नही दिया बल्कि इस नौजवान तेज तर्रार स्वाभिमानी छोरे और अब के सरकारी मुलाजिम की व्यथा कथा को यूँ कहा जा सकता है -इक वो आलम था कि खुदा को खुदा न कह सका अब इक ये आलम है कि हर बुत को खुदा कहते हैं बहरहाल मेरी इस बात को आदरणीय रीता जी का समर्थन मिलेगा और वे आपकी इस आत्म प्रवंचना पर आपके निश्चित ही क्लास लेंगी !रही बात पढ़ने ओढ़ने की तो जिसे जैसा मन भाये -इक्सेन्ट्रिक कभी कपड़े लत्तों पर ध्यान नही देते -यह दोयम दर्जे लोगों का काम है .पहले तो नही अब मैं भी कोशिश करता हूँ कि स्मार्ट सा दिखूं -यह जीनो का चीत्कार सा लगता है कि भाई मैं अभी चुका नहीं और यह थुल थुल होता शरीर दरअसल अभी भी जीनो का लबादा और तन्वंगिओं को संभाल सकता है -कोई तो झांसे में आए और गुलशन का कारोबार चले ……चलिए कभी इसग्रंथि का विस्तार से विवेचन साईब्लाग पर ……
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मुझे भी टाई पहने कोई चार-छह माह हो गए हैं। वैसे एक काली टाई, काले कोट के साथ हमेशा मेरी कार में एक पोलीथीन थैली में उपस्थित रहती है। गर्मी इतनी होती है, और यहाँ अदालतों का अनुशासन इतना ढीला कि उसे कार से निकालने का अवसर नहीं आता। जज भी कोई कभी टोकता नही। तो सादा वस्त्रों से काम चलता रहता है। पर अब दीवाली से होली तक नियमित रूप से पहनेंगे जिस से आम लोग जानने लगें कि आखिर हम भी वकील हैं। टाई भारत में केवल प्रदर्शनी की वस्तु है। भारतीय वातावरण के लिए तो साधारण महीन वस्त्र ही उपयोगी हैं। टाई तो हमेशा कचोटती सी लगती है। वह चुस्ती के लिए कतई आवश्यक नहीं।
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जिन्दगी में टाई पहनने के समय:१) तीसरा सेमेस्टर बी. टेक. : जब नये जूनियर्स (फ़च्चों) के लिये रेलवे स्टेशन पर एक काउंटर लगाया था ।२) छठा सेमेस्टर बी. टेक : जब अपने सीनियर लोगों के विदाई समारोह में हमने मंच का संचालन किया था ।३) सातवां सेमेस्टर : जब कालेज में सेमिनार दिया था ।४) फ़रवरी २००४: अपनी बडी बहन की शादी पर, रिश्तेदारों के कहने पर । भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में पूरे दो साल बिना टाई पहनने का मौका मिले निकल गये । यहाँ अमेरिका में भी एक बार शौकिया इंटरव्यू में बैठे थे तो टाई लगायी थी ।वैसे आज मेरे रूममेट ने एक इंटरव्यू दिया था और कल रात को मैने अपने बक्से से टाई खोजकर, गांठ लगाकर दी थी । गांठ लगाना अभी भी याद है ।अभी कुछ वर्ष पहले बैंक आफ़ बडौदा ने अपने अधिकारियों को टाई पहनने के निर्देश दिये थे । तो शौक शौक में पिताजी ने हफ़्ते दस दिन टाई लगायी । उसके बाद टाइ उनके आफ़िस की दराज में बैठ गयी और किसी वरिष्ठ अधिकारी के बैक दौरे के समय ही बाहर आती थी :-)
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हम पूरी तरह से रीता जी के साथ हैं। ड्रैस सेन्स कई तरह की होती है और कोई भी अच्छी लग सकती है। सोचिये वाजपेयी टाई में कैसे लगेंगे और मैं मनमोहन सिंह धोती में?
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आपकी पोस्ट के लिये भगवती चरण वर्मा की कहानी दो बांके से खास टिप्पणी- मुला स्वांग खुब भरयो! :)
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उपर लगे चित्रों के जरिये भी एक संदेश जा रहा है…..टाई का नुकीला सिरा सीधे रीताजी की तरफ इस तरह इंगित कर रहा है कि इन्हीं की वजह से यह पोस्ट लिखना पड रहा है वरना हम तो कबके टाई मान चुके थे कि अब कभी टाई से भेंट न होगी :)अच्छी पोस्ट, रोचक चर्चा।
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& Yours & Ritaji's pictures are good too.
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LOL I like Ritaji's plain accusation of "reverse snobbery " that is spoken like a True Wife !1& in Hindi i can add,"नेहले पे दहला "
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