भय विहीन हम


किसका भय है हमें? कौन मार सकता है? कौन हरा सकता है? कौन कर सकता है जलील?

आभाजी के ब्लॉग पर दुष्यंत की गजल की पंक्तियां:

पुराने पड़ गए डर, फेंक दो तुम भी
ये कचरा आज बाहर फेंक दो तुम भी ।

मुझे सोचने का बहाना दे देती हैं। दैवीसम्पद की चर्चा करते हुये विनोबा असुरों से लड़ने के लिये जिन गुणों की सेना की बात करते हैं, उनमें सबसे आगे है अभय!

अभयं सत्व संशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति:।

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम॥गीता १६.१॥

ऐसा नहीं है कि मैं प्रवचनात्मक मोड में हूं। आस्था चैनल चलाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। पर यह मुझे अहसास है कि मेरी समस्याओं के मूल में भय है। अनेक परतों का भय। कभी कभी फोन की घण्टी बजती है और अनजाने फोन से भयभीत कर देती है मन को। कभी बिल्कुल दूर के विषय – ग्लोबल वार्मिंग, आतंक या सन २०४० में होने वाला जल संकट भयभीत करते हैं। भय के कचरापात्र बनते गये हैं हम उत्तरोत्तर!

rajpath मैं नेपोलियन हिल की पुस्तक – द लॉ ऑफ सक्सेस में बताये छ प्रमुख भयों का उल्लेख करता हूं:

  1. विपन्नता का भय।
  2. मृत्यु का भय।
  3. अस्वस्थता का भय।
  4. प्रिय के खो जाने का भय।
  5. वृद्धावस्था का भय।
  6. आलोचना का भय।

अगर हमें कुछ टैंजिबल (tangible – स्पष्ट, ठोस) सफलता पानी है तो इन भयों पर पार पाना होगा। इन भयों के साथ हम सफलता-पथ पर बढ़ते उस पथिक की तरह हैं जिसको जंजीरों से लटके कई ठोस वजनी गोलों को घसीटते आगे बढ़ना हो।

कैसे दूर होंगे भय? कैसे कटेंगी ये जंजीरें? कसे हटायेंगे हम इन गोलों का भार?

आइये नव वर्ष का रिजॉल्यूट (resolute – कृतसंकल्पीय) विचार मन्थन करें।    


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

35 thoughts on “भय विहीन हम

  1. बहुत से डर बिठाए गए थे, बचपन से ले कर अब तक। लेकिन सब छूट गए,शनैः शनैः। नए नए आते गए। जो आते हैं वे भी पीछे छूट जाते हैं। जो पास हैं वे भी छूट जाएंगे, एक दिन,और जो हैंनए आने वाले, वे भीडर! सत्य नहीं, वह क्षणिक है। उसे छूटना ही है, एक दिन। वे आते रहेंगे और जाते भी। क्यों रहें उन से चिन्तित? आखिर उन का अस्तित्व कहाँ है?

    Like

  2. भय बिन प्रीति न होय! विपन्नता का भय ना हो तो मनुष्य संपन्नता लाने का प्रयास ही ना करे! मृत्यु का भय ही जीवन से प्रेम करा देता है. अस्वस्थता का भय स्वस्थ रहने का प्रयास करा देता है आदि आदि…मुझे लगता है कि सफलता पाने के लिये असफलता का भय का होना जरुरी है।नव वर्ष की शुभकामनायें।

    Like

  3. भय शायद ईश्वर निर्मित वह सत्य है जिससे मनुष्य डरता है . यदि भय नही होता तो आदमी निरंकुश हो जाता . 1. विपन्नता का भय। 2. मृत्यु का भय। 3. अस्वस्थता का भय। 4. प्रिय के खो जाने का भय। 5. वृद्धावस्था का भय। 6. आलोचना का भय।सच है यह छह भय अंकुश है और इन्ही भय के कारण आदमी ईश्वर को याद रखता है और समाज का ख्याल

    Like

  4. विपन्नता का भय। ………… अभी इतने भी संपन्न नही हुए की विपन्नता से भय खाए मृत्यु का भय। …………………अपनी मृत्यु से क्या भय, मरने के बाद कौन देखने आता है?अस्वस्थता का भय।………….. हाँ है, दूसरो के ऊपर आश्रित होना पड़ेगा.प्रिय के खो जाने का भय। हाँ है वृद्धावस्था का भय। ना जी इसकी कोई गारंटी ही नही है की तब तक चलेंगे,आलोचना का भय। बहुत ही ज्यादे है, कोई रास्ता है बचने के लिए ?अगर हमें कुछ टैंजिबल (tangible – स्पष्ट, ठोस) सफलता पानी है तो इन भयों पर पार पाना होगा। मतलब अभी तक असफल है, जब अब तक असफल है,और अपने ऊपर कोई फर्क नही पड़ा तो फ़िर क्या भय?

    Like

  5. हमने तो बचपन में ही सीखा था,गब्बर सिंह ये कह के गया,जो डर गया वो मर गया ।फ़िर अगर पिताजी ने दो दुकानों की जमीन बचाकर रखी हो कि कुछ न हुआ तो लडके को दुकान खुलवा देंगे, तो भी डर काफ़ी कम हो जाता है । जो होगा देखा जायेगा, नहीं तो परचूने की दुकान कहीं नहीं गयी :-)बाकी इस मुद्दे पर सीरियस टिप्पणी लिखने नहीं सोचने और मनन करने वाली है । काफ़ी फ़ूड फ़ार थाट दे दिया आपने न्यू ईयर ईव पर ।

    Like

  6. ज्ञान जी ये आप भी वर्षांत में क्या ले के बैठ गए -पूरा भयभीत कर डाला -कोई यही चंद भय ही थोड़े हैं दुनिया में ? ज्ञात और अज्ञात भयों का पूरा सर्प पिटारा ही है यहाँ -कब कौन सा सहसा सामने आ फन न फैला दे ? पर आपने कटेग्रयिजेशन अच्छा उद्धृत किया है ! इश्वर आपको ,समस्त ब्लॉगर भाईयों बहनों को नए वर्ष में और आगे भी तमाम ज्ञात- अज्ञात भयों से मुक्त रखे यही सर्वतोभद्र अभिलाषा है !

    Like

  7. सभी प्रकार से भय से मुक्ति पाने का मेरे विचार में तो केवल और केवल एक ही साधन है कि हम लोगों को प्रतिदिन ध्यान ( मैडीटेशन) करना चाहिये। तो चलिये हम सब नये वर्ष का एक संकल्प यह भी करें कि हम सब लोग इस का रोज़ाना अभ्यास किया करेंगे। आपने बहुत अच्छा लिखा है। अगर पोस्ट में दिये गये संस्कृत श्लोक का हिंदी में अर्थ भी बता दिया जाये तो क्या बात हो !!

    Like

  8. आप बहस की गुंजाइश जानबूझकर छोड ही देते हैं . निडरता की कोई सीमा तो होगी . या आग में कूद जाना है बिना डरे ? दूसरी टिप्पणी रात को आएगी . अभी जाना होगा :)

    Like

  9. इस पोस्ट पर टिप्पणी न करना अपने से बेईमानी होगी.. अतएव यह पूछना चाहूँगा, कि आपका यह पोस्ट तो प्रश्नचिन्ह पर बन्द हो गया है !पर, यह प्रश्नचिन्ह और ऎसे कई शाश्वत प्रश्नचिन्ह क्या आप अकेले के हैं ?होश संभालते ही पहली शिक्षा मिलती है.. ईश्वर से डरो , यानि परमपिता हौव्वा हो गये !दूध पी लो नहीं तो शेर आ जायेगा..-हाऊँ, यानि शेर सदैव भक्षक ही होता है !सो जाओ, नहीं तो पिट्टी हो जायेगी.. ममता की सागर या प्रताड़ना की लाउडस्पीकर ?बहुत से उदाहरण हैं, जो आपके जीवन में भी उतरे होंगे, फिर यह ‘मैं कौन हूँ ‘जैसी जिज्ञासा क्यों ?आप मेरे प्रतिप्रश्न का उत्तर दें !

    Like

Leave a reply to Arvind Mishra Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started